क्या आप जानते हैं गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान? रामायण काल से है संबंध
Pind daan in Gaya: हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उनकी आत्मा की शांति के लिए गयाजी में श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. ऐसे में यह सवाल आना लाजिमी है कि बिहार के गया में ही पिंडदान क्यों किया जाता है?
Gaya Me Hi Kyu Kiya Jata Hai Pind Daan: हिंदू धर्म में पितरों को बहुत महत्व दिया गया है. यही वजह है कि 15 दिन का पितृ पक्ष की पितरों को समर्पित है. इसके अलावा किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका पिंडदान भी किया जाता है. मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचता है. वैसे तो देशभर में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन बिहार स्थित 'गया' तीर्थ इनमें सर्वोपरि है. देश-दुनिया से लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए गया पहुंचते हैं.
गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान
पिंडदान के लिए गया को ही सर्वोपरी मानने के पीछे कई कारण हैं. धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है. साथ ही पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए ज्यादातर लोग गयाजी में ही पितरों का पिंडदान करते हैं.
माता सीता ने किया था पिंंडदान
इसके अलावा गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड के अनुसार भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ का पिंडदान गया में ही किया था. कथा के अनुसार जब माता सीता को फल्गु नदी के किनारे अकेला छोड़कर श्री राम और लक्ष्मण पिंडदान की सामग्री इकट्ठा करने के लिए चले गए थे. तभी राजा दशरथ वहां प्रकट हुए और उन्होंने पिंडदान की मांग की. ऐसे में माता सीता ने तुरंत नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाया और फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए पिंडदान किया. माता सीता के बनाए बालू के पिंडदान से राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तभी से मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
यह भी धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान भगवान श्रीहरि गया में पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)