चिली में लगे टेलिस्कोप से भारत के वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया ब्रह्मांड का अद्भुत रहस्य
भारतीय वैज्ञानिकों ने चिली के अटाकामा रेगिस्तान में मौजूद समुद्र तल से 5,064 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद दूरबीन से हैरान कर देने वाले खुलासे किए हैं. लंबे समय तक की गई रिसर्च से ग्रहों के निर्माण की जटिलताओं के बारे में जानकारी मिलती है.
भारत के खगोलविदों ने जमीन से 489 प्रकाश वर्ष दूर मौजूद एक अनोखे तीन तारा सौर मंडल में दिलचस्प खोज की है. इस खोज से खगोलविदों को ग्रहों के बनने की बेहतर समझ हासिल करने में मदद मिलेगी. ओडिशा में राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (NISER) के खगोलविदों ने चिली के अटाकामा रेगिस्तान में मौजूद रेडियो दूरबीन का इस्तेमाल करके यह खोज की है. लंबे समय तक की गई उनकी रिसर्च से ग्रहों के निर्माण की जटिलताओं के बारे में जानकारी मिलती है.
जिस तीन-तारा प्रणाली का अध्ययन किया जा रहा था, वह 'GG Tau A' सौर मंडल था जो ग्रह बनाने के अपने प्रारंभिक चरण में है. माना जाता है कि यह प्रणाली लगभग 5 मिलियन वर्ष पुरानी है. जो बात इसे अद्वितीय बनाती है, वह यह है कि इसमें तीन 'सूर्य' हैं, जिनमें एक विशाल प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क यानी नए तारे के चारों तरफ घूमने वाली गैस और धूल की एक डिस्क भी है. क्योंकि तीन तारे एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं, इसलिए गैस और धूल का विशाल चक्र समय के साथ ग्रहों का निर्माण करेगा. अपने परिक्रमा पैटर्न में तारों के गुरुत्वाकर्षण की वजह से महत्वपूर्ण रूप से बदल जाता है. इससे वैज्ञानिकों को आकर्षक जानकारी मिलती है.
NISER के खगोलविदों की टीम का नेतृत्व वैज्ञानिक लिटन मजूमदार ने किया, जो NASA में विजिटिंग साइंटिस्ट भी हैं. उनकी एक्सपर्टीज तारा, ग्रह निर्माण, खगोल रसायन विज्ञान और एक्सोप्लेनेट का अध्ययन है. उनकी टीम और उन्होंने प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क से एटॉमिक उत्सर्जन का पता लगाया है जो ग्रहों के मूलभूत निर्माण खंड हैं. ये उत्सर्जन तारा प्रणाली के सबसे ठंडे और सबसे घने क्षेत्रों में पैदा हुए थे. टीम ने अपनी रिसर्च तीन-तारा प्रणाली के सबसे ठंडे इलाकों पर केंद्रित किया, जहां तापमान 16 केल्विन या माइनस (-)257.15 डिग्री सेल्सियस जितना कम माना जाता है.
वैज्ञानिकों के लिए ग्रहों के निर्माण के दौरान गैस के द्रव्यमान का पता लगाने के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड महत्वपूर्ण है. कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की रासायनिक संरचना कार्बन और ऑक्सीजन को ले जाती है. साथ ही अन्य गैसों के साथ प्रतिक्रिया करके मीथेन (CH4) जैसे कंपाउंड बनाती है. इसका चमकीला रंग खगोलविदों को प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क का मॉडल बनाने में मदद करता है.
खोज से मिली जानकारी
वैज्ञानिक हमारे जैसे एकल तारा सौर मंडल का अध्ययन कर रहे हैं और उन्होंने अल्फा सेंटॉरी जैसे बाइनरी स्टार सिस्टम पर भी रिसर्च की है. तीन-तारा प्रणाली की जटिलताओं को समझना अद्वितीय है. हमारे ब्रह्मांडीय पड़ोस में मौजूद GG Tau A तारा प्रणाली भी खगोल भौतिकी में अहम सवालों के जवाब देने में मदद करती है. यह तारों के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से होने वाली जटिलताओं के तहत ग्रह बनने की मौलिक प्रकृति को समझने में मदद करता है. गुरुत्वाकर्षण, तापमान, द्रव्यमान (ऊर्जा), दबाव और फ्रीक्वेंसी के प्रमुख पहलू हैं. तीन-तारा प्रणाली में इनका अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में अभूतपूर्व खोज करने के लिए एक चुनौती के साथ-साथ अवसर भी मिलता है.
चिली के अटाकामा रेगिस्तान में रेडियो टेलीस्कोप
भारत के खगोलविदों ने अटाकामा पाथफाइंडर एक्सपेरीमेंट या APEX रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग किया. यह पृथ्वी पर सबसे ऊंची दूरबीनों में से एक है. चिली के अटाकामा रेगिस्तान में मौजूद यह दूरबीन समुद्र तल से 5,064 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है. यह सुविधा तीन यूरोपीय शोध संस्थानों - यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला, मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी और ओनसाला स्पेस ऑब्जर्वेटरी द्वारा निर्मित और संचालित की जाती है. APEX टेलीस्कोप एक संशोधित ALMA (अटाकामा लार्ज मिलीमीटर एरे) प्रोटोटाइप एंटीना है और ALMA वेधशाला के स्थल पर है. चिली के अटाकामा रेगिस्तान में मौजूद ALMA टेलीस्कोप 66 रेडियो दूरबीनों का एक खगोलीय इंटरफेरोमीटर है, जो मिलीमीटर और सबमिलीमीटर तरंगदैर्ध्य पर अंतरिक्ष से विद्युत चुम्बकीय विकिरण का निरीक्षण करता है.