Kalkaji Mandir History in Hindi: दिल्‍ली के कालकाजी मंदिर में 27 जनवरी की देर रात माता के जागरण के दौरान एक बड़ा हादसा हो गया. इस कार्यक्रम में भक्ति गीत गाने के लिए मशहूर सिंगर बी प्राक को बुलाया गया था. कार्यक्रम में लोगों की भारी भीड़ थी और लोग मंच के नजदीक पहुंचना चाह रह थे. तभी लोग मंच के साइड में बने मंच पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, तभी मंच गिर गया और इससे लोगों में अफरातफरी मच गई. हादसे में एक महिला की मौत हो गई और 17 लोग घायल हो गए. बता दें कि दिल्‍ली का प्रसिद्ध कालकाजी मंदिर बहुत पुराना है और दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. इस मंदिर में मातारानी को सात्विक, राजसी और तामसी तीनों तरह से भोग लगाया जाता है. आइए कालकाजी मंदिर का इतिहास जानते हैं. 


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1764 में हुआ था कालकाजी मंदिर का निर्माण 


कालकाजी मंदिर बेहद प्राचीन हिंदू मंदिर है. माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के प्राचीन हिस्से का निर्माण मराठाओं ने सन् 1764 ईस्वी में कराया था. यह मंदिर कालका देवी, देवी शक्ति या दुर्गा के अवतारों में से एक को समर्पित है. कालकाजी मंदिर देश के प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक है. 


महाकाली हुईं थीं प्रकट 


माना जाता है कि इस सिद्धपीठ का अस्तित्व अनादि काल से है और हर काल में इसका स्वरूप बदलता गया. मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुईं थीं और उन्‍होंने असुरों का संहार किया था. यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है. 


जब असुरों के आतंक से तंग आकर देवताओं ने इसी जगह शिवा (शक्ति) की अराधना की तो देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया, जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया. इसके बाद रक्तबीज नहीं मारा जा सका, तब देवी पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया था, जिन्होंने रक्तबीज का संहार किया. महाकाली का रूप देखकर सभी लोग भयभीत हो गए. फिर देवताओं ने काली की स्तुति की तो मां भगवती ने कहा कि जो भी इस स्थान पर श्रद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी.


नवरात्रि के मेले में घूमती हैं मातारानी 


इस मंदिर में वेदोक्त, पुराणोक्त और तंत्रोक्त तीनों विधियों से पूजा होती है. नवरात्र में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है. इस दौरान बड़ी संख्‍या में भक्‍त मातारानी के दर्शन करने आते हैं. लोग नवरात्रि के पहले दिन मंदिर से माता की जोत अपने घर ले जाते हैं और 9 दिन की अखंड ज्‍योति जलाते हैं. साथ ही मान्यता है कि अष्टमी और नवमी को माता मेला में घूमती हैं, इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है. इसके बाद 2 दिन तक आरती नहीं होती है और फिर सीधे दसवीं तिथि को आरती की जाती है.


इस मंदिर में सुबह और शाम को 2 बार आरती की जाती है. इसमें शाम को होने वाली आरती को तांत्रिक आरती के रूप में जाना जाता है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)