नई दिल्ली: आज हम लाउडस्पीकर से निकलने वाली धार्मिक ध्वनि तरंगों का विश्लेषण करेंगे. हमारे इस विश्लेषण का आधार है, सऊदी अरब से आई एक खबर. सऊदी अरब ने मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने के आदेश दिए हैं.


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इस आदेश की दो प्रमुख बाते हैं-


पहली बात ये कि ये आवाज लाउडस्पीकर की अधिकतम आवाज के एक तिहाई से ज्यादा न हो और दूसरी बात ये कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ अज़ान के लिए और इक़ामत यानी नमाज़ के लिए लोगों को दूसरी बार पुकारने के लिए ही किया जाए.


सऊदी अरब की कुल आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ है, जिनमें से 94 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 3 प्रतिशत ईसाई हैं. वहां कम से कम 94 हज़ार मस्जिदें हैं और महत्वपूर्ण बात ये है कि सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है.


भारत में ऐसा प्रतिबंध लगाना आसान नहीं


इन तमाम पहलुओं के बावजूद सऊदी अरब में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर पर ये प्रतिबंध लगाए गए. अब सोचने वाली बात ये है कि एक इस्लामिक देश तो ऐसा कर सकता है, लेकिन एक सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष देश ऐसा नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए आप हमारे देश भारत को ही ले लीजिए.


भारत में मस्जिदों की संख्या को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन कुछ संस्थाएं दावा करती हैं कि हमारे देश में 3 लाख मस्जिदें हैं. हालांकि भारत में लाउडस्पीकर पर इस तरह का कोई निर्णय या प्रतिबंध लगाना आसान नहीं होगा.


ऐसा नहीं है कि भारत में सिर्फ मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होता है. दूसरे धार्मिक स्थलों और धार्मिक अनुष्ठानों में भी लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है और लोग इसकी शिकायत भी करते हैं लेकिन अक्सर शिकायत करने वाले लोगों की इस पर आलोचना की जाती है.


धर्म पर हमले से जोड़कर क्यों देखा जाता है?


भारत में इस तरह के विषय को धर्म पर हमले से जोड़ कर देखा जाता है. जो फैसला सऊदी अरब ने लिया है, अगर वो फैसला हमारे देश में लिया जाता है, तो शायद इसका बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो जाएगा. कहने का मतलब ये है कि हमारे देश में ये सम्भव ही नहीं है क्योंकि, भारत एक सेक्युलर देश है. लेकिन जो इस्लामिक देश हैं, यानी सऊदी अरब, वो ये निर्णय ले सकता है.


सऊदी अरब में इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुल लतीफ़ बिन अब्दुल्ला अज़ीज़ अल-शेख ने इस फ़ैसले के पीछे की वजह भी बताई है.


वो कहते हैं कि जो लोग नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, वो मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से अज़ान और इक़ामत का इंतज़ार नहीं करते. इक़ामत का अर्थ होता है नमाज़ के लिए लोगों को दूसरी बार पुकारना. ऐसे लोग पहले ही मस्जिद पहुंच जाते हैं. हम फिर से दोहरा दें, ये हम नहीं कह रहे हैं, ये सऊदी अरब के इस्लामिक मामलों के मंत्री का कहना है. उनका पक्ष ये है कि मस्जिदों पर लाउडस्पीकर की जरूरत नहीं है.


लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने की वजह


सऊदी अरब ने मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने की वजह भी बताई.


वजह ये है कि सऊदी अरब में जो 94 हज़ार मस्जिदें हैं, उनमें से अधिकतर रिहायशी इला​कों या इमारतों के पास है. सऊदी अरब प्रशासन का कहना है कि पिछले काफी समय से इन इलाकों के लोग लाउडस्पीकर को लेकर शिकायत कर रहे थे. इनमें कई शिकायतें ऐसी थीं, जिनमें ये कहा गया कि मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल से बच्चों की नींद खराब होती है और इसका उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है.


इसे आप इस्लामिक देश ईरान में की गई एक स्टडी से समझ सकते हैं.


-मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज 85 Decibels से 95 Decibels तक होती है.


-इसके अलावा कुछ अध्ययन कहते हैं कि भारत में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज 110 Decibels या उससे ज्यादा भी होती है.


यानी ये खतरनाक है और वो कैसे अब ये समझिए. एक रिसर्च पेपर के मुताबिक 70 Decibels से ऊंची आवाज़ इंसानों के अंदर मानसिक बदलाव ला सकती है और ये हमारे शरीर की धमनियों में खून के प्रवाह को भी बढ़ा सकती है और कई मामलों में इससे आपका ब्लड प्रेशर भी हाई हो सकता है. अब समझने वाली वाली बात ये है कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज इससे ज्यादा होती है और इतना शोर स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता.


अमेरिका के National Institute for Occupational Safety and Health के अनुसार, अगर दो वर्षों तक लगातार 90 Decibels से ऊंची आवाज सुनी जाए तो इससे सुनने की शक्ति आप खो सकते हैं. इसके अलावा इससे Tinnitus नाम की बीमारी भी हो सकती है. इस बीमारी में मरीज को लगता है कि उसके कानों में लगातार कोई आवाज गूंज रही है. हालांकि इसके बावजूद लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होता है.


आप इसे WHO के एक चार्ट से समझ सकते हैं. इसमें बताया गया है कि कितना शोर बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.


अपने ही देश में हो रहा विरोध


सऊदी अरब ने भले ये निर्णय ले लिया है लेकिन अब उसकी इस पर आलोचना भी शुरू हो गई है. वहां कई लोगों ने ये दलील दी है कि क्या रेस्टोरेंट और कैफे में लगे लाउडस्पीकर परेशान नहीं करते?


यानी विरोध तो इस फैसले का सऊदी अरब में भी हो रहा है. लेकिन सऊदी अरब अपने फैसले पर अडिग है. वहां इस्लामिक मामलों के मंत्री ने इस आदेश की आलोचना करने वाले लोगों को सऊदी किंगडम का दुश्मन बताया है.


ऐसा नहीं है कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर पर पहली बार किसी देश में पाबंदियां लगी हैं. अब हम आपको कुछ उदाहरण देते हैं


-दुबई में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ खास मौकों पर होता है. जैसे शुक्रवार की नमाज़ के लिए या त्योहार के मौके पर.


-इसी तरह इंडोनेशिया में भी कुछ पाबंदियां हैं. 2015 में इंडोनेशिया में एक सर्कुलर जारी हुआ था, जिसके तहत मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज कम रखने और इसका प्रयोग सिर्फ अज़ान के लिए सीमित कर दिया था.


-नाइजीरिया में तो वर्ष 2019 में ही मस्जिदों और चर्च पर लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लग चुका है.


-यही नहीं इस सूची में पाकिस्तान भी है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने वर्ष 2015 में एक अध्यादेश जारी किया था, जिसके तहत मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज़ को कम रखने और इसका इस्तेमाल सिर्फ अज़ान के लिए करने को कहा था.


-और भारत में भी मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर को लेकर कई शिकायत हो चुकी है.


इसी साल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉक्टर संगीता श्रीवास्तव ने सुबह होने वाली अजान को लेकर एतराज जताया था और कहा था कि लाउडस्पीकर द्वारा सुबह की अज़ान से उनकी नींद में खलल पड़ता है और पूरा दिन उनके सिर में दर्द रहता है. इस सिलसिले में उन्होंने प्रयागराज जिलाधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी को खत लिखकर कार्रवाई की अपील भी की थी. हालांकि उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था.


हक़ीकत तो ये है कि भारत में ऐसा करना असम्भव सा लगता है, जबकि अदालतों के इस पर कई फ़ैसले मौजूद हैं, जिन्हें आधार बना कर निर्णायक कदम उठाए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए 6 मई 2020 को अपने एक फ़ैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर के बिना भी अजान दी जा सकती है.


मद्रास हाई कोर्ट का फैसला


इससे पहले वर्ष 2017 में मद्रास हाई कोर्ट ने भी इसी तरह का एक फ़ैसला दिया था. तब अदालत ने कहा था कि धर्म की आजादी किसी के मूल अधिकार का हनन नहीं कर सकती, जो लोग आवाज नही सुनना चाहते उन्हें सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. मद्रास हाई कोर्ट ने तब ये भी माना था कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज़ कम होनी चाहिए.


इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्ष 2000 के एक मामले में इसी तरह की टिप्पणी की थी. लेकिन सोचिए इसके बावजूद भारत में इस तरह का कोई क़दम नहीं उठाया जा सकता. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां इस पर बोलना विवाद को जन्म देने के जैसा होता है, जबकि इस्लामिक देशों में ऐसा नहीं है.



तीन तलाक के ख़िलाफ़ क़ानून


बांग्लादेश, मलेशिया, अल्जीरिया, जॉर्डन, इराक़, यूएई, इंडोनेशिया, कुवैत, मोरक्को, पाकिस्तान, तुर्की, ट्यूनिशिया, इजिप्ट, लीबिया और लेबनान में तीन तलाक़ पर बैन है. महत्वपूर्ण बात ये है कि ये सारे देश इस्लामिक देश हैं, जबकि भारत में तीन तलाक के ख़िलाफ़ क़ानून वर्ष 2019 में बना और तब इसका काफ़ी विरोध भी हुआ. उस समय इस क़ानून को मुस्लिम धर्म पर हमला तक बताया गया, जबकि ये क़ानून पहले ये कई इस्लामिक देशों में है.


हेड स्कार्फ को लेकर प्रतिबंध 


पश्चिमी देशों में जब हेड स्कार्फ को लेकर प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो इस मुस्लिम देश कड़ी आपत्ति जताते है, जबकि सच ये है कि ये देश खुद अपने लोगों को हेड स्कार्फ से मुक्ति दे चुके हैं.


उदाहरण के लिए तुर्की ने 1980 के दशक में सरकारी अस्पतालों, दफ़्तरों और स्कूल में हेड स्कार्फ के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि 2013 में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन इस प्रतिबंध को हटा चुके हैं.


इस्लामिक देश सीरिया और ट्यूनिशिया में अलग अलग समय पर हेड स्कार्फ पर प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन अब ये प्रतिबंध फिर से हटा लिया गया है.


भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत लोगों को एक से ज़्यादा शादी की छूट है जबकि कई इस्लामिक देशों में इस पर रोक लग चुकी है. तुर्की में वर्ष 1926 से इस पर प्रतिबंध है. ट्यूनिशिया में ऐसा करने पर एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है. अल्जीरिया में दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की सहमति जरूरी है और इस सहमति को अदालत में साबित करना पड़ता है.


इसके अलावा मोरक्को, सोमालिया, इराक, इंडोनेशिया और पाकिस्तान में भी दूसरी शादी करने से पहले कोर्ट से इसकी इजाजत लेनी पड़ती है.


कहने का मतलब ये है कि इस्लामिक देशों में ये सब करना आसान है. लेकिन धर्मनिरपेक्ष देशों में ऐसा करना धर्म पर हमला माना जाता है और यही बात आज हम आपसे कहना चाहते हैं.