Ireland history: आयरलैंड उबल रहा है इसलिए सुर्खियों में हैं. वहां जमकर हिंसा हो रही है. ऑयरलैंड की गिनती दुनिया के खुशहाल देशों में होती है. फिर ये देश कैसे सुलग गया? ऐसी बातों से इतर आपको आयरलैंड के उस इतिहास के बारे में बताते हैं जिससे बहुत से लोग अनजान हैं.


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उत्तरी आयरलैंड का सुलगता इतिहास


आयरलैंड की हिंसा ने उस दौर की याद दिला दी, जिसकी टीस आज भी लोगों को चुभती है. तब आयरलैंड के मुख्य रूप से कैथोलिक लोगों ने ब्रिटिश (प्रमुख रूप से प्रोटेस्टेंट) शासन से मुक्त होने का प्रयास किया था. उत्तरी आयरलैंड के संघर्ष की कहानी 1920 के आस-पास शुरू हुई. 1921 में आयरिश लोगों अपनी आजादी की लड़ाई लड़ी और आयरलैंड का दो देशों में बंटवारा हो गया.


'हिस्ट्री डॉट कॉम' की रिपोर्ट के मुताबिक सदियों तक ब्रिटेन (UK) के अधीन रहने के बाद आयरलैंड का बंटवारा हुआ. बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ. ब्रिटेन के साथ रहने वाले आयरलैंड (उत्तरी आयरलैंड) में ईसाइयों के प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोगों का बहुमत था. वहीं अलग देश बने आयरलैंड गणराज्य में कैथोलिक समुदाय का बहुमत था.


30 साल की हिंसा का पीरियड- 'द ट्रबल'


उत्तरी आयरलैंड 30 साल तक घातक सांप्रदायिक हिंसा के दौर से गुजरा. ये विस्फोटक युग 1960 के दशक से लेकर 1990 के दशक के अंत तक चला. यहां आए दिन बम धमाके होते थे. जनता दंगों की भेंट चढ़ जाती थी. प्रतिशोध की आग में हत्याएं होती थीं. चारों ओर अशांति और दहशत थी. आयरलैंड के कैथोलिक और ब्रिटेन के प्रोटेस्टेंट मत के अनुयाईयों का मतभेद 1960 के दशक के अंत में खूनी हिंसा में बदला. इस दौरान 3600 लोग मारे गए और 30000 से अधिक घायल हुए. इस संघर्ष को 'द ट्रबल' के नाम से जाना जाता है.


ब्रिटेन की चाल


ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 में से केवल 26 काउंटी को आजाद किया जबकि 6 पर उसका कब्जा बनाए रखा. मनमुटाव दशकों तक चला. यही 6 काउंटी उत्तरी आयरलैंड के नाम से जानी जाती हैं. हालांकि ब्रिटेन ने उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट के स्टॉरमांट में 1920 में संसद का निर्माण किया था और सरकार को अधिकतर मामलों में अधिकार दिए गए. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.


दरअसल ब्रिटिश शाही और द्वितीय विश्व युद्ध के नायक की हत्या ने इंग्लैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच संबंधों के लिए एक बुरे दौर का जो संकेत दिया था, वो अक्षरश: सही साबित हुआ.


ब्रिटेन की वेस्टमिनस्टर संसद में 1921 से 1972 तक उत्तरी आयरलैंड से सदस्य चुनकर जाते रहे थे. लेकिन हुआ ये कि स्टॉरमांट स्थित सरकार स्वशासी सरकार के रूप में काम करती रही. दरअसल यूके की सत्ता संभाल रहे शातिर मठाधीशों ने बंटवारा कुछ इस तरह किया था कि उत्तरी आयरलैंड पर अपरोक्ष कब्जा बना रहे.


कैथोलिक राष्ट्रवादी बनाम प्रोटेस्टेंट वफादार


इस रणनीति के तहत आयरलैंड अब पूरी तरह स्वतंत्र था. वहीं उत्तरी आयरलैंड ब्रिटिश शासन के अधीन. कुछ और गहराई से हालात का विश्वेषण करें तो बेलफास्ट और डेरी (जिसे कानूनी रूप से लंदनडेरी कहा जाता है) में कैथोलिक समुदायों ने प्रोटेस्टेंट-नियंत्रित सरकार और पुलिस विभाग द्वारा भेदभाव और गलत व्यवहार की शिकायतें बनी रहीं. हालांकि समय बीतने के साथ साथ उत्तरी आयरलैंड में दो विरोधी ताकतें बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक आधार पर एकजुट हो गईं. जिन्हें कैथोलिक राष्ट्रवादी और प्रोटेस्टेंट वफादार कहा गया. इस बीच उत्तरी आयरलैंड के सभी अधिकार विलयवादी पार्टी के हाथों में आ गए. 


1960 के दशक में पड़ी 30 साल तक चली हिंसा नीव


1960 के दशक की बात करें तो भेदभाव चरम पर था. ये वक्त नागरिक अधिकार आंदोलनों के लिए जाना जाता है. यहां का आंदोलन, अमेरिका में हुए प्रोटेस्ट की थीम पर था. दरअसल तब उत्तरी आयरलैंड में राजनीतिक और सामाजिक रूप से जागरूक युवा कैथोलिक राष्ट्रवादियों की नई पीढ़ी ने अमेरिका के नागरिक आंदोलन के मॉडल को भेदभाव को खत्म करने के लिए एक टूल की तरह देखा. बेलफ़ास्ट में पले-बढ़े नोट्रे डेम यूनिवर्सिटी (University of Notre Dame) के प्रोफेसर जेम्स स्मिथ ने उस दौर के हालातों का सटीक विश्लेषण किया है.


उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया है कि तब घर और नौकरियां देने में भेदभाव होता था. बेलफ़ास्ट में सबसे बड़ा शिपयार्ड था, लेकिन इसमें 95 प्रतिशत लोग प्रोटेस्टेंट थे. वहीं डेरी शहर जहां दो-तिहाई कैथोलिक बहुमत था, उसे इतनी सख्ती से नियंत्रित किया गया था कि वहां 50 साल तक (प्रोटेस्टेंट) वफादारों का सियासी वर्चस्व बना रहा.


'वी शैल ओवरकम'


तब जॉन ह्यूम, ऑस्टिन करी और बर्नाडेट डेवलिन जैसे युवा राष्ट्रवादी नेताओं ने यथास्थिति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. क्योंकि वो देख रहे थे कि अमेरिका में ऐसी कपट भरे व्यवहार को कैसे हैंडल किया जा रहा था. इसलिए उन्होंने खुद को इस हद तक अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के अनुरूप ढाला कि उत्तरी आयरलैंड में गाए गए गीतों में 'वी शैल ओवरकम' भी शामिल था.


1969 तक बिगड़ चुके थे हालात


5 अक्टूबर, 1968 को पुलिस की कार्रवाई ने कैथोलिक राष्ट्रवादियों और प्रोटेस्टेंट वफादारों के बीच तनाव बढ़ा दिया. जिससे हिंसक झड़पों के लिए मंच तैयार हुआ. टीवी चैनलों पर पुलिस के लाठीचार्ज की तस्वीरें जब लोगों ने देखीं तो उनका खून खौल गया. दरअसल 1969 की शुरुआत में एक आंदोलन के प्रोटेस्ट मार्च को जानबूझकर वफादारों के गढ़ से निकाला गया. जहां हिंसा फैलने के 100 फीसदी चांस थे. देखते-देखते बवाल मच गया. वफादारों की भीड़ ने प्रदर्शनकारियों पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. वहीं बर्नटोलेट ब्रिज पर घात लगाकर हमला किया गया.


'बोगसाइड की लड़ाई' तीन दिन चली. लेकिन सबसे बड़ा नुकसान बेलफास्ट में हुआ, जहां बी-स्पेशल की मदद से वफादारों की भीड़ ने कैथोलिक पड़ोस पर हमला किया और उनके 1500 घरों को जला दिया. 14 अगस्त को, उत्तरी आयरलैंड के प्रधानमंत्री ने व्यवस्था बहाल करने के लिए ब्रिटिश सरकार से सेना भेजने का आह्वान किया. यह ब्रिटिश सेना द्वारा उत्तरी आयरलैंड में दशकों पुरानी तैनाती की शुरुआत थी.


टाइमलाइन-


800 साल पहले ब्रिटेन ने आयरलैंड पर कब्जा किया था. 1969 में उत्तरी आयरलैंड में नागरिक अधिकारों के लिए अभियान शुरु हुए. आरोप लगाए गए कि अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय दोहरी जिंदगी जी रहा है. राजनीतिक हिंसा की शुरुआत हुई और तब यहां प्रोविजनल आईआरए (आइरिश रिपब्लिकन आर्मी) अस्तित्व में आई. 1970 में ये आर्मी दो भागों में बांटी गई- अधिकृत आईआरए और प्रोविजनल आईआरए.


1970 में उत्तरी आयरलैंड की संसद स्थगित हुई. उत्तरी आयरलैंड में 30 जनवरी 1972 की तारीख खूनी रविवार के रूप में इतिहास में दर्ज हुई. जब ब्रिटेन ने यहां के सारे कामकाज अपने अधिकार में ले लिए थे. 1994 तक प्रोविजनल आईआरए (जिसे अब आईआरए कहा जाता है) ने ब्रिटेन के खिलाफ अभियान चलाया. ब्रिटेन का ये नियंत्रण 1998 तक चला और फिर उत्तरी आयरलैंड के भविष्य के लिए एक समझौता हुआ. इस समझौते को गुड फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया.


10 अप्रैल 1998 को आयरलैंड और ब्रिटिश सरकार में शांति समझौता हुआ था. दोनों देशों की सरकारों ने इसपर दस्तखत किए और समझौते को फ्राइडे या बेलफास्ट समझौते का नाम दिया गया. इस समझौते में नए संस्थानों और संवैधानिक बदलाव की स्थापना पर सहमति बनी थी.