नई दिल्ली: जीवन की कोई भी साधना बगैर शक्ति की साधना के पूरी नहीं हो सकती है. आप किसी भी देवता की पूजा करते हैं लेकिन यदि आपने शक्ति की साधना नहीं की तो आपकी पूजा अधूरी मानी जाती है. शक्ति की साधना का महापर्व नवरात्रि (Navratri) 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच मनाया जाएगा. नवरात्रि के 9 दिन देवी दुर्गा के नवनिध रूप की आराधना के लिए सुनिश्चित किए गए हैं. आइए जानते हैं कि आखिर इस नवरात्रि पर हमें मां जगदंबे की साधना-आराधना करते समय किन बातों का विशेष ख्याल रखना होगा. इनका ध्यान रखने से हमारी साधना शीघ्र पूर्ण होगी और माता का आशीर्वाद हम सभी पर बरसेगा.


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1. एक पवित्र स्थान पर माता की फोटो या मूर्ति को एक लाल कपड़े के आसन पर गंगा जल छिड़क कर स्थापित करें. माला-पुष्प आदि से उनका श्रृंगार करें.
2. पूजा करते समय स्वयं के लिए लाल रंग के आसन का प्रयोग करें. यह आसन ऊनी होना चाहिए. यदि ऊनी आसन न उपलब्ध हो तो लाल रंग का कंबल इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि लाल रंग का कंबल भी उपलब्ध न हो तो कोई कंबल लेकर उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता की साधना करें.
3. यदि संभव हो तो मां जगदंबे की साधना लाल रंग के कपड़े पहनकर ही करें और मस्तक पर रोली से लाल रंग का तिलक लगाएं. माता को शीघ्र ही प्रसन्न करने के लिए 'ॐ ऐं हृीं क्लीं चामुण्डार्य विच्चै' मंत्र का विशेष रूप से जप करें.


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4. नवरात्रि में 9 दिन माता के दरबार में धूप-दीप एक निश्चित समय पर जलाएं और उसे पूरे घर में भी दिखाएं. इससे घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी.
5. माता को प्रसाद में गाय का दूध शहद डालकर विशेष रूप से चढ़ाएं. पाठ करने के पश्चात इस दूध को प्रसाद और माता के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करें. मां दुर्गा की पूजा में तुलसी दल या दूर्वा का प्रयोग भूलकर भी न करें.
6. नवरात्रि के नौवें दिन माता सरस्वती की विशेष रूप से साधना करें और विद्यादायिनी के सामने कलम, पुस्तक और वाद्य यंत्र आदि का पूजन करें.


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7. नवरात्रि में यदि सेहत साथ दे, तभी 9 दिनों का पूरा व्रत रखें अन्यथा नवरात्रि के पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास ही रखें. नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन, जैसी आपकी मान्यता हो, उसके अनुसार विधि-विधान से हवन अवश्य करना चाहिए.
8. नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक, प्रतिदिन एक कन्या का अथवा अष्टमी या नवमी, जिस दिन भी आप कन्या पूजन करते हों, 9 कन्याओं का पूजन करें.
9. नवरात्रि में सभी वर्णों की कन्या को देवी स्वरूप मानकर पूजन का विधान है. जैसे ज्ञान की प्राप्ति के लिए ब्राह्मण कन्या को, बल के लिए क्षत्रिय कन्या को, धन प्राप्ति के लिए वैश्य कन्या को और रोग मुक्ति के लिए शूद्र कन्या का विशेष रूप से पूजन करना चाहिए.


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