Latest Research on Antarctica Continent: क्या बर्फ से ढका निर्जन अंटार्कटिका महाद्वीप महामारियों से बचा रह सकता है. यह सवाल लंबे वक्त से दुनियाभर के वैज्ञानिकों के मन में जिज्ञासा का सबब रहा था लेकिन कोरोना महामारी ने इसका जवाब दे दिया. कोरोना ने स्पष्ट कर दिया कि अंटार्कटिका महाद्वीप का अलगाव इसे दुनिया के बाकी हिस्सों की घटनाओं से बचाकर नहीं रख सकता. 


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क्या अंटार्कटिका अब नहीं रहा असाधारण स्थान?


न्यूजीलैंड के कैंटरबरी यूनिवर्सिटी की डेनिएला लिगेट दो दशकों से अधिक समय से अंटार्कटिका पर रिसर्च कर रही हैं. उन्होंने अंटार्कटिका महाद्वीप पर कोरोना के प्रभाव पर एक लेख लिखा है, इस रिसर्च में उन्होंने देखा कि कोरोना जैसी महामारी ने अंटार्कटिका महाद्वीप असाधारणता के सिद्धांत का अंत कर दिया है. पृथ्वी पर सबसे दूरस्थ इलाके में स्थित अंटार्कटिका बर्फ से ढका विशाल महाद्वीप है, जिसे उसकी खास परिस्थिति की वजह से लंबे समय से एक असाधारण स्थान माना जाता रहा है. 


निर्जन होने के बावजूद पहुंच गया था कोरोना वायरस


इसके बावजूद उसकी यह परिस्थिति कोरोना महामारी को महाद्वीप में रोकने में सफल नहीं रही. अंटार्कटिका में कोरोना संक्रमण का पहला मामला मार्च 2020 में क्रूज शिप ग्रेग मोर्टिमर पर घूमने आए पर्यटकों और कर्मचारियों में दिखा. हालांकि दिसंबर 2020 तक यह वायरस अंटार्कटिक महाद्वीपीय भूभाग पर दिखाई नहीं दिया था. उसी दौरान महाद्वीप पर चिली के बर्नार्डो ओ'हिगिन्स केंद्र पर रिसर्च में लगे कर्मचारियों में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए थे. जिसके बाद वर्ष 2020-21 की गर्मियों में (दिसंबर से फरवरी तक) अंटार्कटिक में पर्यटन बंद हो गया. उस अवधि में केवल 15 पर्यटकों ने अंटार्कटिक की यात्रा की. वे सभी दक्षिण अमेरिका से नौकाओं पर सवार होकर आए थे. 


महाद्वीप पर केवल शांतिपूर्ण अनुसंधान की है इजाजत


बताते चलें कि अंटार्कटिका महाद्वीप दुनिया का इकलौता ऐसा महाद्वीप है, जो लंबे समय से अलग नियमों से संचालित किया जा रहा है. वर्ष 1959 की अंटार्कटिक संधि के मुताबिक इस क्षेत्र का उपयोग केवल वैज्ञानिक अनुसंधान और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. यह संधि शीत युद्ध के दौर में की गई है. इस संधि पर शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका और सोवियत संघ समेत 12 देशों ने साइन किए थे. फिलहाल 56 देश इस संधि के पक्षकार हैं.


(एजेंसी इनपुट भाषा)