फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं निशानेबाज दीपक कुमार, एशियन गेम्स में जीता सिल्वर
33 साल के दीपक को हालांकि पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में इस बड़े पदक के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा.
पालेमबांग. निशानेबाज दीपक कुमार और लक्ष्य शेरॉन ने इंडोनेशिया में शानदार प्रदर्शन करते हुए 18वें एशियाई खेलों में रजत पदक अपने नाम किए. 33 साल के दीपक को हालांकि पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में इस बड़े पदक के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा, उन्होंने 14 साल पहले निशानेबाजी शुरू की थी. यह उनके करियर का सबसे बड़ा पदक है लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखा, जो शायद देहरादून में गुरूकल में रहने से हुआ है.
दीपक के माता पिता ने उन्हें देहरादून में गुरूकुल अकादमी भेजा था. वह धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं और गुरूकुल से मिली शिक्षा को फैलाने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं जो भी हूं, वो गुरूकुल की वजह से हूं. इसमें मुझे जीवन के असली महत्व का पता चला. मेरे मात पिता ने मुझे दिल्ली से दूर रखा क्योंकि वे शहर के माहौल से मुझे दूर रखना चाहते थे. ’’
दीपक फाइनल्स में ज्यादातर समय पिछड़ रहे थे, उन्होंने अपनी मन में चल रही बात के बारे में कहा कि उन्होंने सिर्फ यह सोचा कि उनके कोच मनोज कुमार क्या कहेंगे. दीपक ने कहा, ‘‘मैं क्वालीफिकेशन में भी पिछड़ रहा था. मैंने उनके शब्दों के बारे में सोचा. वह हमेशा कहते हैं, तुम में काबिलियत है और तुम अपनी सीमाएं जानते हो.’ शुरूआत भी अच्छी नहीं थी और बीच में भी स्थिति खराब थी. इसलिए मैंने संयमित रहने की कोशिश की. ’’
पिछले साल ही भारतीय टीम में बनाई जगह
दीपक ने पिछले साल ही भारतीय टीम में जगह बनाई थी, लेकिन वह इस पदक को शुरुआत ही मानते हैं. उन्होंने कहा कि हर कोई सोचता रहता है कि उन्हें क्या मिलेगा. मैंने गुरूकुल के दिन में जो भी सीखा है, उसे सभी में फैलाने में विश्वास रखता हूं. किसी भी चीज के बारे में दुखी होने का कोई मतलब नहीं है. जिंदगी बहुत छोटी है. उन्होंने कहा, ‘‘असली खिलाड़ी वो है जो अपनी जानकारी को खुद तक सीमित नहीं रखता. वह सभी के साथ इसे साझा करता है. जैसे एक शिक्षक करता है.’’
दोस्त को पछाड़ा
यह पूछने पर कि अपने दोस्त और एयर फोर्स के साथी रवि को पछाड़ने के बाद उन्हें कैसा लगा तो उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम अपने दोस्तों के साथ जीतने या हारने के बारे में सोचेंगे तो हमारे जीवन का फायदा नहीं. हम करीबी दोस्त हैं और काफी समय एक साथ बिता चुके हैं. आज के बाद भी कुछ नहीं बदलेगा. ’’
वहीं लक्ष्य ने चार साल पहले इस खेल में प्रवेश किया था और अब 20 साल की उम्र में वह एशियाड में पुरुष ट्रैप में रजत पदकधारी बन गए. इस तरह उन्होंने पूर्व विश्व चैम्पियन मानवजीत सिंह संधू की 2006 दोहा चरण की उपलब्धि की बराबरी की.
अनुभवी संधू भी आज ट्रैप स्पर्धा में थे और पदक की दौड़ में बने हुए थे लेकिन अंत में वह पांच लक्ष्य चूक गये और चौथे स्थान पर रहे. लक्ष्य के पिता सोमवीर पूर्व राष्ट्रीय चैम्पियन पहलवान हैं और जैसे ही स्पर्धा खत्म हुई वह संधू के पैर छूने गए. ट्रैप फाइनल में चीनी ताइपे के कुन्पी यांग ने जीत दर्ज की जिन्होंने 48 निशाने लगाए जिससे उन्होंने विश्व रिकॉर्ड की बराबरी भी की. लक्ष्य ने 43 और दक्षिण कोरिया के दाएमयियोंग अहन ने 30 अंक से कांस्य पदक जीता.
बचपन से बंदूक पसंद
हरियाणा के जींद के निशानेबाज लक्ष्य ने कहा, ‘‘बचपन से ही मुझे बंदूक और राइफल पसंद थी. मैं अपने पिता के साथ इसमें हाथ आजमाता था. लेकिन जब मैंने गंभीरता से निशानेबाजी में आने का फैसला किया तो उन्हें मुझ पर इतना भरोसा नहीं था. लेकिन अब मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें मुझ पर गर्व होगा. ’’
लक्ष्य को कमरे से बाहर नहीं निकाला
शॉटगन कोच मनशेर सिंह ने कहा कि लक्ष्य जूनियर कार्यक्रम में शामिल था लेकिन जल्द ही उसने सीनियर टीम में जगह बना ली. लेकिन उन्हें डर था कि कहीं वह इस बड़े टूर्नामेंट का दबाव महसूस नहीं करे तो उन्होंने खेल गांव में उसे सबसे दूर ही रखा और लक्ष्य अपने कमरे में ही रहते थे. अंत में हालांकि उनके लिए यह शानदार रहा.
यहां निराशा हाथ लगी
हालांकि महिलाओं के 10 मीटर फाइनल में अपूर्वी चंदेला को निराशा हाथ लगी, वह पांचवें स्थान पर रहीं जबकि प्रतिभाशाली युवा इलावेनिल वालारिवान फाइनल्स के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकीं. सीमा तोमर छह महिलाओं के ट्रैप फाइनल में अंतिम स्थान पर रहीं जबकि श्रेयसी सिंह क्वालीफिकेशन में सातवें स्थान से फाइनल के लिये क्वालीफाई नहीं कर सकीं.