`अकबर` की बगावत बर्दाश्त न कर सका औरंगजेब, डेक्कन में भटकने के लिए हुआ मजबूर
Akbar Second Revolt: गद्दी के लिए जिस औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को बंदी बनाया. उत्तराधिकार की लड़ाई में भाइयों को नहीं बख्शा उसे इस बात का अंदेशा नहीं था कि उसका प्रिय शहजादा अकबर द्वितीय बागी हो जाएगा.
Akbar II Revolt against Aurangzeb: मुगलों के इतिहास में सबसे अधिक विवादास्पद बादशाहों में जिंदा पीर के नाम से मशहूर औरंगजेब को जाना जाता है. औरंगजेब पर विवाद का दाग उत्तराधिकार की लड़ाई के दौरान लगा. इतिहासकार बताते हैं कि शाहजहां की पहली पसंद दाराशिकोह था लेकिन औरंगजेब को पिता की इच्छा रास नहीं आई और उसने विद्रोह कर दिया. दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने की लड़ाई में वो अपने भाइयों पर भारी पड़ा और हिंदुस्तान का तख्त उसके नाम हुआ लेकिन एक कहावत हम सबने सुनी है जैसी करनी, वैसी भरनी. औरंगजेब ने जिस बगावत के हथियार को अपने पिता शाहजहां के खिलाफ चुना था वही कहानी 1681 में दोहराई गई.
अकबर द्वितीय ने किया था विद्रोह
औरंगजेब को यकीन नहीं था कि उसका सबसे प्रिय बेटा जो अकबर द्वितीय के नाम से जाना जाता था वो विद्रोह का झंडा बुलंद करेगा. छत्रपति शिवाजी डेक्कन में लगातार उसे चुनौती पेश कर रहे थे. यहां तक कि उन्होंने मराठा राज्य भी स्थापित किया लेकिन औरंगजेब को वो चुनौती कुछ खास नहीं लगी लेकिन 1681 की एक घटना से वो हतप्रभ था. उसका बेटा अकबर द्वितीय बागी हो चुका था और वो मराठाओं की मदद से औरंगजेब को हटाने के काम में जुट गया. मुंतखब-लुबाब के मुताबिक राजपूत राजा राना राज सिंह और दुर्गा दास राठौर उसे उकसा रहे थे कि अगर वो औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह करेगा तो उसे हिंदुस्तान की शाही गद्दी तक पहुंचाने में मदद करेंगे. दुर्गा दास ने भरोसा दिलाया कि वो अकूत खजाने के साथ साथ 40 हजार घोड़े भी उपलब्ध कराएंगे. इस तरह से अपरिपक्व शहजादा अकबर द्वितीय उनके झांसे में आ गया और विद्रोह का झंडा उठा लिया. औरंगजेब को जब बागी होने की जानकारी मिली तो वो परेशान हो उठा.
औरंगजेब की चालाकी कर गई काम
सात जनवरी 1681 को औरंगजेब को जानकारी मिली कि अकबर द्वितीय ने खुद को बादशाह घोषित कर उसके खिलाफ आ रहा है. यह देख उसने अकबर को मार्मिक खत लिखकर कहा कि वो उसे आज्ञाकारी शहजादा मानता था लेकिव वो राजपूतों के बहकावे में आ गया. अकबर को वो खत के जरिए बताता है क्या वो राजपूतों की हैसियत को भूल गया है. यही नहीं उसने कहा कि बगावत का अंजाम क्या होगा उसे पता होना चाहिए. उसे लड़ाई में पीछे रहकर हिस्सा लेना चाहिए. जब इस तरह की जानकारी राजपूतों को हुई तो उन्हें लगा कि अकबर द्वितीय ने धोखा दिया है. इस तरह से राजपूत अकबर की मदद करने से पीछे हट गए, वैसी सूरत में उसके पास एक ही रास्ता था कि वो मराठाओं के शरण में जाए और उसने ठीक वैसा ही किया. मराठाओं की खार मुगलों से पुरानी थी. शिवाजी के बाद शंभाजी मराठा शक्ति के नेता थे. उन्होंने अकबर को भरपूर मदद की. यह बात जब औरंगजेब को पता चली तो वो खुद डेक्कन के लिए रवाना हो गया. कई महीनों की मशक्कत के बाद अकबर द्वितीय पकड़ा गया. अकबर को मार दिया गया लेकिन औरंगजेब अगले 25 साल डेक्कन में ही रहने के लिए मजबूर हो गया.