Malaria eradication:  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक नए टीके को मंजूरी दे दी है, जिसके बारे में वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह मलेरिया(malaria kaise hota hai) के खिलाफ लड़ाई में गेमचेंजर साबित होने वाला है. इस बीमारी से हर साल अफ्रीका में 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है. परीक्षणों से पता चला है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित आर21/मैट्रिक्स वैक्सीन मलेरिया को 75 प्रतिशत तक कम करती है.इसका निर्माण सस्ते में और बड़े पैमाने पर किया जा सकता है. कन्वर्सेशन वीकली ने इस क्रांतिकारी वैक्सीन के बारे मेंऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में जेनर इंस्टीट्यूट के निदेशक और मुख्य अन्वेषक एड्रियन हिल से बात की. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

आर21/मैट्रिक्स वैक्सीन 
 मलेरिया के मामलों में कमी की गणना करके लगभग 75 प्रतिशत प्रभावकारिता देख रहे हैं. इससे पहले का सबसे अच्छा टीका एक वर्ष में लगभग 50 प्रतिशत था और तीन वर्षों में उससे कम था. यह एक भौतिक सुधार है लेकिन यह मुख्य सुधार नहीं है. इसमें बड़ा अंतर यह है कि आप इसे उस पैमाने पर कैसे निर्मित कर सकते हैं जो वास्तव में अफ्रीका में उन अधिकांश बच्चों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है जिन्हें मलेरिया के टीके की आवश्यकता है.


मलेरिया से अफ्रीका सबसे अधिक प्रभावित
अफ्रीका के मलेरिया प्रभावित इलाकों में हर साल लगभग 40 मिलियन बच्चे पैदा होते हैं जिन्हें टीके से लाभ होगा. हमारा टीका 14 महीनों में चार खुराक वाला है, इसलिए आपको लगभग 160 मिलियन खुराक की आवश्यकता है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, हमारा विनिर्माण और वाणिज्यिक भागीदार, हर साल इस वैक्सीन की करोड़ों खुराक का उत्पादन कर सकता है, जबकि पिछली वैक्सीन का निर्माण 2023 से 2026 तक प्रति वर्ष छह मिलियन खुराक के पैमाने पर किया जा सकता है.