World War 2 Noor Inayat Khan: ब्रिटेन (Britain) की रानी कैमिला (Queen Camilla) ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशंस एक्जीक्यूटिव (SOE) सेवा के लिए बतौर एक अंडरकवर एजेंट के रूप में काम करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिए जाने वाली विलक्षण प्रतिभा नूर इनायत खान का सम्मान किया है. भारतीय मूल की जासूस और टीपू सुल्तान की वंशज नूर इनायत खान का सम्मान करने के लिए रॉयल एयर फोर्स (RAF) क्लब में उनके एक नए चित्र का अनावरण किया गया है.


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यूं तो दूसरे विश्व युद्ध में भी भारत का कोई सीधा रोल नहीं था. लेकिन उसकी एक महिला जासूस ने अपनी बहादुरी और काबिलियत से हिटलर की सेना में हाहाकार मचा दिया था. इसी जासूस की वजह से जर्मनी की नाजी सेना को अपने कई काबिल अफसर और सैनिक गंवाने पड़े थे. यही वजह है कि उस युद्ध में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने वाली ब्रिटिश इंडियन जासूस को ब्रिटेन की रानी कैमिला ने सम्मान दिया है.


टीपू सुल्तान की वंशज थी नूर


नूर का जन्म वर्ष 1914 में Russia के मास्को में हुआ था. वो मैसूर के शासक रहे टीपू सुलतान की वंशज थीं और उनके पिता हजरत इनायत खान टीपू सुल्तान के पड़पोते थे. नूर की मां, Ora Ray Baker (ओरा रे बेकर) अमेरिकी महिला थीं, जिन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर अमीना शारदा बेगम रख लिया था. बाद में उनका परिवार मॉस्को से लंदन आ गया था. जहां नूर एक वॉलंटियर के तौर पर ब्रिटिश सेना में शामिल हो गईं. वर्ष 1943 में वो, ब्रिटिश सेना की एक सीक्रेट एजेंट बन गईं.


रेडियो ऑपरेटर के तौर पर मिली ट्रेनिंग


नूर (Noor Inayat Khan) को एक रेडियो ऑपरेटर के तौर पर ट्रेन किया गया और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जून, 1943 में उन्हें फ्रांस में नाजियों की जासूसी के लिए  भेज दिया गया. इस तरह के अभियान में पकड़े जाने वाले लोगों को हमेशा के लिए बंधक बनाए जाने का खतरा रहता था. लेकिन नूर ने पेरिस में तीन महीने से ज़्यादा वक़्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई.


1943 में धोखे का शिकार हुईं नूर


अक्टूबर 1943 में नूर धोखे का शिकार हो गईं. उनके एक सहयोगी की बहन ने उनका राज जाहिर कर दिया क्योंकि वो लड़की नूर की खूबसूरती से जलती थी. इसके बाद पेरिस में जर्मन सीक्रेट पुलिस गेस्टापो ने 13 अक्टूबर 1943 को उन्हें एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद ब्रिटिश खुफिया ऑपरेशन के बारे में जानकारी निकलवाने के लिए नूर को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया.


कहते हैं कि जर्मनी के एजेंट्स, नूर (Noor Inayat Khan) का असली नाम तक नहीं पता कर पाए. उन्हे ये भी कभी पता नहीं लगा कि वो भारतीय मूल की थीं. कैदी के रूप में एक वर्ष गुजारने के बाद नूर को जर्मनी के एक यातना शिविर में भेज दिया गया. जहां 13 सितंबर 1944 को नाजियों ने उन्हें तीन अन्य महिला जासूसों के साथ गोली मार दी. मौत के वक्त उनकी उम्र महज 30 वर्ष थी. ब्रिटिश इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मौत के वक्त नूर ने भारत की आजादी का नारा लगाया था.


ब्रिटेन-फ्रांस ने दिया सर्वोच्च मेडल


दूसरे विश्वयुद्ध में उनकी अहमियत इतनी थी कि नूर (Noor Inayat Khan) की मौत के बाद फ्रांस ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान, Croix de Guerre (क्वा डी गेयर) से नवाजा था. जबकि ब्रिटेन ने उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1949 में जॉर्ज क्रॉस (George Cross) से सम्मानित किया. वर्ष 2012 में लंदन में नूर की तांबे की एक प्रतिमा लगाई गई . ये पहला मौका था जब ब्रिटेन में किसी मुस्लिम या फिर एशियाई महिला की प्रतिमा लगी. ये प्रतिमा नूर के उस मकान के नजदीक स्थित है, जहां वो बचपन में रहा करती थीं. नूर के शताब्दी वर्ष 2014 में ब्रिटेन की रॉयल मेल ने नूर इनायत खां के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था.


दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कैसे ब्रिटिश जासूस बनीं नूर?


अबआपको नूर इनायत खान (Noor Inayat Khan) के जीवन के उस पहलू के बारे में बताते हैं जिसको जानकार आपके लिए ये अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा कि वो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कैसे एक ब्रिटिश जासूस बनी होंगी. दरअसल नूर की जिंदगी पर एक किताब भी लिखी गई है जिसका नाम है - The Spy Princess, The Life Of Noor Inayat Khan. इस किताब की लेखिका श्राबणी बसु है. इस किताब के मुताबिक पंद्रहवी सदी के सूफी संत जुमा शाह के वंश से जुड़ी होने की वजह से नूर को सूफी संगीत से बेहद लगाव था. वो गाने भी लिखती थीं. वीणा भी बजाती थीं और उन्होंने बच्चों के लिए कहानियां भी लिखीं. ये खूबियां उन्हें विरासत में मिलीं. 


'ब्रिटेन का ये कर्ज उतारना चाहती थीं नूर'


उनके पिता हजरत इनायत खान ने भारत के सूफीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुंचाया था. नूर राष्ट्रवादी महिला थीं. वो महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसक थीं. वो आजाद हिंदुस्तान का सपना देखती थीं. ब्रिटिश साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी की और एक मिसाल कायम भी की, क्योंकि उनका मानना था कि ब्रिटेन ने उनके परिवार को शरण दी थी, इसलिए वह ब्रिटेन का कुछ कर्ज उतारना चाहती थीं.


'The Spy Princess, The Life Of Noor Inayat Khan' के मुताबिक नूर चाहती थीं कि दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल होने वाले भारतीय सैनिकों में से कुछ सैनिकों को ब्रिटिश सैन्य सम्मान हासिल हो, ताकि युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता को हमेशा याद रखा जाए. ब्रिटेन के लोग नूर को आज भी यादों में सजोए हैं. उन्हें देश की पहली वार हिरोइन माना जाता है. यही वजह है कि ब्रिटिश राजघराना यानी अंग्रेज हुकूमत की वर्तमान रानी उन्हें पूरा सम्मान देते हुए श्रद्धांजलि दे रही है.