Situation after the coup in Bangladesh: बांग्लादेश में सरकार बदलने का असर ढाका यूनिवर्सिटी कैंपस में भी दिख रहा रहा है, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र था. यहां दीवारों पर ऐसे-ऐसे नारे लिखे हैं, जिनसे पता चलता है कि प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाने वाले युवा व छात्र इस परिवर्तन को भूलना नहीं चाहते हैं. वहां की दीवार पर लिखा है '36 जुलाई'. इसका मतलब 31 जुलाई के विद्रोह के बाद 5 अगस्त को शेख हसीना के देश छोड़कर जाने से है. इन दोनों घटनाओं को मिलाकर अब 36 जुलाई कहा जा रहा है. ढाका विश्वविद्यालय में एक आधिकारिक बंगले के गेट पर स्प्रे पेंट से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है, 'यह नया बांग्लादेश' है. एक अन्य दीवार पर 'प्रतिरोध अमर रहे' का नारा लिखा है और दीवार पर देश के राष्ट्रीय ध्वज और मानव हाथों की तस्वीरें बनी हैं.


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शेख हसीना का उड़ाया जा रहा मजाक


मीडिया से बात करते हुए यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने दावा किया कि दीवारों पर ये सब पेंटिंग, विश्वविद्यालय के ललित कला छात्रों के एक समूह की ओर से बनाई गई हैं. ये भित्ति चित्र चटख और जीवंत रंगों से बने हुए हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश में बांग्ला भाषा में लिखे गए मार्मिक संदेश हैं और कुछ में अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना का मजाक उड़ाया गया है, जिन्होंने पांच अगस्त को अभूतपूर्व सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद इस्तीफा दे दिया और भारत चली गईं. 


ढाका विश्वविद्यालय के एक छात्र अब्दुर रहमान ने बताया, “ये भित्ति चित्र और कलाकृतियां डीयू (ढाका विश्वविद्यालय) के ललित कला विभाग के कुछ छात्रों द्वारा बनाई गई हैं. यह व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए छात्रों और अन्य लोगों के संघर्ष को याद करने के साथ-साथ भविष्य में व्यवस्था में बदलाव लाने के वास्ते दूसरों को प्रेरित करने के लिए भी है.” 


छात्र संघ चुनाव के लिए हो रहे इकट्ठे


ढाका से लगभग 100 किलोमीटर दूर, बांग्लादेश के ऐतिहासिक कोमिला जिले के मूल निवासी रहमान वर्तमान में 103 वर्ष पुरानी ढाका यूनिवर्सिटीके अंग्रेजी विभाग में प्रथम वर्ष के स्नातक छात्र हैं. यूनिवर्सिटी के टीएससी (शिक्षक छात्र केंद्र) के सामने वाले सार्वजनिक चौक पर 1997 में खोला गया प्रसिद्ध ‘आतंकवाद विरोधी राजू स्मारक’ है, जहां आजकल अनेक छात्र अपनी दो प्रमुख मांगों - “विश्वविद्यालय में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप न हो और ढाका विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव यथाशीघ्र कराया जाए”- के लिए आवाज उठाने के वास्ते एकत्रित होते हैं.


जब आप देश में बांग्ला भाषा आंदोलन को समर्पित स्मारक ‘शहीद मीनार’ की तरफ जाते हैं तो दीवार के दोनों तरफ विशालकाय विषयगत भित्तिचित्र स्वत: ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं. बांग्लादेश में सरकारी सेवाओं में नौकरियों के आवंटन के लिए आरक्षण प्रणाली की बहाली के विरोध में हुए विरोध प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं और कई लोग घायल हुए थे. लगातार विरोध के बाद हसीना सरकार के पतन को कई बांग्लादेशियों ने ‘बांग्लादेश की दूसरी आजादी’ या ‘नए बांग्लादेश’ या ‘नोतुन बांग्लादेश’ (बंगाली में) के जन्म के रूप में वर्णित किया है. 


आंदोलन का 36 जुलाई से क्या है संबंध?


ढाका विश्वविद्यालय क्षेत्र में बने कई नए भित्तिचित्रों में ‘36 जुलाई’ की तारीख अंकित है, जो स्थानीय प्रदर्शनकारियों द्वारा ‘5 अगस्त’ का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया गया एक अलग तरह का शब्द है. एक अन्य भित्तिचित्र में लिखा है, ‘36 जुलाई हम न कभी भूलेंगे, न कभी माफ करेंगे’. रहमान ने कहा, “विरोध प्रदर्शन जुलाई महीने में 31 दिनों तक चला और पांच अगस्त को ‘भ्रष्ट और तानाशाह सरकार’ के पतन के साथ ‘विजय’ हासिल हुई. लेकिन, वे जुलाई को यादगार बनाना चाहते थे, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से अतिरिक्त ‘पांच दिन’ जोड़कर इसे ‘36 जुलाई’ (5 अगस्त के बजाय) कहा गया. रक्तरंजित महीना ‘बढ़ा’ दिया गया, और इसलिए ये कलाकृतियां उस भावना को दर्शाती हैं और मारे गए लोगों को सम्मानित करती हैं.” 


(एजेंसी भाषा)


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