सावधान! फीकी पड़ रही है पृथ्वी की चमक, जानें रिसर्च में क्या हुआ डरावना खुलासा
हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, पृथ्वी की चमक में गिरावट का कारण कोई और नहीं बल्कि गर्म समुद्र का पानी है. चलिए जानते हैं क्या है ये रिसर्च.
नई दिल्ली : हाल ही में एक रिसर्च सामने आई है जिसके मुताबिक, समुद्र के गर्म होने से पृथ्वी की चमक में गिरावट आई है. जानें क्या कहती है ये चौंकाने वाली रिसर्च.
क्या कहती है रिसर्च
रिसर्च में पाया गया कि हमारा ग्रह अब 20 साल पहले की तुलना में प्रति वर्ग मीटर लगभग आधा वाट कम चमक रिफलेक्ट कर रहा है.
कैसे की गई रिसर्च
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में पृथ्वी की चमक (पृथ्वी से रिफलेक्ट चमक जो चंद्रमा की सतह को रोशन करता है) के दशकों के माप का इस्तेमाल किया गया है.
शोधकर्ताओं ने सेटेलाइट मेजरमेंट का भी विश्लेषण किया, जिसमें पाया गया कि पिछले दो दशकों में पृथ्वी के रिफ्लेक्टन्स या albedo में गिरावट आई है. उन्होंने पाया कि पृथ्वी अब 20 साल पहले की तुलना में प्रति वर्ग मीटर लगभग आधा वाट कम प्रकाश रिफ्लेक्ट कर रही है, जिसमें अधिकांश गिरावट पिछले तीन वर्षों के अर्थशाइन डेटा में हुई है.
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क्या कहते हैं शोधकर्ता
न्यू जर्सी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक शोधकर्ता और शोध के प्रमुख लेखक फिलिप गोडे ने कहा, यह पृथ्वी के रिफ्लेक्शन में 0.5 प्रतिशत की कमी के बराबर है. आमतौर पर पृथ्वी सूर्य के प्रकाश का लगभग 30 प्रतिशत रिफ्लेक्ट करती है.
गोडे ने कहा, जब हमने लगभग फ्लैट अल्बेडो के 17 सालों के बाद पिछले तीन सालों के आंकड़ों का विश्लेषण किया तो अल्बेडो ड्रॉप हमारे लिए एक आश्चर्य की बात थी.
गोडे 1998 से 2017 तक दक्षिणी कैलिफोर्निया में बिग बीयर सोलर ऑब्जर्वेटरी द्वारा एकत्र किए गए अर्थशाइन डेटा के बारे में बात कर रहे थे.
शोधकर्ताओं ने कहा कि जब नवीनतम डेटा को पिछले सालों से तुलना की तो चमक के कम होने की बात स्पष्ट हो गई. उन्होंने शोध के दौरान ये भी पाया कि दो चीजें पृथ्वी तक पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश को प्रभावित करती हैं - सूर्य की चमक और ग्रह की परावर्तन.
हालांकि शोधकर्ताओं द्वारा देखे गए पृथ्वी के अल्बेडो में परिवर्तन सूर्य की चमक में periodic changes से संबंधित नहीं थे. नासा के बादलों और Earth's Radiant Energy System (सीईआरईएस) प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में किए गए सेटेलाइट मेजरमेंट के अनुसार, हाल के सालों में पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर ब्राइट, रिफलेक्टिव निचले बादलों में कमी आई है. यह बात वास्तव में काफी चिंताजनक है.
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