Danteshwari Mata Mandir Dantewada: छत्‍तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला बहुत प्रसिद्ध है. इसके पीछे सकारात्‍मक और नकारात्‍मक दोनों ही वजहें हैं. एक ओर तो यह इलाका भारत की सबसे पुरानी बसाहटों में से एक है. यहां की लोक परंपराएं, नृत्‍य-संगीत आदि मनमोहक हैं और आज भी जिंदा हैं. इसके अलावा इस जगह हिंदू धर्म की नजर से बहुत महत्‍व है क्‍योंकि यहां 52 वां शक्तिपीठ दंतेश्‍वरी मंदिर है. माना जाता है कि दंतेश्‍वरी मंदिर के नाम पर ही इस जगह का नाम दंतेवाड़ा पड़ा है. इसके अलावा नक्‍सली घटनाओं के चलते भी दंतेवाड़ा चर्चा में रहता है. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. 800 साल पुराने दंतेश्‍वर माता मंदिर के संर‍क्षण को लेकर एएसआई और मंदिर ट्रस्‍ट आमने-सामने आ गए हैं. 


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मंदिर ट्रस्‍ट के खिलाफ 5 एफआईआर 


मां दंतेश्‍वरी कॉरिडोर निर्माण में हुए डीएमएफ घोटाले के बाद एक नया मामला सामने आया है. मंदिर ट्रस्‍ट करीब 800 साल पुराने इस मंदिर के परिसर में फरवरी 2023 से तोड़फोड़ करवा रहा है, जिसके चलते केंद्रीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बीते 11 महीनों में एक के बाद एक 5 एफआईआर दर्ज कराई हैं. मंदिर के संरक्षित क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने और इतिहास मिटाने के चलते एएसआई दंतेवाड़ा कलेक्‍टर को 6 बार कारण बताओ नोटिस जारी कर चुका है. दरअसल दंतेवाड़ा के कलेक्‍टर मंदिर के ट्रस्‍टी होते हैं. 


माता सती के गिरे थे दांत 


जब सतयुग में राजा दक्ष द्वारा कराए गए यज्ञ में अपने पति भगवान शिव को ना बुलाए जाने पर दुखी होकर माता सती ने यज्ञ कुंड में खुद की आहुति दे दी थी. इसके बाद भगवान शिव बेहद व्‍याकुल होकर माता सती के शव को अपने हाथों में लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे. तब भगवान शिव के क्रोध से आने वाली प्रलय को रोकने के लिए भगवान विष्‍णु ने अपने चक्र से माता सती के शव को खंडित कर दिया था और उनके अवशेष जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ स्‍थापित हुए. धर्म-शास्‍त्रों के अनुसार दंतेश्‍वर मंदिर जहां बना है वहां माता सती का दांत गिरा था, इसलिए इसे दंतेश्‍वर माता मंदिर कहा गया. 


14 वीं शताब्‍दी में हुआ था निर्माण 


दंतेश्‍वरी मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्‍दी में हुआ था. दंतेवाड़ा का नाम भी दंतेश्‍वरी मंदिर के नाम पर पड़ा. ये देश के बेहद प्राचीन मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण करीब 800 साल पहले अन्‍नमदेव ने कराया था. इसके बाद इस मंदिर का पहला जीर्णोद्धार पांडुपुत्र अर्जुन के कुल के राजाओं ने 700 पहले करवाया था. बाद में 1932-33 में बस्‍तर की महारानी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी ने इसका जीर्णोद्धार कराया. 
  
इतना ही नहीं यह मंदिर तांत्रिकों की साधना स्‍थली भी है. कहा जाता है कि आज भी पहाड़ों-गुफाओं में रह रहे तांत्रिक गुप्‍त रूप से इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं. 
 
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)