डियर जिंदगी : यादों का डस्टबिन!
हर बरस की अगर पांच-पांच बातें भी दिमाग में जमी रह गईं और आपकी उम्र कम से कम तीस-चालीस बरस है तो सोचिए कितनी यादें दिल, दिमाग और चेतन-अवचेतन मन पर अमरबेल की तरह पसरी हैं.
वह भी क्या दिन थे. कैसे शानदार लोग थे, वह! ख्यालों को रोमांचित करती यादें हैं, लेकिन वैसी जिंदगी अब कहां.
ऐसी यादें हर दिन हमारे आसपास मंडराती रहती हैं. दिमाग में अपना ठिकाना बनाती जाती हैं. हर बरस की अगर पांच-पांच बातें भी दिमाग में जमी रह गईं, और आपकी उम्र कम से कम तीस-चालीस बरस है तो सोचिए कितनी यादें दिल, दिमाग और चेतन-अवचेतन मन पर अमरबेल की तरह पसरी हैं.
यह केवल अतीत की छाया नहीं है, जो 'दिन' की रोशनी पड़ते ही गुम हो जाए. अतीत ने हमारे भीतर आत्मा तक सुरंग बना ली है. जो लोग अक्सर अतीत से घिरे रहते हैं, उसे ‘रिकॉल’ करने को गप्प मानते हैं, उनकी स्थिति कुछ ऐसी मानिए जैसे कि घर में आपने बहुत ही अच्छे डस्टबिन में कचरा जमा किया हुआ है.
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कचरा उन चीजों का है, जो आपको बहुत प्रिय हैं और डस्टबिन भी बेहद शानदार क्वालिटी का है, लेकिन इसके बाद भी आप कचरे को कितने दिन तक घर में रखिएगा! और रख भी लिया तो उसका क्या करेंगे.
ठीक यही बात याद, अतीत पर लागू होती है. अतीत, उसकी यादें हमें वर्तमान में रहने और भविष्य की ओर निर्भय होकर बढ़ने में सबसे अधिक बाधाएं डालती हैं.
एक सरल मिसाल से समझिए…
जयपुर के राजेश मीणा की कॉलेज के दिनों में किसी खास जाति के युवा से अनबन हो गई. अब राजेश के बच्चे कॉलेज जाने लायक होने वाले हैं, जिससे विवाद हुआ वह समय की नदी में सवार होकर कब का दूसरे ‘गांव’ पहुंच गया, लेकिन उसकी जाति अब तक राजेश के दिल, दिमाग से चिपकी हुई है.
राजेश अकेले नहीं हैं, एक समाज के रूप में हमारी सोच कुछ इसी तरह से तैयार हो गई है. जबकि यह विचित्र व्यवहार है.
जिससे आपका झगड़ा हुआ, कभी उससे प्रेम भी तो रहा होगा. लेकिन हम प्रेम आसानी से बिसरा देते हैं, और झगड़े को आत्मा से चिपकाए घूमते रहते हैं.
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अतीत को दिल से चिपकाए रहने वाले, यादों की जुगाली करने की आदत हमें चैन से जीने नहीं देती. हम जीना तो आज के साथ चाहते हैं, लेकिन हर दूसरे दिन अतीत के परदे से यादें हमारे सामने आकर हमें ‘पीछे’ की ओर घसीट ले जाती हैं.
इस तरह हम दो कदम आगे की ओर बढ़ते, तो चार कदम पीछे की ओर मुड़ जाते हैं. यादों की अमरबेल जीवन का सारा अमृत सोख लेती है. हमारा वर्तमान अकेला, दुखी और यादों की हवेली में कैद होकर रह जाता है.
यादों की जुगाली का एक और लोकप्रिय उदाहरण हमें उन प्रेम संबंधों के रूप में भी मिलता है. जिनके पन्ने कॉलेज, उम्र के किसी खास मोड़ पर लिखे जाते हैं, लेकिन अक्सर उनके रंग अधूरे छूट जाते हैं. उसके बाद अक्सर यह ‘अधूरे’ रंग जिंदगी के रस, वर्तमान की दहलीज पर ग्रहण के रूप में उभरते रहते हैं.
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इनको आप चाहे जो नाम दें, लेकिन मेरे लिए यह केवल अतीत की जुगाली है. यादों का डस्टबिन है. अपने आज को हम इनसे जितना दूर रख पाएंगे, हमारा भविष्य उतना ही आत्मीय, स्नेहिल और प्रेम से महकता रहेगा.
जिंदगी के सावन को हरियाला बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसे अतीत के ग्रहण और यादों की जुगाली से दूर, बहुत दूर रखा जाए.
यादमुक्त शुभकामना के साथ!
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