Saudi Arab Muslims & Islam:  मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना दुनिया के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. हर साल लाखों लोग हज की यात्रा पर सऊदी अरब जाते हैं. यहां वह खुशहाली और अपनों की लंबी उम्र के लिए दुआ मांगते हैं.  सऊदी अरब के मक्का प्रांत में स्थित है दुनिया की सबसे बड़ी अल-हरम मस्जिद. काबा को यही मस्जिद घेरे हुए है.अल-हरम दुनिया की आठवीं सबसे विशाल इमारत भी है. हालांकि वक्त के साथ इसमें कुछ बदलाव भी हुए हैं.


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जो लोग जून-जुलाई में सऊदी अरब का रुख करते हैं, वे बताते हैं कि रेगिस्तान की तपती गर्मी में भी हरम शरीफ का फर्श कभी गर्म नहीं होता बल्कि ऐसा लगता है जैसे फर्श के नीचे ठंडे पानी के पाइप लगे हों, जो फर्श को ठंडा रखते हैं. अब इसका राज क्या है, चलिए जानते हैं. 


तलाशा गया खास संगमरमर


हर दौर में मस्जिद के फर्श को ठंडा रखने के लिए अलग-अलग तकनीकें इस्तेमाल की जाती रही हैं. हज यात्रियों को असुविधा न हो इसके लिए एक विशेष तरह का संगमरमर तलाशा गया, जो भीषण गर्मी में भी ठंडक देता रहे.


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अल-हरम मस्जिद के फर्श को ठंडा रखने के लिए एक खास तरह का संगमरमर इस्तेमाल किया जाता है, जिसका नाम है अलतासूस. यह पत्थर बेहद महंगा और दुर्लभ है. हरम शरीफ के फर्श के लिए इस संगमरमर को खास तौर से यूनान से मंगवाया जाता है. यह खास पत्थर एजियन सागर में पाया जाता है.


यह पत्थर इतना सफेद है कि इसको स्नो वाइट भी कहा जाता है. यानी ऐसे पत्थर जो बर्फ जैसे चमकदार होते हैं. इस पत्थर की खासियत है कि ये गर्मी को अवशोषित नहीं करते. इसी कारण है ये हर मौसम में ठंडक देते हैं. इसी पत्थर के कमाल के कारण अल-हरम मस्जिद का फर्श आग उगलती गर्मी में भी हजयात्रियों को ठंडक देता है.


कई जगह हुआ है इस्तेमाल


यूनान में बरसों से इन पत्थरों का इस्तेमाल होता आ रहा है. जिन इलाकों में भीषण गर्मी पड़ती है, वहां इनका इस्तेमाल होता है. इस्तांबुल की हागिया सोफिया मस्जिद में भी इन्हीं पत्थरों का उपयोग किया गया है. कई अन्य ऐतिहासिक मस्जिदों में भी यही पत्थर लगा है. 


यह पत्थर इतना महंगा है कि कोई आम शख्स इसको अपने घर में लगाने के बारे में सोच भी नहीं सकता. इसके दाम 250 से 400 डॉलर प्रति वर्ग मीटर तक है.  कहा जाता है कि अगर पारा 50-55 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाए तब भी इन पत्थरों का गर्मी कुछ बिगाड़ नहीं पाती.