DNA ANALYSIS: न्यूयॉर्क टाइम्स का अर्बन नक्सल `रिक्रूटमेंट प्लान`? जॉब ओपनिंग में लिखी ऐसी बातें
द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1 जुलाई को दक्षिण एशिया संवाददाता के लिए वैकेंसी निकाली. अखबार लिखता है कि भारत में मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को कमजोर करने का काम किया जा रहा है, जिससे देश के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. ये सब इस नौकरी के विवरण में लिखा गया है.
नई दिल्ली: आपने अक्सर देखा होगा कि पश्चिमी मीडिया भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ता. चाहे कोविड हो, चाहे किसान आंदोलन हो, चाहे चीन के साथ सीमा विवाद हो या फिर भारत में होने वाले कोई दंगे हों.
भारत विरोधी विचारधारा
पश्चिमी मीडिया ने हमेशा भारत की छवि खराब करने की पूरी कोशिश की है और ये सब कुछ निष्पक्ष पत्रकारिता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होता है और आप भी सोचते होंगे कि आखिर इस तरह के एजेंडे वाली छोटी पत्रकारिता करने वाले लोग इनके न्यूज़ रूम में कहां से पहुंच जाते हैं.
आज हमें इसका सबूत मिला, जब अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में स्थित अपने दक्षिण एशिया संवाददाता की एक वैकेंसी निकाली और उसमें उसने साफ कर दिया कि उसे मोदी विरोधी और भारत विरोधी विचारधारा के पत्रकारों की आवश्यकता है.
अब आपको समझ में आया होगा कि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार कैसे भारत में ही मौजूद टुकड़े टुकड़े गैंग के पत्रकारों का सबसे बड़ा अड्डा बन जाते हैं. सबसे पहले आपको इस खबर के बारे में बताते हैं.
नौकरी का पूरा विवरण
द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1 जुलाई को दक्षिण एशिया संवाददाता के लिए वैकेंसी निकाली थी, जिसमें इस अखबार ने बताया कि इस नौकरी के लिए जो व्यक्ति चुना जाएगा, उसे दिल्ली में रह कर काम करना होगा और इसके साथ ही कंपनी ने इसमें नौकरी का पूरा विवरण भी दिया. यानी ये बताया कि इस नौकरी के लिए सही उम्मीदवार कौन हो सकता है और उसमें क्या-क्या खूबियां होनी चाहिए? हम तीन पॉइंट्स में आपको बताते हैं कि इसमें क्या लिखा है-
पहले पॉइंट में ये अखबार लिखता है- India’s future now stands at a crossroads. Mr. Modi is advocating a self-sufficient, muscular nationalism centered on the country’s Hindu majority. That vision puts him at odds with the interfaith, multicultural goals of modern India’s founders.
यानी ये अख़बार इस जॉब पोस्ट में लिखता है कि भारत का भविष्य इस समय दोराहे पर खड़ा है और इसका कारण हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
इसके मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी देश में हिन्दू बहुमत को आधार बना कर आक्रामक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और उनकी ये नीति भारत की विविधता में एकता वाली संस्कृति के लिए खतरनाक बन सकती है. ये बातें किसी लेख में नहीं लिखी गई हैं, बल्कि ये सब इस नौकरी के विवरण में लिखा गया है. इसी में आगे ये अखबार लिखता है कि भारत में मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को कमजोर करने का काम किया जा रहा है, जिससे देश के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. ये बात भी इसमें लिखी है.
वर्ष 2014 में बीजेपी ने 282 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे. फिर 2019 के लोक सभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने 303 सीटें जीत कर सरकार बनाई, लेकिन पश्चिमी मीडिया आज भी इस बात को स्वीकार नहीं करता. अगर इन सारी खूबियों के साथ इस नौकरी के लिए अप्लाई करने वाला व्यक्ति पूर्व में कोई अपराध कर चुका है यानी उसकी क्रिमिनल हिस्ट्री है, तब भी ये कंपनी उस व्यक्ति को नौकरी दे सकती है. हालांकि ये छूट इस अखबार द्वारा हर देश में दी जाती है. भारत अकेला ऐसा देश नहीं है, जहां ये पॉलिसी लागू है.
सिर्फ भारत में ही ऐसी वैकेंसी निकालता है अखबार?
आज आपके मन में ये सवाल भी होगा कि क्या ये अख़बार सिर्फ़ भारत में ही ऐसी वैकेंसी निकालता है? तो आज हमने इस पर काफी रिसर्च की और इस दौरान हमने बहुत सारी जॉब रिक्रूटमेंट को पढ़ा और हमें पता चला कि कुछ ख़ास देशों को छोड़कर ये अख़बार किसी और देश में ऐसा जॉब डिस्क्रिप्शन नहीं लिखता है.
उदाहरण के लिए हॉन्ग कॉन्ग में स्टाफ एडिडर के लिए वैकेंसी निकाली गई है. एक नौकरी दक्षिण कोरिया में एशिया के सीनियर स्टाफ एडिटर के पद के निकाली गई है और एक दूसरी वैकेंसी थाईलैंड में साउथ ईस्ट एशिया ब्यूरो चीफ के लिए है. लेकिन इनमें से किसी में भी इस अख़बार ने वो सब बातें नहीं लिखी, जो बातें भारत के लिए लिखी गई हैं. जबकि संकट तो इन देशों में भी है.
थाईलैंड में राजशाही शासन के ख़िलाफ लोगों में अंसतोष है और हॉन्ग कॉन्ग में चीन के ख़िलाफ लोकतांत्रिक प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स इन देशों में वैकेंसी निकालते समय कोई उपदेश नहीं देता. ये रुख सिर्फ कुछ देशों को लेकर अपनाया जाता है, जिनमें भारत के अलावा रूस भी है.
नवंबर 2020 में रूस में न्यूयॉर्क टाइम्स ने वैकेंसी निकाली थी, जिसमें इस अख़बार ने कहा था कि रूस अपने साइबर एजेंट्स के जरिए पश्चिमी देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करना चाहता है. इसलिए तब इस अखबार को ऐसा पत्रकार चाहिए था, जो इन मुद्दों पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की नीतियों का विरोध पूरी दुनिया तक पहुंचा सके.
दुष्प्रचार का इतिहास
हालांकि ऐसा नहीं है कि द न्यूयॉर्क टाइम्स ने पहली बार भारत को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं. इस अख़बार का इतिहास भारत को लेकर दुष्प्रचार से भरा पड़ा है. हम आपको दो उदाहरणों के जरिए इसके बारे में बताते हैं.
पहला उदाहरण है कोरोना वायरस के दौरान न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्टिंग. अप्रैल और मई के महीने में जब भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर से संघर्ष कर रहा था, तब इस अखबार ने भारत के श्मशान घाटों पर जलती चिताओं को अपने पहले पन्ने पर छापा था, जबकि पिछले साल जब अमेरिका में इस वायरस से मरने वाले लोगों की संख्या एक लाख पहुंची थी तो इस अखबार ने इस तरह की कोई तस्वीरें नहीं दिखाई और वहां के मृतकों को सम्मान देने के लिए उनके नाम अख़बार के पहले पन्ने पर छापे थे. यही नहीं इस साल अमेरिका में जब कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा पांच लाख पहुंच गया, तब भी इस अखबार ने वहां की Mass Graves की तस्वीरें नहीं छापी.
अखबार के दोहरे मापदंड
आपको याद होगा उस समय हमने इस अखबार के दोहरे मापदंड के बारे में विस्तार से बताया था और आज हमें लगता है कि ये पश्चिमी अखबार ऐसे ही पत्रकार भारत में चाहता है, जो जलती चिताओं जैसी तस्वीरें उसके लिए खींच सकें और इन पर रिपोर्टिंग कर सके.
दूसरा उदाहरण है सितंबर वर्ष 2014 में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ एक कार्टून, उस समय भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल मिशन लॉन्च किया था, जिसके तहत अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह की कक्षा में भेजा गया था.
उस समय ये भारत के लिए बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन इस अखबार ने इस कार्टून के जरिए ये दिखाया कि कुछ अंग्रेज Elite Space Club में बैठे हैं और बाहर एक गरीब भारतीय किसान अपनी गाय के साथ खड़ा है और इस क्लब में शामिल होना चाहता है. यानी ये अखबार भारत की मंगल मिशन की उपलब्धि का भी मजाक बना चुका है.
अभिव्यक्ति की आजादी पर लेक्चर
द न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार अक्सर भारत को अभिव्यक्ति की आजादी पर लेक्चर देता है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या ये अखबार खुद अपने कर्मचारियों को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देता है? तो इस प्रश्न का उत्तर है, नहीं. ये अखबार इस विषय पर उपदेश देता है, लेकिन खुद इस पर अमल नहीं करता. इसे भी आप दो उदाहरणों से समझिए.
पहला उदाहरण है, अमेरिका के मशहूर पत्रकार जेम्स बेनेट जो एक साल पहले तक न्यूयॉर्क टाइम्स के सम्पादक थे, लेकिन वर्ष 2020 में उन्हें सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि, उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स के एडिटोरियल पेज पर वहां की रिपब्लिकन पार्टी के एक सांसद का लेख प्रकाशित कर दिया था, जिसमें वो उस समय अमेरिका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ चल रहे आंदोलन से सख्ती से निपटने की मांग कर रहे थे. यानी इस अखबार ने अपने एजेंडा को बचाए रखने के लिए एक बड़े पत्रकार को भी नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.
दूसरा उदाहरण है, अमेरिका के और बड़े पत्रकार और लेखक Bari Weiss, जेम्स बेनेट की तरह उन्हें भी न्यूयॉर्क टाइम्स ने नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया था. उनके इस्तीफे वाले लेटर में अखबार को लेकर कई चौंकाने वाली बातें लिखी हैं. इसमें एक जगह लिखा है कि इस पश्चिमी अखबार में सिर्फ वही लोग काम कर सकते हैं, जो इसकी विचारधारा से सहमत होते हैं. बाकी विचारधाराओं के लिए इस अखबार में कोई जगह नहीं है.
यहां एक बात आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं कि वर्ष 2019 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का इस अखबार में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें इमरान खान 135 करोड़ की आबादी वाले भारत को परमाणु हमले की धमकी दे रहे थे. यानी आप ये कह सकते हैं कि इस पश्चिमी अखबार को भारत विरोधी बातें और एजेंडा काफी सूट करता है और अक्सर आप हमारे देश के टुकड़े-टुकड़े गैंग की सक्रियता भी पश्चिमी मीडिया में देखते होंगे. ये गैंग पश्चिमी मीडिया में लेख लिखता है और भारत सरकार के खिलाफ चलाए जाने वाले एजेंडे की इम्युनिटी को मजबूत बनाता है.
भारत की छवि
यहां एक और बात समझने वाली ये है कि पश्चिमी मीडिया जिस तरह से भारत की छवि बनाने की कोशिश करता है, उस तरह से वो चीन को लेकर कभी सवाल नहीं उठाता और इसका कारण है चीन से मिलने वाला पैसा. चीन की कम्युनिस्ट सरकार का एक अखबार चाइना डेली, न्यूयॉर्क टाइम्स समेत पश्चिमी देशों के मीडिया और पब्लिशिंग हाउस को विज्ञापन के लिए काफी पैसा देता है.
उदाहरण के लिए वर्ष 2016 से 2020 के बीच चाइना डेली ने अमेरिका के अखबारों को 19 मिलियन डॉलर यानी 148 करोड़ रुपये दिए और इनमें अकेले द न्यूयॉर्क टाइम्स को 50 हज़ार डॉलर यानी 40 लाख रुपये मिले.
इसी तरह वॉशिंगटन पोस्ट को भी 4.6 मिलियन डॉलर यानी 36 करोड़ रुपये चीन के सरकारी अख़बार से मिले. बड़ी बात ये है कि वॉशिंगटन पोस्ट खुद को दुनिया में निष्पक्ष पत्रकारिता का सबसे बड़ा चैम्पियन बताता है, जबकि सच ये है कि ये अखबार पिछले 8 वर्षों से हर सप्ताह अपने अख़बार के साथ चाइना वॉच नाम से 8 पन्नों का एक छोटा अखबार अलग से छापता है, जिसमें चीन का महिमामंडन होता है.
पश्चिमी अखबार को भारत में ऐसा पत्रकार चाहिए...
संक्षेप में कहें तो इस जॉब को पढ़कर ऐसा लगता है कि इस पश्चिमी अखबार को भारत में ऐसा पत्रकार चाहिए
- जो देश विरोधी हो
- मोदी विरोधी होना चाहिए
- हिन्दू विरोधी होना चाहिए
- दुष्प्रचार फैलाने में माहिर होना चाहिए
- और सबसे अहम वो व्यक्ति एजेंडा चलाना जानता हो
और इन सारी खूबियों के साथ अगर वो अपराधी है तो भी द न्यूयॉर्क टाइम्स में उसकी नौकरी पक्की हो सकती है.
न्यूयॉर्क टाइम्स का इस जॉब डिस्क्रिप्शन में कहना है कि भारत की विविधता वाली एकता खतरे में है, लेकिन ये अखबार खुद इस पर कितना खरा उतरता है, ये भी आज आपको समझना चाहिए. इस अखबार में सिर्फ 33 प्रतिशत कर्मचारी ही अश्वेत हैं और इनमें भी सिर्फ 5 अश्वेत ही महत्वपूर्ण पदों पर हैं. इसके अलावा एशियाई मूल के भी सिर्फ 12 प्रतिशत ही कर्मचारी इस अखबार में काम करते हैं.
ISIS में भर्ती के लिए शर्तें
आज हम अपने इस विश्लेषण को एक उदाहरण के साथ खत्म करना चाहते हैं. ये बात वर्ष 2014 की है, जब आतंकी संगठन ISIS इराक और सीरिया के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर चुका था और उस समय ISIS को नए लड़ाकों की जरूरत थी. तब इसी ज़रूरत को देखते हुए ISIS ने संगठन में भर्ती के लिए नौकरियां निकाली और इन नौकरियों के लिए शर्तें कुछ प्रकार थीं-
-इस्लाम को छोड़ कर सभी धर्मों का विरोधी होना चाहिए.
-शांति का विरोधी होना चाहिए.
-उसे बम बनाना आना चाहिए.
-उसे जेहाद में विश्वास होना चाहिए.
-और काफिरों से नफ़रत होनी चाहिए.
-और इन सब खूबियों के साथ वो पढ़ा लिखा है तो भी उसे ISIS नौकरी देने के लिए तैयार था.
दिलचस्प बात ये है कि ISIS द्वारा निकाली गई जॉब रिक्रूटमेंट की पश्चिमी मीडिया ने जमकर आलोचना की थी और इस सोच को खतरनाक बताया था.