नई दिल्ली. तुर्की में हुए डीफलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली भारत की नंबर-1 एमेच्योर महिला गोल्फर दीक्षा डागर ने गोल्फ कोर्स पर अपनी अब तक सफलता का श्रेय अपने पिता को दिया है. 16 साल की दीक्षा हाल ही में मलेशियन लेडिज एमेच्योर ओपन चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रही थीं. इसके अलावा वह दिसंबर 2016 में ऑल इंडिया लेडिज एमेच्योर चैम्पियनशिप में उपविजेता रहीं थीं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दीक्षा को 18 अगस्त से दो सितंबर तक इंडोनेशिया में शुरू होने जा रहे 18वें एशियाई खेलों में हिस्सा लेना है. दीक्षा का मानना कि मलेशियन चैम्पियनशिप के प्रदर्शन से एशियाई खेलों के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ा है.


दीक्षा ने कहा कि यह उनका पहला एशियाई खेल है और वह इसे लेकर काफी उत्साहित हैं. एशियाई खेलों में गोल्फ का आयोजन 21 से 25 अगस्त तक होने हैं. उन्होंने कहा, कि मलेशियन चैम्पियनशिप के प्रदर्शन के बाद एशियाई खेलों को लेकर मेरा मनोबल बढ़ा है. हालांकि मुझे पता है कि इसमें अच्छा करने के लिए मुझे इससे और अच्छा प्रदर्शन करना होगा. एशियाई खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए हमने कोच मंदीप जोल और राहुल बजाज के मार्गदर्शन में मई-जून में इंडोनेशिया में ट्रेनिंग हासिल की है.


दीक्षा के पिता कर्नल नरिन्दर डागर खुद एक गोल्फर रह चुके हैं और वह दीक्षा को छह साल की उम्र से ही गोल्फ सिखाते आ रहे हैं. यह पूछे जाने पर कि पिता गोल्फर थे, इसलिए गोल्फ खेलना शुरू किया या फिर शुरू से उन्हें यह खेल अच्छा लगता था.


पिता भी हैं गोल्फर
दीक्षा ने कहा कि पिता गोल्फर हैं, इसलिए गोल्फर नहीं बनीं. मुझे शुरू से ही यह खेल अच्छा लगता था. छह साल की उम्र में ही मैंने गोल्फ खेलना शुरू कर दिया था और 12 साल की उम्र में मैंने पहली बार आईजीयू गोल्फ टूर्नामेंट में हिस्सा लिया. वहां मैंने अच्छा प्रदर्शन किया. उसके बाद से यह खेल मुझे अच्छा लगने लगा और मैंने इसे अपना करियर बना लिया."


युवा गोल्फर ने कहा कि शुरू में मुझे कोई कोचिंग देने के लिए तैयार नहीं था. इसके बाद मेरे पिता ने मुझे कोचिंग देना शुरू किया. हालांकि यह आसान नहीं था क्योंकि वह आर्मी में जॉब भी करते थे. इसलिए मुझे कोचिंग देने के लिए वह अलग से समय निकालते थे.  


उन्होंने कहा कि मेरे पिता मुझे अब भी कोचिंग देते हैं, इसलिए अब तक की अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने पिता को देना चाहती हूं. कोचिंग के अलावा वह मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ाते थे. अगर वह नहीं होते तो मैं आज यहां नहीं होती और न ही ऐसा प्रदर्शन कर पाती.