Rudrabhishek: भगवान शंकर की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं. भोलेनाथ के रुद्र रूप का अभिषेक करने की परम्परा युगों पुरानी है. अभिषेक का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना. इस तरह रुद्राभिषेक का अर्थ हुआ कि रुद्र रूपी शिवलिंग का मंत्रों से अभिषेक करना. रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव हैं. रुद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव मनुष्य के दुखों को शीघ्र ही समाप्त कर देते है. यूं तो रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है किंतु प्रदोष की तिथि, सोमवार के दिन, श्रावण मास और शिवरात्रि में इसका विशेष महत्व है.


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रुद्राभिषेक की कथा



प्रचलित कथा के अनुसार एक बार शिव जी सपरिवार नंदी पर बैठकर कहीं विहार कर रहे थे. उसी समय माता पार्वती ने पृथ्वीलोक में लोगों को शिवलिंग का अभिषेक करते हुए देखा तो भगवान शंकर से पूछा कि इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है. भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा, जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है, वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से अलग-अलग फलों को प्राप्त करने के लिए अभिषेक करता है. उन्होंने आगे कहा कि जो व्यक्ति शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उससे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र ही मनोवांछित फल प्रदान करता हूं. जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है, वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है. 



रुद्राभिषेक की विधि 



रुद्राभिषेक में रुद्राष्टाध्यायी एकादशिनि रुद्री के ग्यारह बार पाठ किए जाते हैं, जिसे लघु रुद्र कहा जाता है, यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा होती है जिसका बहुत ही अधिक महत्व होता है. प्रभावशाली मंत्रों और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न कराया जाता है.


 


इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलने के साथ ही जिस स्थान पर यह पूजन कराया जाता है वहां नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा भी मिलता है.