New Zealand moves data-driven census: भारत में कुछ विपक्षी राजनीतिक दल जातिगत जनगणना कराने और आबादी के हिसाब से देश के संसाधनों में हिस्सेदारी देने की वकालत कर रहे हैं. जनगणना (census) के आकंड़ों से विकास का मास्टर प्लान बनता है. हैपीनेस इंडेक्स में अव्वल आने वाले देश हों या पिछड़े, किसी भी देश के भविष्य की रूपरेखा जनगणना के आंकड़ों के आधार पर तय होती है. इसी डाटा के आधार पर विकास के कार्यक्रम चलाए जाते हैं. दुनियाभर में जनसंख्या कराने का सबसे पुराना तरीका डोर टू डोर डाटा कलेक्शन होता है. ये एक बेहद खर्चीली और जटिल प्रकिया है. इसमें समय भी लगता है. अब न्यूजीलैंड ने इस समस्या का तोड़ खोज लिया है.


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न्यूजीलैंड में डाटा बेस्ड जनगणना


दुनिया में नवाचार पर जोर दिया जा रहा है. हार्ड वर्क की जगह अब स्मार्ट एंड क्वालिटी वर्क पर जोर दिया जा रहा है. इसी सोच के साथ न्यूजीलैंड ने अपने देश में जनगणना कराने का नया तरीका इजाद किया है. वैसे भी एक ही ढर्रे पर चलने वाली चीजों को लेकर अक्सर ये मिसाल दी जाती है कि कान को चाहे इधर से खींचो या उधर से एक ही बात होती है. ऐसे में न्यूजीलैंड की इस मुहिम और कथित पायलट प्रोजेक्ट की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है.


2028 में फूल प्रूफ डाटा?


न्यूजीलैंड में 2028 में होने वाली जनगणना को लेकर सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. इस बार वहां की सरकार जनगणना के लिए डोर टू डोर कैंपेन नहीं चलाएगी. बल्कि इस काम के लिए प्रशासनिक डाटा का इस्तेमाल किया जएगा. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इस बार सेंसस कराने के लिए विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी दफ्तरों, संस्थाओं और संगठनों के डाटा की मदद ली जाएगी. जैसे देश के बैंकिंग डिपार्टमेंट, हेल्थ डिपार्टमेंट, न्याय विभाग, निर्वाचन आयोग, परिवार कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, इनकम टैक्स विभाग, कॉमर्स डिपार्टमेंट के अधिकारिक आंकड़ों की मदद ली जाएगी. 


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2023 की जनगणना में ऐसे डाटा की मदद ली गई थी. उस फाइनल आंकड़े में आंशिक त्रुटियों के लिए कुछ मार्जन होने की बात कही गई थी. आने वाले समय में इसे त्रुटि रहित बनाने की बात कही गई थी. अब 2028 के टारगेट को लेकर पूरा देश बड़े उत्साह से काम कर रहा है.


आपको बताते चलें कि भारत जैसे दुनिया के 140 करोड़ आबादी वाले देश में डोर टू डोर कैंपेन में समय बहुत लगने के साथ खर्च भी बहुत आता है. ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत सरकार आने वाले सालों में ऐसी ही जनगणना कराने के बारे में सोच रही है.


दरअसल कौन सा देश कितना खुश और कौन सा देश ज्यादा खुशियां कम खुश है. दुनियाभर में हर साल ये इंडेक्स जारी किया जाता है. इसके आंकड़े कई चीजों पर निर्भर करते हैं. रैंकिंग देने वाली जूरी लोगों की खुशियों को मापने के लिए 6 प्रमुख कारकों का उपयोग करती है - उसमें सामाजिक समर्थन, आय, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति का ध्यान रखा जाता है. ऐसे मामलों में जनसंख्या को ध्यान में रखकर सैंपल साइज तय किया जाता है.