Deepest hole on earth: अपनी विस्तारवादी नीति की वजह से अक्सर भारत और अन्य देशों के निशाने पर रहने वाला चीन इन दिनों एक रिसर्च की वजह से भी चर्चा में है. कुछ सालों पहले चीन के वुहान लैब से कोरोनावायरस लीक हुआ था जिसका प्रकोप आज तक दुनिया झेल रही है. वहीं वुहान लैब से निकले कोरोनावायरस ने दुनिया भर में ऐसी तबाही मचाई, जिसे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था. अब ड्रैगन एक नए मिशन पर काम कर रहा है. चीन के नए एक्सपेरिमेंट से फिर कई देश असमंजस में पड़ गए हैं. आपको बता दें कि चीन धरती की सतह के नीचे करीब 10,000 मीटर लंबा छेद कर रहा है. चीनी वैज्ञानिकों ने इस काम को शुरू भी कर दिया है.


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रूस ने भी किया था ये काम


हालांकि, चीन द्वारा धरती के नीचे छेद करने का यह काम पहली बार नहीं हो रहा है बल्कि दुनिया के दूसरे मुल्क भी पृथ्वी की काफी गहराई तक जा चुके हैं. पृथ्वी में छेद करने का जब भी नाम आता है, तब रूस का ख्याल जरूर आता है. रूस ने 1970 के दशक में धरती के अंदर छेद करने का काम शुरू किया था लेकिन अंत में पृथ्वी के कोर तक पहुंचते हुए तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया जिसकी वजह से वैज्ञानिकों का काम रुक गया. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि चीन ने 1992 में काम इसलिए बंद कर दिया था क्योंकि फंड की कमी आ गई थी. रूस द्वारा किए गए छेद को ‘नर्क का द्वार’ भी कहा जाता है.


क्या करना चाहता है चीन?


रूस की तरह ही अब चीन ने यह काम शुरू किया है. चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ से इस बात का खुलासा हुआ है. चीन द्वारा शुरू किए गए इस काम के लिए दो बातें कही जा रही है. कई लोगों का मानना है कि धरती के अंदर छेद करने से भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट जैसे प्राकृतिक आपदाओं का पता पहले लग जाएगा. इसके अलावा धरती के अंदर कौन-कौन से खनिज पदार्थ हैं, इसका भी अंदाजा लग जाएगा. वहीं दूसरी ओर कई मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि कोरोना काल के बाद चीन में ईंधन की मांग बहुत तेजी से बढ़ गई है. इस वजह से चीन खुद ही ईंधन की तलाश में लग गया है, ताकि उसे ज्यादा पेट्रोल या जेट ईंधन दूसरे देशों से न मांगना पड़े.