नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के निर्वासित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन द्वारा हाल ही में बोर्ड की कार्य समिति की बैठक में शामिल होने के कारण उन्हें आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने कहा कि उसके फैसले के बाद उनकी स्थिति ‘कमजोर’ हो गयी है। न्यायालय ने आईपीएल भ्रष्टाचार के मामले में अपने फैसले में उनके संदर्भ में कहा था कि ‘हितों के टकराव’ था।


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न्यायमूर्ति टी एम ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की पीठ ने हालांकि श्रीनिवासन को सोमवार को अवमानना नोटिस जारी नहीं किया क्योंकि उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने निर्देश प्राप्त कर न्यायालय को अवगत कराने के लिये शुक्रवार तक का समय मांगा था।


न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमने उनके मामले को स्पष्ट रूप से हितों के टकराव वाला पाया था, इसलिए वह ऐसा नहीं कर सकते या फिर चुनाव लड़ सकते हैं। इस निष्कर्ष के बाद उनकी स्थिति काफी कमजोर हो गयी है। उन्हें बैठक में शामिल नहीं होना चाहिए था। हमें इस तरह नहीं देखना चाहिए कि हम उनके पीछे पडे हैं। हमारे फैसले का भाव यह है कि उन्हें हितों के टकराव में पाया गया है। हम इससे खुश नहीं हैं।’


सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा कि श्रीनिवासन ने न्यायालय की अवमानना नहीं की है क्योंकि न्यायालय का फैसला उन्हें चुनाव लड़ने से रोकता है परंतु चुनाव होने तक उन्हें वर्तमान पद पर बने रहने से नहीं। सिब्बल ने कहा, ‘वैसे भी बैठक में (8 फरवरी को चुनाव की तारीख निर्धारित की गयी) कोई फैसला नहीं किया गया।’


इस पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘एक बार जब शीर्ष अदालत ने यह कह दिया कि इसमें हितों का टकराव था और आप चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है, क्या आप बीसीसीआई की बैठकों में हिस्सा ले सकते हैं।’ न्यायालय ने क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार की अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि श्रीनिवासन ने शीर्ष अदालत के फैसले का कथित रूप से उल्लंघन करते हुये बोर्ड की वाषिर्क आमसभा की बैठक मार्च में कराने के लिये कार्यसमिति की बैठक की।


शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस मामले में बीसीसीआई के अध्यक्ष के रूप में श्रीनिवासन के कर्तव्यों और गुरूनाथ मयप्पन के ससुर तथा आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक के रूप में हितों का टकराव था।