Ghosi Bypoll 2023:  यूपी के मऊ जिले में घोसी विधानसभा सीट के लिए 5 सितंबर में मतदान होने जा रहा है. इस सीट पर मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह चौहान और समाजवादी पार्टी उम्मीदवार सुधाकर सिंह के बीच है. दारा सिंह चौहान 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का दामन छोड़ समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमा रहे थे और उन्हें जीत हासिल हुई लेकिन एक साल के बाद उनका अखिलेश यादव से मोहभंग हुआ और एक बार फिर भगवा झंडे में उन्हें अपनी राजनीति सुरक्षित दिखाई दी. यहां हम बात करेंगे कि यह उपचुनाव अखिलेश यादव के लिए क्यों महत्वपूर्ण है. दरअसल अखिलेश यादव पीडीए की रणनीति पर काम कर रहे हैं. पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज की राजनीति में उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा है लेकिन अगर उम्मीदवार की बात करें तो भरोसा सुधाकर सिंह पर जताया है जो सवर्ण समाज से आते हैं. घोसी उपचुनाव का नतीजा किस तरह से उनकी राजनीति को प्रभावित करेगा उसे समझने से पहले जातीय समीकरण को समझना भी जरूरी है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दारा सिंह का राजनीतिक करियर



अगर दारा सिंह के राजनीतिक करियर को देखें को दल बदल से उनका गंभीर रिश्ता रहा है. अब यदि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह की बात करें तो वो समाजवादी पार्टी में बने रहे हैं. सुधाकर सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सर्वसमाज का समर्थन मिलता रहा है.


घोसी का जातीय समीकरण


घोसी विधानसभा में कुल चार लाख तीस हजार मतदाता उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. अगर सवर्ण समाज के मतों की बात करें तो उनकी संख्या लाख से भी कम है. पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज ही चुनावी हार और जीत में अहम भूमिका निभाएंगे. करीब 40 हजार यादव, 62 हजार दलित, राजभर-40 हजार, मुस्लिम मतदाता 60 हजार है. इसके अलावा अन्य वोटर्स की संख्या करीब 72 हजार है. अगर इन संख्याओं पर ध्यान दें तो एक बात साफ है कि अखिलेश यादव जिस पीडीए की बात कर रहे हैं उनकी तादाद ज्यादा है और वो चुनावी जीत-हार में अहम भूमिका निभा सकते हैं. मुस्लिम यादव गठजोड़ को समाजवादी पार्टी का मुख्य आधार माना जाता है. इस लिहाज से समाजवादी पार्टी को लीड मिलती नजर आ रही है लेकिन यहां एक सवाल है कि क्या वो बीएसपी के वोट बैंक में सेंध लगा पाएंगे, अगर बीएसपी में सेंधमारी करने में कामयाब होते हैं तो नतीजा दिलचस्प हो सकता है. 


क्या कहते हैं जानकार


जानकारों का कहना है कि यह उपचुनाव ना सिर्फ समाजवादी पार्टी के लिए बल्कि सुभासपा के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस सीट पर जीत किसी पार्टी से अधिक चेहरों की हुआ करती थी. अगर आप फागू चौहान की जीत को देखें तो वो जिस किसी भी दल में रहे उनकी जीत होती रही. अगर आप दारा सिंह चौहान की जीत को भी देखें तो वो जिस किसी भी दल में रहे जीत उनकी हुई, इसका अर्थ यह है कि इस विधानसभा में जातीय समीकरण का बोलबाला रहा है, अब खुले तौर अखिलेश यादव पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज की राजनीति को धार दे रहे हैं तो उनके लिए यह किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं है.