भोपाल: जब विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ तो मध्य प्रदेश को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सबसे कमजोर कड़ी बताया गया. आज जब नतीजे लगभग साफ हैं तो एमपी में बीजेपी की धमक सबसे तेज सुनाई दे रही है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों हिंदी राज्यों में कमल खिला है. विधानसभा चुनाव परिणाम ने कई थियरी बदल दी है. सबसे अहम ये कि मोदी मैजिक राज्यों में काम नहीं करेगा. जेहन में मोदी से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं वाले नारे आ रहे थे। एक पैटर्न सा बना. 2018 के बाद से ही बीजेपी एक के बाद एक कई राज्यों में हारी. भारत के नक्शे पर भगवा हिस्सा घटता गया. कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश से मजबूत हुआ ये ट्रेंड बदलता हुआ दिख रहा है। लेकिन ट्विस्ट भी है. मोदी मैजिक के साथ क्षत्रपों पर भरोसा दिखाना भाजपा को फायदा पहुंचा गया.


मुझे चीफ मिनिस्टर होना चाहिए या नहीं


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एक रोचक घटना 24 सितंबर को भोपाल में हुई थी. जब एक पत्रकार के सवाल पर अमित शाह तिलमिला गए. सवाल था - क्या भाजपा शिवराज सिंह चौहान को सीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करेगी? तब अमित शाह ने जवाब दिया कि अभी शिवराज सीएम हैं, आगे का आगे देखा जाएगा। इसे ठीक दस दिन बाद शिवराज सिंह चौहान डिंडोरी में थे। इस बीच प्रियंका गांधी तंज कस चुकी थीं। वो बार-बार इस बात का जिक्र कर रहीं थीं कि पीएम आजकल मंच से शिवराज का नाम भी नहीं लेते। तब शिवराज ने खुद ही कमान हाथ में ले लिया। डिंडोरी की सभा में शिव गर्जना हुई- क्या मैं खराब सरकार चला रहा हूं. मामा को चीफ मिनिस्टर होना चाहिए कि नहीं. जब भीड़ ने हां कहा तो शिवराज ने वोट का वादा मांग लिया. शिवराज कई बार भावुक भी हो गए. बुधनी में महिलाओं के बीच शिवराज सिंह ने कहा - अगर मैं नहीं रहूंगा तो आप मेरे जैसे भाई को मिस करोगे. हालांकि खंरगौन में मामा ने ये भी कहा कि वो किसी पद का लालच नहीं करते. तो जब हाई कमान ने संकोच किया तो शिवराज सिंह चौहान ने ही खुद को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. 


भरोसे की लक्ष्मी


राहुल गांधी के लिए भारत जोड़ो यात्रा के बाद ये चुनाव लिटमस टेस्ट था. I.N.D.I.A अलायंस के अगुआ नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय गणना करा ओबीसी पॉलिटिक्स में बीजेपी को मात देने का फॉर्मूला दिया। राहुल गांधी ने लपक लिया. मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी जीतने पर जातीय गणना का ऐलान कर दिया। लेकिन शिवराज सिंह चौहान ओबीसी के प्रतिनिधि तब से रहे हैं जब बीजेपी को बनियों की पार्टी कहा जाता था. जो नतीजे और रूझान हैं उसके मुताबिक मध्य प्रदेश में शिवराज दो तिहाई बहुमत हासिल करने जा रहे हैं. यानी 2018 से कहीं ज्यादा. शिवराज ने वो कर दिखाया जो ज्योति बसु और नवीन पटनायक जैसे नेता ने किया है. कमलनाथ के एक साल को छोड़ लगातार 18 साल की सत्ता के बावजूद ये प्रचंड जीत शिवराज को अलग लीग में रखती है. ऐसे में नरेंद्र तोमर, फग्गन सिंग कुलस्ते या वीडी शर्मा से शिवराज को रिप्लेस करनी की गलती बीजेपी करेगी, इसमें मुझे शक है.


दलित-आदिवासी साथ


शिवराज ने महाकौशल, चंबल, बस्तर हर जगह से कांग्रेस के पॉकेट में सेंध लगाई है। मतलब ये है कि ओबीसी के अलावा दलितों और आदिवासियों ने शिवराज में भरोसा दिखाया है। आधी आबादी के लिए लाडली लक्ष्मी योजना के बाद लाडली बहना योजना की स्कीम वरदान साबित हुई. हालांकि कांग्रेस ने डबल मनी का ऐलान किया लेकिन जनता ने जो दे रहा है उसी पर भरोसे का मन बनाया.जब दशमत रावत पर एक बीजेपी छुटभैया नेता ने पेशाब कर दिया तो सुदामा बने शिवराज ने सीएम हाउस में उसके पैर धोए और गले लगाया। कांग्रेस ने मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन मामा के बुलडोजर ने इसे फेल कर दिया.


राहुल की गारंटी पॉलिटिक्स फेल


जब हिमाचल प्रदेश और राजस्थान सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम वापस लाने का फैसला किया तभी से नरेंद्र मोदी मुफ्तखोरी वाली राजनीति पर प्रहार करते आए हैं। एक समय ऐसा भी आया जब लगा कि सिर्फ ओल्ड पेंशन स्कीम के कारण बीजेपी पूरे देश में नुकसान झेल सकती है. लेकिन मोदी सरकार इस स्कीम के कारण खजाने में खाज के खतरे से आगाह करती रही. राहुल गांधी-प्रियंका गांधी की सलाह से कमलनाथ ने जो गारंटी एमपी में की उसमें भी Old Pension Scheme शामिल थी. इसके अलावा 100 यूनिट माफ, 500 रुपए में सिलेंडर, नारी सम्मान में 1500 रुपया महीना और स्कूली बच्चों को 500 से 1000 रुपए देने का वादा किया. आधी आबादी में मामा की लोकप्रियता खत्म करने के लिए मेरी बेटी रानी योजना के तहत जन्म से शादी तक दो लाख रुपए देने का ऐलान भी कांग्रे ने किया लेकिन महलाओं ने नकार दिया. वोटरों ने बीजेपी के संकल्प पत्र पर भरोसा किया जिसमें गेहूं 2700 रुपए और धान 3100 रुपए क्विंटल खरीदने का वादा है. लाडली बहनों को पक्का मकान देने का वचन है. एसी-एसटी के लिए कई वादे हैं.


ताजा जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में 150 से ज्यादा सीटें बीजेपी के खाते में जाती हुई दिखाई दे रही है. ऐसे में जब विधायक दल की बैठक होगी तब शिवराज का पलड़ा भारी होगा. पार्टी ओबीसी पर गरमाई राजनीति में तुरूप का इक्का खोना नहीं चाहेगी.