Chabahar Port Deal: क्या चाबहार को लेकर सच में भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है अमेरिका? ईरानी राजदूत ने बता दी बड़ी बात
India-Iran Chabahar Port Deal: अमेरिका की चेतावनी पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि लोगों को `तंग नजरिया` नहीं रखना चाहिए क्योंकि प्रोजेक्ट से `सभी को लाभ होगा.`
India-Iran : भारत और ईरान के बीच हुए चाबहार पोर्ट समझौते से अमेरिका तिलमिला उठा है. आनन-फानन में उसने प्रतिबंधों की परोक्ष रूप से धमकी भी दे दी है. लेकिन क्या अमेरिका के लिए कोई प्रतिबंध लगाना आसान होगा. भारत में ईरानी राजदूत ऐसा नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि 'भारत के महत्व' को देखते हुए किसी प्रतिबंध लगने की उम्मीद नहीं है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ईरानी राजदूत इराज इलाही ने मंगलवार को कहा कि 'भारत का महत्व' किसी भी देश को ईरान के साथ सहयोग की वजह से भारत पर प्रतिबंध लगाने से रोकेगा. बता दें अमेरिका की चेतावनी पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि लोगों को 'तंग नजरिया' नहीं रखना चाहिए क्योंकि प्रोजेक्ट से 'सभी को लाभ होगा.'
ईरानी राजदूत ने और क्या कहा?
ईरानी राजदूत ने कहा, 'मुझे लगता है कि भारत का महत्व किसी भी पक्ष को चाबहार पर भारत और ईरान के बीच हुए सहयोग के संबंध में भारत पर प्रतिबंध लगाने से रोकता है.‘
इलाही ने कहा, 'इसके अलावा, चाबहार परियोजना सिर्फ ईरान या भारत के लाभ के लिए नहीं है. चाबहार दक्षिण पूर्व एशिया से यूरोप, रूस और मध्य एशिया तक माल के ट्रांजिट की सुविधा प्रदान करेगा. अगर अमेरिका इस प्रोजेक्ट पर कोई प्रतिबंध लगाता है, तो इसका मतलब है कि अमेरिका सिर्फ भारत या ईरान ही नहीं, बल्कि कई देशों के व्यापार को नुकसान पहुंचाने जा रहा है.
अमेरिका ने क्या चेतावनी दी है?
इससे पहले चाबहार समझौते को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा था, 'हम इन खबरों से अवगत हैं कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह से संबंधित एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. मैं चाहूंगा कि भारत सरकार चाबहार बंदरगाह और ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों पर बात करे.'
उप प्रवक्ता ने कहा, 'मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि चूंकि यह अमेरिका से संबंधित है, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं और हम उन्हें बरकरार रखेंगे.'
पटेल ने कहा, 'आपने हमें कई मामलों में यह कहते हुए सुना है कि कोई भी इकाई, कोई भी व्यक्ति जो ईरान के साथ व्यापारिक समझौते पर विचार कर रहा है, उन्हें संभावित जोखिम और प्रतिबंधों के बारे में पता होना चाहिए.'
अमेरिका के पिछले रुख से अलग था पटेल का यह बयान
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जब नई दिल्ली, तेहरान और काबुल ने 2016 में बंदरगाह को विकसित करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, तो अमेरिका ने ईरान के लिए अपने प्रतिबंधों से चाबहार को अलग कर दिया था. उस समय, अमेरिका का निर्णय व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए बंदरगाह की क्षमता और अफगानिस्तान में विकास और भारतीय पक्ष द्वारा पैरवी से प्रभावित था.
यहां तक कि जब अमेरिका 2018 में ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) या ईरान परमाणु समझौते से हट गया और ईरान के खिलाफ नए प्रतिबंधों की घोषणा की, जिसने भारत की ईरानी कच्चे तेल की खरीद को पूरी तरह से रोक दिया, वाशिंगटन ने चाबहार बंदरगाह के लिए जगह बरकरार रखी. अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए ईरान स्वतंत्रता और प्रसार-विरोधी अधिनियम 2012 के तहत प्रतिबंधों से छूट प्रदान की थी.
अमेरिकी विदेश विभाग ने उस समय कहा था कि यह रणनीति अफगानिस्तान के आर्थिक विकास और भारत के साथ "घनिष्ठ साझेदारी" के लिए समर्थन को रेखांकित करती है.
अमेरिका के बयान पर भारत की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्री जयशंकर ने मंगलवार को कहा, 'मैंने कुछ टिप्पणियां देखीं लेकिन यह लोगों से संवाद करने, समझाने और समझने का सवाल है कि यह (चाबहार पोर्ट समझौता) वास्तव में सभी के लाभ के लिए है. मुझे नहीं लगता कि लोगों को इसके बारे में संकीर्ण दृष्टिकोण रखना चाहिए और उन्होंने अतीत में ऐसा नहीं किया है.'
विदेश मंत्री ने कहा, 'यदि आप अतीत में चाबहार के प्रति अमेरिका के अपने रवैये को भी देखें, तो पाएंगे कि अमेरिका इस तथ्य की सराहना करता रहा है कि चाबहार की व्यापक प्रासंगिकता है. तो हम इस पर काम करेंगे.' जयशंकर ने कोलकाता में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल द्वारा की गई कमेंट्स पर यह बात कही.
क्यों अहम है भारत-ईरान चाबहार बंदरगाह समझौता?
बता दें भारत ने सोमवार (13 मई) को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह को ऑपरेट करने के लिए 10 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किए है. इस समझौते नई दिल्ली को मध्य एशिया के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी.
यह बंदरगाह ईरान, अफगानिस्तान और जमीन से घिरे मध्य एशियाई राज्यों के साथ अधिक कनेक्टिविटी और व्यापार संबंध बनाने की भारत की महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है.
भारत ने 2003 में ऊर्जा संपन्न ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का प्रस्ताव रखा था. इसके जरिए इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर (INSTC) का इस्तेमाल कर भारत से सामान अफगानिस्तान और मध्य एशिया भेजा जा सकेगा.
भारत और ईरान ने इस बंदरगाह को 7,200 किलोमीटर लंबे आईएनएसटीसी के एक प्रमुख केंद्र के रूप में पेश किया है. आईएएसटीसी के जरिए भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई की जाएगी.
(फोटो साभार: @India_in_Iran)