Mysore Dussehra Celebration 2022: आज 5 अक्टूबर को पूरे देश में दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है लेकिन इसमें सबसे खास है मैसूर का दशहरा. मैसूर का दशहरा दुनिया भर में मशहूर है. देश दुनिया से लोग इसे देखने के लिए मैसूर आते हैं. इस साल भी मैसूर के दशहरे का जश्न अपने चरम पर है. विजयादशमी के खास मौके के लिए मैसूर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया है. विजयादशमी के जुलूस में सजे-धजे हाथी और सोने के सिंहासन पर विराजमान होकर देवी चामुंडा अपनी प्रजा के बीच निकलती हैं. 


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देवी चामुंडेश्‍वरी की पूजा से शुरू होता है उत्‍सव 


10 दिनों तक चलने वाला दशहरे का उत्‍सव चामुंडेश्वरी देवी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है. इस उत्सव की शुरुआत देवी चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा अर्चना से शुरू होती है. सबसे पहले मैसूर की रॉयल फैमिली देवी चामुंडेश्‍वरी की मूर्ति की पूजा करती है. दरअसल, मैसूर के इस दशहरे का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि चौदहवी शताब्दी में सबसे पहली बार हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने नवरात्रि का उत्सव मनाया था. इसके बाद वाडियार राजवंश के शासक कृष्णराज वडियार ने इसे दशहरे का नाम दिया और तब से 10 दिन के उत्सव की परंपरा चली आ रही है. 


डेढ़ लाख बल्बों से सजती है पहाड़ी


चामुंडेश्वरी देवी चामुंडी पहाड़ियों पर विराजमान हैं. दशहरे के मौके पर इस पहाड़ी को डेढ़ लाख से ज्यादा बिजली के बल्बों से सजाया जाता है. वहीं मैसूर महल की सजावट में 90 हजार से अधिक बिजली बल्बों का उपयोग होता है. दशहरे के जुलूस में सजे-धजे हाथियों पर साढ़े सात सौ किलो के सोने के सिंहासन पर विराजमान होकर चामुंडेश्वरी देवी निकलती है. चामुंडेश्वरी देवी की पहली पूजा रॉयल फैमिली करती है. सोने का यह सिंहासन मैसूर के कारीगरों की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जो कि साल में केवल एक बार विजयदशमी पर माता की सवारी के लिए उपयोग किया जाता है.


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