नई दिल्ली: दक्षिण एशिया में चीन (China) के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत (India) एक नई रणनीति पर काम कर रहा है. भारत और जापान (India and Japan) ड्रैगन से मुकाबले के लिए तीसरे देशों को साथ लाने की संभावनाओं को तलाश रहे हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) ने गुरुवार को कहा कि हम तीसरे देशों से साझेदारी के व्यावहारिक पहलुओं पर विचार कर रहे हैं.


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इंडस्ट्री चैंबर फिक्की (FICCI) की ओर से आयोजित वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और जापान के पास रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र (Russian far east) एवं प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों (Pacific Island Countries) में साथ काम करने का अवसर है. उन्होंने आगे कहा कि हमें हमें उन क्षेत्रों को देखना होगा जहां हम मिलकर काम कर सकते हैं. पहला विकल्प है: रूस के सुदूर पूर्व में आर्थिक सहयोग की संभावना, क्योंकि भारत ने वहां की आर्थिक परियोजनाओं में भागीदारी को लेकर दिलचस्पी दिखाई है. दूसरा विकल्प है: प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश, जहां भारत ने अपनी विकास साझेदारी और राजनीतिक पहुंच को बढ़ाया है.


पहुंच मजबूत कर रहा भारत
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) वार्षिक भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए पिछले साल व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) गए थे. इस दौरान उन्होंने रूसी सुदूर पूर्व क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के लिए 1 अरब डॉलर डालर के लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा की थी. नई दिल्ली इंडिया-पैसिफिक आइलैंड कोऑपरेशन या FIPIC जैसे फोरम के माध्यम से प्रशांत द्वीप के देशों तक अपनी पहुंच को मजबूत करने में लगा है. इस फोरम में भारत सहित 14 प्रशांत द्वीप देश हैं.  


श्रीलंका में चल रहीं संयुक्त परियोजनाएं
बुनियादी ढांचे और परियोजना विकास के लिए दोनों देशों की पहले से तीसरे देशों की संभावना पर काम कर रहे हैं. श्रीलंका में संयुक्त परियोजनाएं चल रही हैं, और भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या बांग्लादेश और म्यांमार को इसी तरह साथ लाया जा सकता है. भारत और जापान ‘एक्ट ईस्ट फोरम’ के माध्यम से साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं. जिसकी अध्यक्षता भारत के विदेश सचिव और दिल्ली में जापानी राजदूत करते हैं.  


मजबूत हो रहे संबंध
जयशंकर ने जापान को भारत का सबसे भरोसेमंद साथी और एशिया में आधुनिकीकरण का प्रेरणास्रोत बताते हुए कहा कि मारुति क्रांति, मेट्रो क्रांति और बुलेट क्रांति जापान के इतिहास और उसकी क्षमता के चलते ही सफल संभव हो सकी. पूर्व जापानी प्रधानमंत्री आबे शिंजो और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आपसी संवाद और रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिशों के चलते ही दोनों देश इतने करीब आ पाए हैं. विदेशमंत्री ने कहा कि दोनों देशों के संबंध बेहद मजबूत हैं और लगातार मजबूत होते जा रहे हैं. क्षेत्रीय एवं वैश्विक रणनीतिक मुद्दों के प्रति हमारी सोच बहुत मिलती-जुलती है.


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