Independence Day 2023: 15 अगस्त का दिन यूं ही नहीं खास है, करीब 150 साल की अंग्रेजी गुलामी से आजादी मिली. खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला. लेकिन आजादी की लड़ाई इतनी आसान नहीं रही. अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज जो भारतीय छितिज पर 150 साल तक उगता और डूबता रहा वो 15 अगस्त 1947 को सदा के लिए डूब गया. 1853 में इंग्लैंड की सरकार ने ईस्ट इंडिया से सत्ता पूरी तरह अपने हाथ में ली. और उसका असर जमीन पर दिखाई भी देने लगा था. अंग्रेजी सरकार के खिलाफ मुखर विरोध देश के अलग अलग हिस्सों में नजर आने लगा था. 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को आवाज मिली हालांकि उसे अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली लेकिन यह साफ हो चुका था कि अंग्रेजी सत्ता के चूलों को हिलाया जा सकता है. 19वीं सदी के अंत तक अलग अलग संस्थाओं और संगठनों ने यह मांग शुरू कर दी कि शासक और शोषित के बीच के अंतर को कम करना बेहद जरूरी है. जिस तरह से सोने की चिड़िया यानी भारत को लूटा जा रहा है उसे बंद करना ही होगा. 20वीं सदी में यह आवाज और जोर पकड़ने लगी. आखिर रौलेट एक्ट के विरोध, असहयोग आंदोलन, दांडी सत्याग्रह को कौन भूल सकता है जब भारत अंतर्विरोधों के बीच एक मंच पर आने लगा था. अंग्रेजों के खिलाफ उस विरोध को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आवाज दे रहे थे.


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करो या मरो का नारा


आजादी की लड़ाई के सामने अंग्रेजी सरकार को बार बार झुकना पड़ा लेकिन वो आजादी की जगह किस्तों में रियायतें दे रहे थे. अंग्रेजों को कहना था कि वो संवैधानिक दायरे के भीतर अपनी प्रजा को अधिकार प्रदान कर रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत और उनके दावों में कोई मेल नहीं था. देश की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी अलग अलग तरीकों से अपनी आवाज उठा रहे थे. इन सबके बीच 1942 को वो साल आया जब सतारा, हाजारा और बलिया में आजादी के मतवालों ने स्वतंत्रता सरकार की स्थापनी की. इन तीनों जगहों पर बागी सरकार लंबे समय तक अस्तिस्व में तो नहीं रही लेकिन अंग्रेजों को संदेश था कि अब लड़ाई निर्णायक होगी. अंग्रे्जी सरकार के खिलाफ मुंबई में जब महात्मा गांधी ने करो या मरो का आह्वान किया तो वो नारा हर किसी के लिए अचंभित करने वाला था क्योंकि गांधी जी की पहले की लड़ाई आग्रह पर आधारित थी लेकिन उन्होंने स्पष्ट तौर पर नारा दिया कि अब लड़ाई आर पार की होने वाली है.


1942-46 का कालखंड अंग्रेजों पर पड़ा भारी


महात्मा गांधी के इस आह्वान का असर भी दिखाई देने लगा. इंग्लैंड के तत्कालीन पीएम विस्टन चर्चिल तो गांधी जी के मरने की कामना करने लगे लेकिन इंग्लैंड की सरकार को भी अब आभासा हो चुका था कि भारत में उनका अस्तित्व अब कुछ समय तक ही सीमित है. 1942 के बाद कैबिनेट मिशन, रॉयल नेवी में विद्रोह और दूसरे विश्व युद्ध की घटनाएं अंग्रेजी राज की चूलें हिला रहे थे, जिस तरह से पहले वर्ल्ड वार के समय अंग्रेजों ने महात्मा गांधी से सहयोग की अपील की थी, कुछ उसी तरह की अपील एक बार फिर अंग्रेजों ने की थी लेकिन महात्मा गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि अब और अधिक ठगे नहीं जा सकते. इसके साथ ही सुभाष चंद्र बोस. जर्मनी और जापान के साथ मिलकर देश के बाहर रहकर अंग्रेजी सरकार के लड़ाई लड़ रहे थे. ऐसी सूरत में अंग्रेजों को यकीन हो गया कि अब भारत को अपने काबू में रख पाना आसान नहीं होगा.