नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गुरुवार को एक प्रस्ताव पास कर अमेरिका से यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के फैसले को वापस लेने को कहा है. पिछले कुछ समय से लगभग हर मोर्चे पर अमेरिका का साथ देने वाले भारत ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के बाद भी यरुशलम के मुद्दे पर विरोध में वोट किया है. भारत सहित दुनिया के 128 देशों ने संयुक्त राष्ट्र में यरुशलम को इजरायल की राजधानी मानने से मना कर दिया. केवल 9 देशों ने ही अमेरिका के प्रस्ताव का समर्थन किया. 35 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी भरे लहजे में कहा था कि जो भी देश यरुशलम के मसले पर उसके पक्ष में वोट देंगे, उन्हें आर्थिक मदद देने में अमेरिका कटौती करेगा.


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6 साल में पहली बार किया वीटो का इस्तेमाल
यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को वापस लेने के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रखे गये प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वीटो का इस्तेमाल किया है. पिछले छह वर्षों में पहली बार अमेरिका ने किसी प्रस्ताव को वीटो किया है. ट्रंप ने छह दिसंबर को अपनी घोषणा में कहा था कि वह यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से हटाकर यरूशलम में स्थापित करेंगे. उनकी घोषणा के बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और इसकी कटु आलोचना की जा रही है.


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15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में अमेरिका के बेहद करीबी सहयोगियों.... ब्रिटेन, फ्रांस और जापान ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. मिस्र की ओर से तैयार किये गये इस एक पन्ने के प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद् के पिछले 50 वर्षों के विभिन्न प्रस्तावों के रूख को दोहराया गया था, जिनमें यरुशलम पर इजरायल की सम्प्रभुता के दावों को खारिज किया गया है. उन्होंने चेताया कि यरूशलम के संबंध में अमेरिका की दशकों पुरानी नीति से अलग हटकर ट्रंप द्वारा की गयी घोषणा दुनिया के सबसे जटिल तनाव को सुलझाने के प्रयासों को कमजोर करेगी.


डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने पहली बार वीटो का प्रयोग किया है. अमेरिका ने पिछले छह वर्ष में पहली बार वीटो इस्तेमाल किया है. वीटो का बचाव करते हुए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने कहा, ‘वास्तविकता यह है कि इस वीटो का प्रयोग अमेरिका की सम्प्रभुता की रक्षा और पश्चिम एशिया की शांति प्रक्रिया में अमेरिकी की भूमिका के बचाव के लिए किया गया है और यह हमारे लिए शर्मिंदगी की बात नहीं है; यह सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों के लिए शर्मिंदगी का कारण होना चाहिए.’ 


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मसौदा प्रस्ताव पर हेली ने कहा, ‘सुरक्षा परिषद में जो हुआ वह अपमान है. इस्राइल-फलस्तीन मामले में संयुक्त राष्ट्र फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है, इसका एक बड़ा उदाहरण यह प्रस्ताव है.’ उन्होंने कहा, ‘अमेरिका को कोई देश यह नहीं बता सकता है कि वह अपना दूतावास कहां स्थापित करे.... अपना दूतावास कहां स्थापित करना है, सिर्फ इस फैसले पर अमेरिका को अपनी सम्प्रभुता की रक्षा करने के लिए आज विवश होना पड़ा है. रेकार्ड दिखाएगा कि हमने यह गर्व के साथ किया है.’ यरूशलम में अमेरिकी दूतावास की स्थापना और शहर को इजरायल की राजधानी घोषित करने के ट्रंप के फैसले को वापस लेने संबंधी प्रस्ताव का अमेरिका के करीबी सहयोगियों ब्रिटेन, फ्रांस और जापान ने भी समर्थन किया है.


7 दिसंबर को ट्रंप ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी माना था
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 7 दिसंबर को देर रात ऐलान किया कि अमेरिका यरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता देता है. ट्रंप ने कहा, 'अतीत में असफल नीतियों को दोहराने से हम अपनी समस्याएं हल नहीं कर सकते. आज मेरी घोषणा इसराइल और फलस्तीनी क्षेत्र के बीच विवाद के प्रति एक नए नज़रिए की शुरुआत है.' ट्रंप के इस ऐलान का मध्य पूर्व एशिया में बड़े परिणाम देखे जाने की बात कही जा रही है. कहा जा रहा है कि यरुशलम के इजराइल की राजधानी बनने के बाद मध्य पूर्व में शांति प्रक्रिया तेज होगी और टिकाऊ समझौते के रास्ते खुलेंगे. ट्रंप की इस घोषणा से पहले जर्मनी के विदेश मंत्री ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि अगर उसने येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी तो इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा. वहीं फिलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता ने चेतावनी दी कि इस अमेरिका के इस फैसले के खतरनाक अंजाम हो सकते हैं.