How to choose right Sunglasses: अल्ट्रावायलट यानी यूवी किरणों का रेडिएशन मानव शरीर के लिए बेहद हानिकारक माना जाता हैं. हालांकि, आम तौर पर लोग अपनी स्किन को तो अल्ट्रावायलट रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बचाने पर ध्यान देते हैं, लेकिन आंखों की रक्षा करना अक्सर भूल जाते हैं. जैसा कि पिछली गर्मियों के सीजन में पराबैंगनी विकिरणों का स्तर चरम पर होने के दौरान खुले आसमान के नीचे समय बिताने वाले महज 60 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने धूप के चश्मे (सनग्लास) का इस्तेमाल किया. धूप का चश्मा सिर्फ फैशन का जरिया भर नहीं हैं. ये आंखों को पराबैंगनी विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचाने में भी मददगार हैं. आइए जानें कि हम अपनी आंखों के लिए उपयुक्त धूप का चश्मा कैसे चुन सकते हैं.


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अल्ट्रावायलट रेडिएशन क्या है?


-पराबैंगनी विकिरण सूर्य जैसे स्रोतों से उत्पन्न एक प्रकार की ऊर्जा है. ये विकिरण तीन तरह की होती हैं : यूवीए, यूवीबी और यूवीसी. यूवीए और यूवीबी हमारी त्वचा और आंखों को सूरज से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार मानी जाती हैं.


पराबैंगनी विकिरणें प्रत्यक्ष, बिखरी हुई या परावर्तित हो सकती हैं. लेकिन सूर्य से उत्पन्न अन्य प्रकार की ऊर्जा (दृश्यमान प्रकाश और अवरक्त (इंफ्रारेड) विकिरण) के विपरीत हम पराबैंगनी विकिरण को न तो देख सकते हैं, न ही महसूस कर सकते हैं. यही कारण है कि साफ आसमान या गर्म तापमान को पराबैंगनी विकिरणों के उच्च स्तर के संकेत के रूप में नहीं देखा जाता.


पराबैंगनी विकिरणों का स्तर बताने के लिए ‘यूवी इंडेक्स’ का इस्तेमाल किया जाता है. आधिकारिक दिशा-निर्देशों में ‘यूवी इंडेक्स’ 3 या उससे ऊपर होने पर त्वचा और आंखों को पराबैंगनी विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचाने के उपाय करने की सलाह दी जाती है.


खतरनाक किरणें कैसे आंखों को प्रभावित करती हैं?


-पराबैंगनी विकिरणों के उच्च स्तर के संपर्क में रहने पर आंखों और उसकी आसपास की त्वचा पर लघु और दीर्घकालिक, दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं.


छोटी अवधि के प्रभाव में प्रकाश के प्रति संवेदनशील होना या 'फोटोकेराटाइटिस' की चपेट में आना शामिल है, जिसे 'स्नो ब्लाइंडनेस' भी कहते हैं.


'फोटोकेराटाइटिस' कॉर्निया (पुतली की रक्षा करने वाला आंखों का सफेद सख्त हिस्सा, जो प्रकाश को अंदर आने देता है) के लिए धूप से झुलस जाने (सनबर्न) की तरह है. इसमें आंखों में सूजन, दर्द, लालिमा और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता की शिकायत सताती है. 'फोटोकेराटाइटिस' आमतौर पर रोशनी से बचाव करने और दवाएं डालने पर ठीक हो जाता है.


वहीं, लंबी अवधि के प्रभाव बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं. इनमें आंखों पर मांस का टुकड़ा 'टेरिजियम' उभर सकता है, जिसे ‘सर्फर आई’ भी कहा जाता है. अगर यह टुकड़ा कॉर्निया के ऊपर बढ़ने लगे, तो रोशनी बाधित हो सकती है. 'टेरिजियम' को हटाने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है.


लंबे समय तक पराबैंगनी विकिरणों के उच्च स्तर के संपर्क में रहने पर मोतियाबिंद का खतरा बढ़ने के साथ-साथ आंख और पलकों के ऊपर की त्वचा पर कैंसर होने का भी जोखिम रहता है.


त्वचा पर क्या असर पड़ता है?


-पराबैंगनी विकिरण त्वचा की रौनक छिनने और वक्त से पहले झुर्रियां पड़ने का कारण बन सकती हैं. ये विकिरणें त्वचा में मौजूद ‘इलास्टिन’ और ‘कोलैजन’ जैसे प्रोटीन को तोड़ती हैं, जिससे उसका लचीलापन कम होता है.


सही धूप का चश्मा कैसे चुनें?


ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सभी धूप के चश्मे पर उनके सुरक्षा का स्तर बयां करने वाली श्रेणी दर्ज करना अनिवार्य है. दोनों देशों में पांच श्रेणी के लेंस उपलब्ध हैं. शून्य और पहली श्रेणी के धूप के चश्मे सिर्फ फैशन के लिहाज से होते हैं. वहीं, दूसरी श्रेणी के धूप के चश्मे सूर्य की चमक से मध्यम स्तर की सुरक्षा और पराबैंगनी विकिरणों से अच्छी सुरक्षा उपलब्ध कराते हैं. इसी तरह, तीसरी श्रेणी के धूप के चश्मे सूर्य की चमक से उच्च स्तर की सुरक्षा और पराबैंगनी विकिरणों से अच्छी सुरक्षा देते हैं. चौथी श्रेणी के धूप चश्मे का लेंस बहुत गहरे रंग का होता है और केवल अत्यधिक चकाचौंध वाली जगहों पर इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. गाड़ी चलाते समय में इन्हें लगाने से बचना चाहिए. (द कन्वरसेशन)