Kanyakumari name history in hindi: कन्याकुमारी भारत का सुदूर दक्षिणी छोर है जो तीन ओर से समुद्रों से घिरा हुआ है. अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा यह शहर बेहद खूबसूरत है, साथ ही इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है. स्‍वामी विवेकानंद ने शिकागो के धर्म सम्‍मेलन में जाने से पहले यहीं 3 दिन तक ध्‍यान किया था. अब लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले प्रधानमंत्री कन्‍याकुमारी पहुंच गए हैं और 45 घंटे के ध्‍यान के लिए बैठ गए हैं. 30 मई की शाम को पीएम मोदी विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुंचे और 1 जून तक ध्‍यान करेंगे. ध्‍यान में बैठने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भगवती अम्‍मन मंदिर में पूजा की. आइए जानते हैं इस शहर का नाम कन्‍याकुमारी क्‍यों पड़ा? 


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देवी का कन्‍यारूप  


इस शहर का नाम आदिशक्ति देवी पार्वती के कन्यारूप कन्याकुमारी के नाम पर पड़ा है. जिनका समुद्र के किनारे प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर को ही देवी अम्मन मंदिर कहते हैं. इस स्‍थान को लेकर एक पौराणिक कथा है, जो बताती है कि इस स्‍थान का नाम कन्‍याकुमारी कैसे पड़ा? 


कथा के अनुसार असुरराज महाबलि के पौत्र बाणासुर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की. शिव ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा, तो बाणासुर ने वर मांगा कि उसे कुमारी कन्या के अतिरिक्त कोई न मार सके. शिव से वरदान पाने के बाद बाणासुर का आतंक चारों तरफ फैल गया. देवता और ऋषि त्राहिमाम करने लगे. तब सभी लोग भगवान विष्णु से सहायता मांगने के लिए पहुंचे. विष्णु ने उन्हें आदिशक्ति की आराधना करने को कहा. 


आदिशक्ति ने लिया कुमारी कन्‍या का अवतार 


देवताओं-ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर देवी आदिशक्ति ने कुमारी कन्या का अवतार लिया. लेकिन कुमारी कन्या के रूप में अवतरित होने के बाद भी देवी की शिव के प्रति भक्ति और प्रेम कम नहीं हुआ. लिहाजा उन्होंने शिव से विवाह करने के लिए घनघोर तपस्या शुरू कर दी. शिव भी प्रसन्न होकर उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गए. लेकिन देवी का अवतार तो बाणासुर का वध करने के लिए हुआ था, यदि वे विवाह कर लेंगी तो बाणासुर का वध कैसे होगा? इससे सारे देवता चिंतित हो गए. उन्‍होंने देवी को समझाने की कोशिश भी की लेकिन वह नहीं मानीं. 


नारद जी ने मुर्गे का रूप लेकर दी बांग 


तब देवताओं ने नारद जी के साथ मिलकर छल से यह विवाह रुकवाने की योजना बनाई. भगवान शिव और कुमारी कन्‍या के विवाह के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय तय हुआ था. भगवान शिव कैलाश पर्वत से तय समय पर बारात लेकर आए लेकिन नारद जी ने आधी रात को ही मुर्गे का रूप लेकर बांग दे दी. इससे शिव जी को लगा कि सुबह हो गई और अब वह मुहूर्त पर नहीं पहुंच पाएंगे. ऐसे में  भोलेनाथ बारात लेकर वापस कैलाश पर लौट गए.


आज भी शिव जी का इंतजार कर रही हैं कुमारी कन्‍या 


उधर दुल्हन के रूप में तैयार देवी ने जब देखा कि बारात नहीं आई, तो वह दुख और क्रोध से भर उठीं. देवी के दिव्य सौंदर्य की चर्चा सुनकर बाणासुर ने विवाह का प्रस्ताव भेज दिया. तब बाणासुर और देवी में भयंकर युद्ध हुआ, जहां देवी ने चक्र से उसका वध कर दिया. इसके बाद परशुराम और नारद ने देवी से कलियुग के आखिर तक उसी जगह पर रहकर आसुरी शक्तियों से लड़ने की प्रार्थना की, जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया. तब परशुराम ने समुद्र तट पर त्रिवेणी में एक विशाल मंदिर की स्थापना की, जहां कन्यारूप में देवी को स्थापित किया गया. यहां सोलह श्रृंगार करके देवी आज भी विराजित हैं और शिव जी के आने का इंतजार कर रही है. 


इसी शिला पर की थी देवी ने तपस्‍या 


मान्‍यता है कि देवी ने समुद्र के भीतर उभरी जिस शिला पर शिव जी के लिए तपस्या की थी, उसे ही अब विवेकानंद रॉक के नाम से जाना जाता है. आज भी इस शिला पर देवी के चरण देखे जा सकते हैं, जिसे तमिल में 'श्रीपद परई' कहते हैं. अपनी अमेरिका यात्रा से पहले विवेकानंद ने इसी शिला पर लगातार तीन दिन तक ध्यान किया था, जिसके बाद ही उन्हें शिकागो जाने की प्रेरणा मिली. 


(Dislaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)