नई दिल्ली: दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन (World's First Malaria Vaccine) को मान्यता मिल गई है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन  (World Health Organization) ने इस वैक्सीन को अपनी मान्यता दे दी है. अफ्रीका में हुए परीक्षणों के बाद वैक्सीन को मंजूरी दे दी गई है. वैज्ञानिकों का दावा है कि वैक्सीन लगने के बाद मलेरिया से लड़ने की क्षमता करीब 77% है. इस वैक्सीन का परीक्षण 450 बच्चों पर एक साल तक किया गया. आपको बता दें कि ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline) नामक कंपनी द्वारा बनाए गए मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) नामक टीके से हजारों जानें बचाए जाने की उम्मीद है.


कई दशक बाद बनी वैक्सीन


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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मलेरिया दुनिया की सबसे पुरानी और जानलेवा बीमारियों में से एक है जिसकी अब तक कोई एक वैक्सीन नहीं थी. करीब दशकों की लंबी मेहनत के बाद मलेरिया की वैक्सीन तैयार हो गई तो इसे पोलियो मुक्ति की दिशा में मिली एक बड़ी कामयाबी जैसा माना जा रहा है. 


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बच्चों के लिए सेफ है वैक्सीन


इस वैक्सीन का नाम है मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) जिसे मेडिकल की भाषा में RTSS भी कहा जाता है. इसके आने से भारत समेत पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली है. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार WHO मलेरिया कार्यक्रम के प्रमुख डॉ.पेड्रो अलोन्सो ने कहा कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) बच्चों के लिए भी सुरक्षित है. यह 5 तरह के मलेरिया पैरासाइट से लोगों को बचाएगा. 


अब यह दवा कंपनी जीएसके इसे दुनियाभर में बांटने के लिए तैयार है. अमेरिका जैसे विकसित देशों में मलेरिया के मामले दुर्लभ होते हैं. वहां पर हर साल करीब 2000 मलेरिया के केस सामने आते हैं. खासतौर से उन लोगों में मलेरिया संक्रमण होता है जो इस बीमारी से ग्रसित देश या लोगों के बीच से होकर आते हैं.


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GSK का दावा है कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) सिर्फ मलेरिया के लिए ही नहीं बल्कि किसी भी तरह के पैरासाइट जनित बीमारी के इलाज में कारगर है. पैरासाइट किसी भी वायरस या बैक्टीरिया से ज्यादा जटिल होते हैं. डॉ. पेड्रो अलोन्सो ने कहा कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) का विकास अभी पहली सीढ़ी है.


इसलिए अफ्रीका में हुआ परीक्षण


इस बीमारी और टीके का परीक्षण अफ्रीका में इसलिए हुआ क्योंकि यहीं के देशों में हर साल हजारों बच्चे इस बीमारी से मारे जाते हैं. WHO महानिदेशक टेड्रॉस अधनोम ग्रेब्रेयेसिस ने यूएन के दो सलाहकार समूहों का समर्थन मिलने के बाद इस वैक्सीन को मंजूरी की घोषणा की और इसे ऐतिहासिक पल बताया. उन्होंने कहा, इसे अफ्रीका में अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने तैयार किया है और हमें उन पर गर्व है. लेकिन 80 के दशक में ये बात सामने आई कि मलेरिया के मच्छर के प्रोटीन से वैक्सीन बनाई जा सकती है। तब से अब तक लगातार कोशिश जारी थी लेकिन 2019 में कई दौर के ट्रायल के बाद ही साफ हो पाया कि मलेरिया की वैक्सीन कारगर है.


डेंगू की दवा भी तैयार


इस बीच वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कपाउंड की खोज की है जो डेंगू के वायरस को शरीर में फैलने से रोकता है. इस दवा का ट्रायल चूहों में किया गया. जो कि बेहद सफल रहा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द ही इसे इंसानों पर भी परीक्षण किया जाएगा. वहीं इंसानी क्लीनिकल ट्रायल्स में अगर यह दवा सफल होती है तो इसे दुनियाभर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बांटा जा सकता है. इससे विकासशील देशों में डेंगू जैसी बीमारी को रोकने में मदद मिलेगी.