नई दिल्ली: भारतीय टीम प्रबंधन यो-यो टेस्ट को फिटनेस का मानदंड मानकर चल रहा है लेकिन अंबाती रायडू को इस वजह से टीम से बाहर करने का मसला सीओए प्रमुख विनोद राय के दिमाग में है और वह बीसीसीआई से पूछ सकते हैं कि राष्ट्रीय टीम में चयन के लिए यह फिटनेस का एकमात्र मानदंड क्यों है. रायडू ने आईपीएल में 602 रन बनाए लेकिन यो यो टेस्ट में नाकाम होने के कारण उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया. इसके बाद इस टेस्ट को लेकर बहस छिड़ गई. 


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सीओए के करीबी बीसीसीआई के एक अधिकारी ने कहा, "हां, सीओए हाल की चर्चाओं से वाकिफ है. उन्होंने अभी तक हस्तक्षेप नहीं किया है क्योंकि यह तकनीकी मसला है लेकिन उनकी योजना क्रिकेट संचालन के प्रमुख सबा करीम से पूरी जानकारी लेने की है." उन्होंने कहा, "राय को रायडू और संजू सैमसन के मामले का पता है. इस पर अभी फैसला नहीं किया गया है लेकिन वह एनसीए ट्रेनरों से इस खास टेस्ट के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिये कह सकते हैं." 


बीसीसीआई कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी ने भी सीओए को छह पेज का पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने पूछा है कि यो यो टेस्ट कब और कैसे चयन के लिये एकमात्र फिटनेस मानदंड बन गया.


चयन का प्रमुख आधार है यो-यो टेस्ट 
भारतीय क्रिकेट टीम में चुने जाने का वर्तमान में जो क्राइटेरिया है, उसमें यो-यो टेस्ट प्रमुख है. यदि आप यो यो टेस्ट क्लीयर नहीं कर सकते तो टीम इंडिया से दूर रहिए. हाल ही में ऐसे खिलाड़ियों की सूची बनाई गई है जो 16.1 के मानक को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. ये खिलाड़ी अनफिट घोषित कर दिए गए हैं. यानी इनका टीम में चयन नहीं होगा. टीम के प्रमुख कोच रवि शास्त्री ने शनिवार को यह साफ किया कि यदि कोई सोच रहा है कि यो यो टेस्ट के बिना भी टीम में शामिल हुआ जा सकता है तो वह गलत है. 


कई पूर्व क्रिकेटर इस मानक से सहमत नहीं
हालांकि, बहुत से पूर्व क्रिकेटर और कुछ चयनकर्ता भी इन मानकों से सहमत नहीं हैं. इनका मानना है कि चयन के लिए फिटनेस टेस्ट ही एकमात्र जरूरी नहीं होना चाहिए. लेकिन टीम प्रबंधन इस बात की परवाह नहीं करता कि पूर्व क्रिकेटर क्या सोच रहे हैं. हालांकि, यो यो टेस्ट की खोज करने वाले शख्स भी इस वात से इत्तेफाक रखते हैं कि यो-यो टेस्ट सलेक्शन का मानक नहीं है. 


यो यो टेस्ट के जन्मदाता डॉ. जेने बैंग्सबो साकर फिजियोलाजिस्ट हैं. उन्होंने 1991 में इसे फुटबॉल में लागू किया था. इसका मकसद था सभी खेलों में फिटनेस की महत्ता को साबित करना. जब उनसे यह पूछा गया कि क्या यह टेस्ट एथलीट्स की मैदान पर परफॉर्मेंस को साबित करने वाला है तो उनका जवाब था, यह एकदम साफ है कि खिलाड़ी का चयन केवल इसी टेस्ट के आधार पर नहीं हो सकता. उन्होंने कहा, इस टेस्ट का जन्म 1991 में हुआ जब मुझे लगा कि खेलों में फिटनेस कितनी जरूरी है. उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल साफ है कि इस टेस्ट को टैंपर नहीं किया जा सकता. उन्होंने आगे कहा, इस टेस्ट में खिलाड़ी की परफॉर्मेंस को दूर से आंका जाता है. यह केवल फिटनेस के लिहाज से बेस्ट टेस्ट है.