Harvinder Singh Paralympics Gold Medalist : डेढ़ साल की उम्र में डेंगू हुआ और एक लोकल डॉक्टर के इंजेक्शन से ऐसा साइड इफेक्ट हुआ कि पैरों ने काम करना बंद कर दिया. नन्हीं सी उम्र में ऐसा होना किसी सदमे से कम नहीं. पैरालंपिक के इतिहास में भारत को तीरंदाजी में पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले हरविंदर सिंह की कहानी साहस और जूनून से भरी हुई है. उन्होंने जीवन में तमाम चुनौतियों को पार करते हुए दिखाया कि अगर सपने बड़े हों और जूनून हो तो लक्ष्य को हासिल करने में कितनी भी रुकावटें कम पड़ जाती हैं. आइए जानते हैं हरविंदर सिंह की स्टोरी...


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भारत को तीरंदाजी में दिलाया पहला गोल्ड


भारतीय पैरा तीरंदाज हरविंदर सिंह ने पेरिस पैरालंपिक की पुरुष रिकर्व ओपन तीरंदाजी इवेंट के फाइनल में पोलैंड के लुकास सिजेक को 6-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीता. उनका यह पैरालंपिक में लगातार दूसरा मेडल है. टोक्यो पैरालंपिक में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था. पेरिस में हरविंदर ने दुनिया के 35वें नंबर के खिलाड़ी और छठे वरीय सिजेक को खिताबी मुकाबले में 28-24, 28-27, 29-25 से शिकस्त देकर इतिहास रच दिया.



कौन हैं हरविंदर सिंह?


हरियाणा के कैथल के सुदूर गांव के एक शानदार एथलीट हरविंदर सिंह ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद तीरंदाजी की दुनिया में एक चमकता सितारा बनकर उभरे हैं. मिडिल क्लास किसान परिवार में जन्मे हरविंदर का एक गोल्ड मेडलिस्ट पैरालंपिक तीरंदाज बनने का सफर किसी प्रेरणा से कम नहीं है. हरविंदर की साहस की कहानी छोटी तब शुरू हो गई थी जब वह सिर्फ डेढ़ साल के ही थे. 


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डेढ़ साल की उम्र में लगा झटका 


हरविंदर जब मात्र डेढ़ साल के थे तब उन्हें डेंगू बुखार हो गया. एक लोकल डॉक्टर के इंजेक्शन का उन पर इतना बुरा असर हुआ कि पैरों ने काम करना बंद कर दिया. हरविंदर के साहस की कहानी यहीं से शुरू हुई. उनके खेलों के प्रति जूनून ने आज दुनिया का सबसे सफल पैरा तीरंदाज बना दिया. तीरंदाजी से उनका परिचय 2010 में पंजाबी यूनिवर्सिटी में हुआ, जहां उन्होंने तीरंदाजों के एक ग्रुप को ट्रेंनिंग लेते देखा. दो साल बाद इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट की पढ़ाई करते हुए, उन्होंने लंदन पैरालिंपिक में तीरंदाजी में एथलीटों को देखा, जिसने उनमें एक प्रोफेशनल तीरंदाज बनने की इच्छा जगा दी.


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कोविड में पिता ने दिया साथ 


कोविड-19 महामारी के दौरान हरविंदर की ट्रेनिंग में काफी दिक्कतें आईं. हालांकि, उनके पिता ने अपने खेत को तीरंदाजी रेंज में बदल दिया, जिससे हरविंदर अपना अभ्यास जारी रख सके. 2018 में हरविंदर ने जकार्ता में एशियाई पैरा खेलों में पुरुषों के व्यक्तिगत रिकर्व ओपन इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की. 



गोल्ड से 20 दिन पहले मां को खोया


हरविंदर के पेरिस में गोल्ड जीतने की कहानी इसलिए भी भावुक करने वाली है क्योंकि उन्होंने अपने इवेंट से ठीक 20 दिन पहले मां को खो दिया. मेडल जीतने के बाद मां को याद करते हुए इस एथलीट ने कहा, 'मैंने इवेंट से ठीक 20 दिन पहले अपनी मां को खो दिया था. इसलिए मैं मानसिक रूप से बहुत दबाव महसूस कर रहा था. मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ खोया है, यहां तक ​​कि अपनी मां को भी, इसलिए मुझे वहां से मेडल लेना था और सौभाग्य से मैं जीत गया. यह सब मेरी कड़ी मेहनत और मेरी मां के आशीर्वाद के कारण है.'


2021 में भी जीता था मेडल


हरविंदर की उपलब्धियां लगातार बढ़ती रहीं और उन्होंने 2021 में टोक्यो गेम्स में तीरंदाजी में भारत के लिए पहला पैरालंपिक मेडल जीतकर इतिहास रचा था. वैश्विक मंच पर उनकी सफलता उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ता का प्रमाण थी. 2023 में, हरविंदर उस टीम का हिस्सा थे, जिसने हांगझोउ में एशियाई पैरा खेलों में पुरुषों के डबल्स रिकर्व इवेंट में ब्रॉन्ज जीता.