Astrological Benefits of Worshipping Lord Shiva: आशुतोष शिवजी जन गण के देव हैं. कहीं मनुष्य की आकृति के रूप में तो कहीं मंदिरों के भीतर बाहर या बाग बगीचों में विराजमान दिख जाते हैं. लिंग के रूप में भी बाबा प्राचीन से नवीनतम मंदिर, नदी किनारे, पेड़ के नीचे, खेत-खलिहान या फिर गली के नुक्कड़ में दिखते रहते हैं. उनको जन गण मन का देवता कहा जाता है. सबके लिए सरल, सुगम, सुलभ दर्शन होने और जो भी मिले उसी वस्तु को फिर वह चाहे एक पत्ता, फूल, फल या अंजुली या लोटा भर जल ही क्यों न हो, अर्पण करने से वह खुश हो जाते हैं. आशुतोष नाम भी इसलिए है, क्योंकि आशुतोष अर्थात शीघ्रता से संतुष्ट होने वाले देव. 


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शिवलिंग का रहस्य


लिंग शब्द का अर्थ है, जिसमें सबकुछ लीन हो जाए. इसका अर्थ है- बीज, सूक्ष्म या नैनो पार्टिकल, चिह्न, निशानी, प्रतीक आदि. अतः अनंत, शून्य, आकाश, ब्रह्मांड का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है. स्कंद पुराण के अनुसार, अनंत आकाश स्वयं ही लिंग है. धरती उसकी पीठ है. सबकुछ अनंत शून्य से पैदा होकर उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है. इससे यह बात भी साफ हो जाती है कि पुराणों में लिंग के आदि अंत को खोजने संबंधी कथाओं का रहस्य यही है कि लिंग सीधे-सीधे यूनिवर्स या ब्रह्मांड की ही छाया है. मार्कण्डेय पुराण में जल को पहली सृष्टि और जल मध्य में ब्रह्मांड की स्थिति दिखाकर एक ही देव शरीर में ब्रह्मांड के उर्ध्व, मध्य और अधो भागों को दिखा उन्हें क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिव नाम दिया गया है.  


शिवजी के बिना पूजा है अधुरी


कर्म पुराण में शिव स्वयं कहते हैं कि मैं ही विष्णु और देवी हूं. अतः आदि देव, सब देवों के देव, महादेव, त्रिदेव स्वयं शिव ही हैं. अंबिका सहित शिव पूजन में सब देवों की पूजा और इनकी पूजा नमस्कार के बिना बाकी देवों की पूजा की संपूर्णता की कल्पना करना ही गलत है, क्योंकि बिना इनकी पूजा के संपूर्णता हो ही नहीं सकती है. 


शिव को पंचमुख भी कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पांच तत्व ही शिव के पांच मुख हैं. योग शास्त्र में पांच तत्वों के रंग लाल, पीला, सफेद, सांवला और काला बताया गया है. इनके नाम भी सद्योजात (जल), वामदेव (वायु), अघोर (आकाश), तत्पुरुष (अग्नि) और ईशान(पृथ्वी) हैं. अतः ब्रह्मांड के मानवीकरण और जीवन के योग-वियोग की स्थिति का कार्य स्वयं ही होने से पंचमुख होना बताया गया है.


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