Govardhan Parvat Katha: पंचदिवसीय दीपावली महोत्सव में अमावस्या के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों के पूजन का विधान है. इसके साथ की घटना भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी है जिसकी कथा कुछ इस प्रकार है.


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क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा?
ब्रज क्षेत्र के मथुरा में श्री कृष्ण के अवतार लेने के बाद जैसे जैसे वह बड़े हुए खेलने कूदने और गायों को चराने के लिए जाने लगे. उन्होंने गोवर्धन पर्वत और गायों का महत्व को बताने के लिए इंद्र के स्थान पर उनकी पूजा करने का परामर्श दिया. उन्होंने ब्रज वासियों से कहा कि गोवर्धन पर्वत और गाय ही हमारी असली संपत्ति है, इन्हीं से हमारा जीवन चलता है, इसलिए इंद्र की पूजा बंद करके गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की जाए. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. 


इस दिन भक्त भांति भांति के पकवान बनाकर गोवर्धन पर्वत को भोग लगाते हैं. पूजन के समय स्वयं भगवान ने विशाल रूप धारण करके स्वयं को गोवर्धन घोषित किया. भगवान ने गोवर्धन के रूप में ब्रज वासियों के 56 पकवान का भोग लगाया. देवराज इंद्र को जब यह बात पता चली तो वह अत्यधिक क्रोधित हुए और उन्होंने रुष्ट होकर बादलों को ब्रज क्षेत्र में प्रलयकारी वर्षा करने का आदेश दिया. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी युक्ति से गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठाकर सभी ग्वालों को शरण दी. 


भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र और शेषनाग को यह आज्ञा दी कि वह इस समस्या का निराकरण करें. सुदर्शन चक्र ने पर्वत के ऊपर पहुंच कर जल वृष्टि को अवशोषित किया और शेषनाग ने कुंडलाकार होकर जल को गोवर्धन पर्वत के नीचे आने से रोका. देवराज इंद्र ने सात दिनों तक अपनी सारी शक्ति लगाकर देख लिया परंतु वह ब्रजवासियों का बाल भी बांका नहीं कर पाए. तब उन्हें समझ में आया और भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना की. इस अवसर पर ऐरावत ने आकाशगंगा के जल से और कामधेनु ने अपने दूध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया, जिससे वह गोविंद कहलाए. तब से भगवान श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है. 


इस तरह से करें पूजा
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन एवं भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता है. बाद में इन छप्पन भोग को मिलाकर जो प्रसादी तैयार की जाती है उसे अन्नकूट कहा जाता है. गोवर्धन पूजन के दिन गायों को दुहना निषिद्ध माना जाता है. इस अवसर पर गाय, बैल इत्यादि पशुओं को स्नान कराके, उनके पैर धोकर फूल, मालाओं और आभूषणों इत्यादि से सजाकर उनकी पूजा की जाती है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)