भारत सरकार के इस कदम से नेपाल को मिली बड़ी ‘राहत’, पीएम मोदी ने दिया भरोसा
India Rice Export Ban: भारत सरकार ने 20 जुलाई को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार ने आगामी त्योहारों के दौरान घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा कीमतों को काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया है.
India-Nepal Relations: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के सलाहकारों ने दावा किया है भारत सरकार की तरफ से उन्हें चावल की आपूर्ति जारी रहने का आश्वासन दिया है. बता दें भारत सरकार ने 20 को जुलाई गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार ने आगामी त्योहारों के दौरान घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा कीमतों को काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया है.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रचंड के मुख्य राजनीतिक सलाहकार हरिबोल गजुरेल यह जानकारी दी कि शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाली प्रधानमंत्री से टेलीफोन पर बातचीत हुई थी. उनके मुताबिक दोनों नेताओं ने चावाल के मुद्दे पर भी चर्चा की.
‘हम निश्चिंत हैं’
गजुरेल के मुताबिक, ‘हमें बताया गया है कि उन्होंने हमारे अनुरोध को सकारात्मक तौर पर लिया है और इसलिए हम निश्चिंत हैं."
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम प्रचंड ने प्रेस सलाहकार गोबिंद आचार्य ने भी इस इस बात की पुष्टि की कि नेपाल के मामले में भारत ने चावल का निर्यात बंद नहीं किया है.
हालांकि दोनों नेताओं की इस बातचीत को लेकर भारत की ओर से जारी बयान में चावल का ज़िक्र नहीं है.
चावल की खेती में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य
बता दें नेपाल चावल की खेती के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है. 30 जून को पीएम ‘प्रचंड’ ने राष्ट्र को चावल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का वादा किया और किसानों से इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए जलवायु-अनुकूल तकनीकों का उपयोग करने का आग्रह किया. यहां राष्ट्रीय धान दिवस के अवसर पर प्रचंड ने कहा कि उनके नेतृत्व वाली सरकार धान की खेती के लिए उचित सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार देश में किसानों की मदद के लिए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और सब्सिडी को प्राथमिकता दे रही है.
कई अन्य पर्वतीय क्षेत्रों की तरह चावल नेपाल की मुख्य फसल है. देश ने 2022-2023 में 724,000 मीट्रिक टन चावल का आयात किया, जबकि घरेलू उत्पादन 5,486,000 टन था, जो मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है. चूंकि इस वर्ष देश में मानसून की बारिश देर से हुई, इसलिए कुल कृषि योग्य भूमि के केवल 11 प्रतिशत हिस्से में धान की फसल लगाई गई.