Olympics 2024: पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत के निशानेबाज अर्जुन बबूता का सपना अधूरा रह गया. 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में अर्जुन बबूता के हाथ से मेडल निकल गया. उनके चौथे स्थान पर खत्म करने के बाद कोच दीपाली को तगड़ा झटका लगा है. उन्हें इससे उबरने के लिए तकरीबन एक घंटा लग गया. हजारों मील दूर बैठी दीपाली अपने सबसे मेहनती शिष्यों में से एक के दर्द को महसूस कर सकती थी जब वह अपने पहले ही ओलंपिक में पदक जीतने के इतने करीब था लेकिन भारी दबाव के बीच चौथे स्थान पर रहा. 


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16 साल की उम्र में राष्ट्रीय टीम में की थी एंट्री


बबूता जब 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय टीम में एंट्री की थी उसी समय से उन्हें दीपाली कोचिंग दे रहीं है. उन्हें एक ऐसा निशानेबाज मिला जिसका पॉस्चर ठीक नहीं था, लेकिन उसकी नजर सटीकता और परफेक्ट होने पर थी. उन्हें भरोसा है कि बबूता जल्द ही इस झटके से उबरेंगे और 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक की ओर उनका सफर पेरिस के पास शेटराउ निशानेबाजी रेंज में होने वाले घटनाक्रमों से प्रेरित होगा. इस बार के गेम की बात करें तो वह एक समय मेडल के बेहद करीब थे, लेकिन घबराहट में खराब निशाना लगा बैठे. 


क्या बोली दीपाली


दीपाली ने बबूता के मेडल चूकने पर पीटीआई से कहा, 'वह बहुत बुरे दौर से गुजरा था जब उसे पीठ में चोट लगी थी जिससे तीन साल पहले टोक्यो ओलंपिक में जगह बनाने की उसकी उम्मीदें खत्म हो गई थीं. निशानेबाजी के दौरान वह दो बार रेंज में गिर गया था क्योंकि उसके पैर सुन्न हो जाते थे. उन्होंने बताया, 'कोविड महामारी ने उसे आराम करने और ठीक होने का समय दिया लेकिन हर बार वह फोन करके पूछता था कि क्या मैं ट्रेनिंग शुरू कर सकता हूं और हर बार मुझे उसे बताना पड़ता था कि उसे पहले फिट होने की जरूरत है.' 


कोच ने फेंक दिया फोन


दीपाली ने कहा, 'आज का दिन मेरे लिए भी मुश्किल था और मैंने उसे फाइनल में दूसरे से चौथे स्थान पर आते देख अपना फोन फेंक दिया. मुझे पता है कि मैंने उसके जूनियर दिनों के दौरान उसके साथ कितनी मेहनत की है और चोट के दौर से गुजरने में उसकी कितनी मदद की है.  वह उन लोगों में से एक है जो फाइनल में लगातार 10.8 अंक बना सकता है और मुझे यकीन है कि उसका युग 2025 में शुरू होगा. 


क्या बोले अर्जुन?


चौथे स्थान पर फिनिश करने के बाद बबूता ने कहा, 'निश्चित रूप से निराशा है, भाग्य मेरे साथ नहीं था. एक दिन मेरी शूटिंग को परिभाषित नहीं कर सकता है. मुझे यही सीख मिली है कि अपना 100 प्रतिशत देकर भी आप जीत नहीं सकते हैं. आपके हाथ में अपना सर्वश्रेष्ठ देना है, जो आपको देना होगा. मुझे गर्व है, क्योंकि जैसी मेहनत कई सालों से हो रही थी, तकनीक, रणनीति सब काम कर रहे थे। एक निर्णायक शॉट काफी चीजें बदल सकता था। उस शॉट को छोड़कर बाकी चीजों के लिए मुझे गर्व है। ओलंपिक में दबाव होता है क्योंकि यह चार साल में आता है और देश की उम्मीद आपसे जुड़ जाती हैं। ओलंपिक में चकाचौंध भी काफी होती है, लेकिन आपको प्रोसेस के साथ रहना होता है और मानसिक तौर पर फाइट करनी होती है.'