French-German declaration Elysee Treaty: धरती का कोई भी कोना हो, शांति और खुशहाली के लिए पड़ोसी देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध और आपसी समझ का बेहतर होना जरूरी है. भारत-पाकिस्तान हो या नार्थ कोरिया-साउथ कोरिया या फिर रूस-यूक्रेन, चीन की बात छोड़ दीजिए क्योंकि दूसरों की जमीन हड़पने (विस्तारवादी नीति) के लिए बदनाम 'ड्रैगन' को दूसरों के फटे में टांग अड़ाने की आदत है. वैश्विक शांति के लिए अब आपको यूरोप की जो कहानी बताने जा रहे हैं. वो पूरी दुनिया के लिए मिसाल है. 


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कभी थे जानी दुश्मन-आज पक्के दोस्त


ऊपर जिन देशों का जिक्र हमने किया उनकी तरह कभी फ्रांस और जर्मनी के बीच कड़वाहट और दुश्मनी भरे रिश्ते थे. अब सदियों पुरानी दुश्मनी खत्म हो चुकी है. उनके घाव भर चुके हैं. जर्मनी और फ्रांस के बीच तनाव और टकराहट का दौर 17वीं सदी में लुडविष 16वें के रियूनियन वॉर और जर्मनी में उत्तराधिकार के झगड़े में हस्तक्षेप से लेकर साल 1870-71 में जर्मनी के एकीकरण से पहले के युद्ध से लेकर दूसरे विश्व युद्ध तक चला था. नेपोलियन ने जर्मनी पर जीत हासिल की तो जर्मन राष्ट्रवादियों ने नेपोलियन के विरोध में आजादी के लिए लड़ाई लड़ी. 


'नए खतरे को रोका पुराने को खत्म किया'


एलीसी संधि, द्वितीय विश्व युद्ध के 18 साल बाद अस्तित्व में आई थी. 1963 में हुई इस संधि के साथ दोनों देशों के संबंध सुधरने लगे. संबंधों में सुधार के पीछे फ्रांस और जर्मनी के तत्कालीन नेताओं की बड़ी भूमिका रही. ये संधि पश्चिम जर्मन चांसलर कोनराड एडेनॉयर और फ्रांसीसी राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल की पहल से हुई थी. दोनों ने नाजी शासन का विरोध किया. उन्होंने इस संधि पर दस्तखत करके दुश्मनी भुलाकर स्थायी मित्रता के साथ नए संबंध स्थापित करने का फैसला किया था. 


तब ब्रिटेन से था खतरा आज गहरे रिश्ते


दरअसल तब फ्रांस की सरकार जर्मनी से दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहती थी ताकि ब्रिटेन और अमेरिका उनके देश के खिलाफ मोर्चा न बना सके. वहीं जर्मनी के तत्कालीन चांसलर कोनराड आडेनावर भी यूरोप में जर्मनी के खिलाफ बने संदेह को दूर करने के लिए प्रयासरत थे. गौरतलब है कि यूरोपियन यूनियन की स्थापना करने उसे एकता के सूत्र में पिरोने के साथ उसे आर्थिक रूप से समृद्ध और ताकतवर बनाने में इन देशों का काफी बड़ा योगदान है.


(France And Germany Relations)

दरअसल उस दौर में फ्रांस और जर्मनी एक दूसरे को कुचलने और अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद अपमानजनक वर्साय की संधि और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस पर नाजी जर्मनी के कब्जा और विरोधियों के दमन ने इस अविश्वास को और बढ़ाने का काम किया था. हालांकि 1950 के दशक में यूरोपीय कम्युनिटी के गठन के साथ दोनों के बीच दुश्मनी के खात्मे की शुरूआत हुई. 1963 में एलीसी संधि के साथ दोनों के बीच दोस्ती के एक नए अध्याय की शुरूआत हुई.



फ्रांस और जर्मनी की मित्रता को पुख्ता बनाने वाली संधि में ये तय किया गया था कि दोनों देशों के नेता आपसी मेलमिलाप बढ़ाएंगे और दोनों देशों के विकास के लिए बेहतर तरीके से काम करेंगे. आज दोनों के बीच दोस्ती इतनी गहरा गई है कि दोनों विकास के पथ पर कई विचारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं.


'diplomatie.gouv' की रिपोर्ट के मुताबिक इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं ने इस बात को भी महत्वपूर्ण माना कि संधि केवल राष्ट्राध्यक्षों के बीच एक दस्तावेज न हो बल्कि इसमें नागरिक भी शामिल हों ताकि वे एक-दूसरे को जानना, एक-दूसरे से बात करना और एक-दूसरे की सराहना करना सीख सकें. इस संधि के सफल परिणामों में से एक यह था कि यह दोनों लोगों को एक-दूसरे के बहुत करीब ले आया. इस संधि का एक मकसद दोनों देशों के नागरिकों के बीच परस्पर दोस्ती बढ़ाने, आपसी लेन-देन शुरू करने और पारस्परिक भाषा यानी फ्रेंच और जर्मन सीखने की सुविधा प्रदान करना भी था. 



इस मुहिम के तहत 1963 से लेकर 2023 के 60 सालों में दोनों देशों के करीब 90 लाख युवा परस्पर मेल मिलाप के कार्यक्रम में अपनी भागीदारी निभा चुके हैं.


'हम अपने दुश्मन तो चुन सकते हैं पर पड़ोसी नहीं, रिश्ते तो चुन सकते हैं पर रिश्तेदार नहीं', भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की इन पंक्तियों को फ्रांस और जर्मनी ने मानो पहले ही आत्मसात कर लिया था. जर्मनी और फ्रांस हर सुख-दुख में साथ खड़े हैं. यूएन हो या नाटो हर जगह दोनों का बंधन मजबूत है. यही वजह है कि आज यूरोपियन यूनियन की एकता का परचम पूरी दुनिया में लहरा रहा है.