Women sexually exploited by UN staff: युद्ध हो या प्राकतिक आपदा, हर मुसीबत का सबसे ज्यादा दंश महिलाओं को झेलना पड़ता है. यहां बात गरीब देशों की जहां आपदा या गृह युद्ध के चलते ऐसे हालात बनें कि बेकाबू हो रही स्थितियों पर काबू पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी फौज उतारनी पड़ी. अब दिक्कत ये हो रही है कि रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं. दरअसल संयुक्त राष्ट्र (UN) ने उन रिपोर्ट्स पर प्रतिक्रिया दी है, जिनमें कहा गया था कि उसके अधिकारी और सैनिक स्थानीय महिलाओं/लड़कियों के साथ शारीरिक संबंध बना रहे हैं. जिसकी उन पीड़िताओं की मानसिक स्थिति और जीवन दोनों खराब हो रहे हैं.


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अब तक सामने आए 463 पितृत्व दावे


सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति सैनिकों द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के बाद हैवानियत का शिकार हुईं महिलाएं और लड़कियां उनके बच्चों की मां बन जाती हैं. दरअसल यूएन के सैनिक और अन्य अधिकारी दुनियाभर के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में तैनात होते हैं. इस दौरान वो स्थानीय महिलाओं या किशोर लड़कियों के साथ संबंध बनाते हैं और मिशन खत्म होने के बाद उन्हें बेसहारा छोड़ जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र ने अब तक 463 पितृत्व दावे के मामले दर्ज किए हैं, हालांकि जांच में अभीतक ऐसे केवल 55 केस सही पाए गए हैं.



पॉलीन फिलिप की कहानी


सीएनएन की हालिया रिपोर्ट में ऐसी ही एक मां की कहानी है, जिसका नाम पॉलीन फिलिप है. वो हैती की मूल निवासी हैं. 2012 में उनके दो जुड़वां बच्चे हुए, जिनके पिता एक ऐसे व्यक्ति थे जो संयुक्त राष्ट्र सहायता प्रयास दल का हिस्सा था और उस देस में अस्थायी नियुक्ति पर गए थे. वहां 2010 में आए घातक भूकंप के बाद सहायता प्रयास शुरू किए गए थे. जब फिलिप ने अपनी गर्भावस्था के बारे में बच्चे के पिता को बताया, तो उसने जवाब देते हुए कहा, 'यह कैसे हो सकता है? मुझ से? मैं देश छोड़ने जा रहा हूं, ये नाजायज बच्चे किसी और के होंगे.'


संयुक्त राष्ट्र का बयान


इस मामले को लेकर यूएन का कहना है कि हमारे लोग आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लंबे समय तक रहते हैं. आपदाग्रस्त देश में उसके स्टाफ और स्थानीय आबादी के बीच इमोशनल संबंध बनना स्वाभाविक रूप से ऐसा असमान्य घटनाक्रम है जिससे संयुक्त राष्ट्र के काम की विश्वसनीयता और अखंडता कमजोर होती है. इस स्थिति से निपटने के लिए एजेंसी ने अपने कर्मचारियों को आपदा प्रभावित देशों के नागरिकों के साथ आपसी भाईचारा रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यह एक एहतियाती कदम है, जो कितना कारगर साबित होगा इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. 


हालांकि जिन मामलों में यूएन ने महिलाओं के दावे स्वीकार किए हैं. इससे लगता है कि एक न एक दिन हर ऐसी पीड़िता को इंसाफ मिलेगा. उनकी मदद के लिए कोई कार्यक्रम चलाया जाएगा. वहीं दूसरी ओर शांति सेना के अफसर, जवान और स्टाफ भी ऐसी हरकतों से दूर रहेंगे.