दुनिया के सामने नया संकट, परमाणु से भी खतरनाक हथियार बने शरणार्थी!
अमेरिका के परणामु बम ने लाखों लोगों की जान तो ली लेकिन ये परमाणु बम जापान को नहीं तोड़ पाया. लेकिन शरणार्थियों का हथियार एक ऐसा हथियार है, जो किसी देश को अस्थिर भी कर सकता है और उसे तोड़ भी सकता है.
नई दिल्ली: क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शरणार्थियों को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. आज पूरी दुनिया में शरणार्थी एक बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं. इस समय शरणार्थियों का नया संकट बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर है, जहां इराक और सीरिया के हजारों शरणार्थी पोलैंड के रास्ते यूरोप में एंट्री चाहते हैं. अब वहां बर्फीले मौसम के बीच ये शरणार्थी घेरा डालकर बैठ गए हैं. यूरोप का आरोप है कि ये रूस और बेलारूस की एक साजिश है. तो आज हम साजिशों के इस नए खेल का भी विश्लेषण करेंगे.
बेलारूस बॉर्डर पर जुटे शरणार्थी
इस समय बेलारूस की सीमा पर लगभग दो हजार शरणार्थी टेंट लगा कर बैठे हुए हैं. ये लोग किसी भी कीमत पर पोलैंड में घुसना चाहते हैं, जो यूरोपियन यूनियन का सदस्य देश है. यानी ये शरणार्थी बेलारूस से यूरोप में एंट्री लेकर एक शानदार भविष्य की उम्मीद में हैं. पिछले 10 दिनों में पोलैंड और बेलारूस की सीमा पर इन शरणार्थियों और पोलैंड की सेना के बीच 7 से ज्यादा हिंसक झड़प हो चुकी हैं.
यूरोपियन यूनियन का आरोप है कि बेलारूस की सीमा पर ये शरणार्थी अपने आप नहीं आए, बल्कि इन्हें बेलारूस ने एक हथियार के रूप में जानबूझकर सीमा पर छोड़ा है. पिछले दिनों बेलारूस के राष्ट्रपति चुनाव में धांधली के आरोप लगे थे और इसके विरोध में वहां बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद यूरोपियन यूनियन ने बेलारूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे और वहां के राष्ट्रपति Alexander Lukashenko को चुनाव में अनियमितताओं के लिए चेतावनी भी दी थी.
पोलैंड ने तैनात किए 10 हजार सैनिक
लेकिन बेलारूस ने इन प्रतिबंधों का बदला लेने के लिए पोलैंड की सीमा पर ऐसे हजारों शरणार्थियों को छोड़ दिया, जिन्हें वो खुद इराक और सीरिया के देशों से ये कह कर अपने यहां लाया था कि वो उन्हें अच्छी जिन्दगी देगा. लेकिन बाद में यूरोपियन यूनियन को सबक सिखाने के लिए उसने सीमा पर ये शरणार्थी खड़े कर दिए, जिन्होंने जंगलों को काटना शुरू कर दिया और सीमा पर हिंसा भी की. इस संकट का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वहां दो हजार शरणार्थियों को रोकने के लिए पोलैंड की सेना के 10 हजार सैनिक खड़े हुए हैं.
इस संघर्ष में कई शरणार्थियों ने अपनी जान गंवा दी है, जिसके लिए पोलैंड की आलोचना भी हो रही है. लेकिन ये भी सच है कि पोलैंड ने कभी भी इन शरणार्थियों को अपने देश में लेने की बात नहीं कही गई थी. बल्कि इन्हें तो बेलारूस ने एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. आज से कुछ वर्षों पहले तक पश्चिमी देशों के बीच खुद को मानव अधिकारों का चैम्पियन दिखाने की रेस लगी हुई थी और इस रेस को जीतने के लिए इन देशों ने लाखों शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी.
शरणार्थियों से निपटने की चुनौती
लेकिन कुछ वर्षों के बाद इन्हीं शरणार्थियों ने इन देशों की परम्पराओं और कानून को चुनौती देना शुरू कर दिया. उदाहरण के लिए फ्रांस में एक समय जिन मुसलमानों को बड़ी संख्या में शरण दी गई, वो कुछ वर्षों के बाद मदरसा व्यवस्था की मांग करने लगे और ऐसा नहीं होने पर उन्होंने अपने बच्चों को घरों में ही पढ़ाना शुरू कर दिया. जब फ्रांस सरकार ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो इन्हीं शरणार्थियों ने वहां कानून में बदलाव करने के लिए आन्दोलन और हिंसा शुरू कर दी.
इसी तरह जर्मनी ने भी शरणार्थियों का दिल खोल कर स्वागत किया. लेकिन उसे भी इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. पिछले कुछ वर्षों में वहां बड़े पैमाने पर मस्जिदों का निर्माण हुआ और आतंकवादी घटनाएं भी पहले की तुलना में बढ़ गईं. इस संकट के बाद जर्मनी को ये समझ आया कि शरणार्थियों के प्रति उसकी उदार नीतियां खतरनाक भी हो सकती हैं.
सबसे घातक हथियार बने शरणार्थी!
पूरी दुनिया में परमाणु हथियारों को सबसे खतरनाक हथियार माना जाता है. वर्ष 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिराए थे. तो इन हमलों में लगभग 1 लाख लोग मारे गए थे. पॉइंट ये है कि उस समय अमेरिका के परणामु बम ने लाखों लोगों की जान तो ली लेकिन ये परमाणु बम जापान को नहीं तोड़ पाया. लेकिन शरणार्थियों का हथियार एक ऐसा हथियार है, जो किसी देश को अस्थिर भी कर सकता है और उसे तोड़ भी सकता है.
ये बात आज भारत को भी समझने की जरूरत है. आज से एक दशक पहले बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश और म्यांमार से भारत में घुस आए थे. बाद में जब सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि इन शरणार्थियों को वापस भेजा जाए तो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के नाम हमारे देश के बुद्धिजीवी, NGOs और विपक्षी दल इसका विरोध करने लगे. ये कहा गया कि ये बेचारे शरणार्थी कहां जाएंगे.
पड़ोसी देशों से आने वाले शरणार्थियों को आज भारत से बाहर भेजना मुश्किल है. भारत ने भी अपनी उदार नीति के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश समेत कई देशों के लोगों को अपने यहां शरण दी है.