Frank Borman: अपोलो मिशन का जब भी होगा जिक्र याद आएंगे फ्रैंक बोरमैन, जानें- कौन हैं वो शख्स
फ्रैंक बोरमैन अब इस दुनिया में नहीं है. जब कभी भी नासा के अपोलो मिशन का जिक्र होगा इनका जिक्र होता रहेगा. 1968 में इन्होंने चांद के चक्कर लगाए थे,
Frank Borman News: स्पेस साइंस में अमेरिका का दबदबा पहले से रहा है. ग्रहों और उग्रहों के अध्ययन के लिए नासा को खास जगह हासिल है, चाहे मंगल, वीनस हो चांद हो या एस्टेरॉयड इस खगोलीय पिंडों की जानकारी हासिल करने के लिए नासा के अभियान चर्चा में रहते हैं, यहां पर हम एक ऐसे शख्स का जिक्र करेंगे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन नासा के अपोलो मिशन से खास नाता रहा है. जी हां उस शख्स का नाम फ्रैंक बोरमैन हैं जिन्होंने 1968 में अपोलो 8 स्पेसफ्लाइट में सवार हो चांद के चक्कर लगाये थे. ऐसा करने वाले वो दुनिया के पहले एस्ट्रोनॉट बने.
कौन थे फ्रैंक बोरमैन
फ्रैंक बोरमैन का जन्म 14 मार्च 1928 को गैरी इंडियाना में हुआ था. अमेरिकी सैन्य एकेडमी से स्नातक की पढ़ाई के बाद अमेरिकन एयरफोर्स में पायलट के पद पर तैनात हुये. 1962 से उनका सफर नासा के साथ शुरू हुआ और टेस्ट पायलट के रूप में ट्रेनिंग ली, अपोलो मिशन से पहले उन्होंने पहले 20 दिन तक स्पेस में बिताया था और उनके अनुभव को देखते हुए अपोलो 8 मिशन की जिम्मेदारी दी गई. 1965 में जेमिनी 7 यात्रा के समय उन्होंने लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड भी बनाया था. लेकिन अपोलो मिशन उनकी जिंदगी के लिए निर्णायक लम्हे की तरह था. फ्रैंक बोरमैन के साथ साथ उनके साथी सदस्य जेम्स लोवेल और विलियम एंडर्स थे. अपोलो मिशन की अगुवाई करते हुए उन्होंने चंद्रमा के सबसे दूर वाले हिस्से का निरीक्षण करने के साथ ही अर्थराइज की तस्वीर लेने वाले शख्स बने.यह एक निर्णायक छवि बन गई और इसे अक्सर पर्यावरण आंदोलन शुरू करने और पृथ्वी दिवस के निर्माण का श्रेय दिया जाता है.चंद्रमा के जिन इलाकों की तस्वीर उतारी थी, वो आगे वाले मून मिशन में कारगर साबित हुए.
एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद, श्री बोरमैन ने 1975 में संकटग्रस्त ईस्टर्न एयरलाइंस का नेतृत्व किया. 1993 में यूएस एस्ट्रोनॉट हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया था. यही नहीं इंडियाना और इलिनोइस के बीच एक्सप्रेसवे के एक सेक्शन का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था. बोरमैन के बारे में कहा जाता है कि जिस काम की जिम्मेदारी दी जाती थी. उसे अंजाम तक पहुंचाने तक कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे.