Palestine-Israel crisis: भारत के अंतरराष्ट्रीय शांति में योगदान के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता. भारत ने दुनिया को दिखाया है कि शांति और अहिंसा के माध्यम से भी संघर्षों को सुलझाया जा सकता है. पीएम मोदी ने रूस का दौरा करने के बाद यूक्रेन की भी यात्रा की. दोनों ही देशों से युद्ध खत्म करने की अपील की. भारत की इस पहल को देखते हुए अब फिलिस्तीन ने भी इजराइल के साथ जारी युद्ध को खत्म करने की मध्यस्थता के लिए भारत से मदद की अपील की है.


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भारत से फिलिस्तीन की उम्मीद


फिलिस्तीन के भारत में राजदूत अदनान अबू अल-हैजा ने रविवार को भारत से अपील की कि वह फिलिस्तीन और इजराइल के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करने में मदद करे. उन्होंने भारत से अनुरोध किया कि वह संघर्षविराम को लागू करने, एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने और स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के प्रयासों में सहयोग करे. 


भारत जैसे मित्र देश की तलाश


अल-हैजा ने कहा, "हम हमेशा भारत जैसे मित्र देश की तलाश में रहते हैं. जो इस तरह की समस्याओं में मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. भारत एक शांतिप्रिय देश है और हम उनसे इस भूमिका को निभाने का अनुरोध कर रहे हैं. यदि भारत दोनों देशों का मित्र है, तो वह संघर्षविराम के लिए अपील कर सकता है. एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुला सकता है. और 1967 की सीमाओं के आधार पर पूर्वी यरुशलम को राजधानी बनाकर स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए रास्ता बना सकता है."


शांति की दिशा में भारत का निरंतर प्रयास


भारत ने इस संघर्ष के शुरू होने के बाद से शांति की दिशा में अपने निरंतर समर्थन को दोहराया है. नई दिल्ली ने दोनों पक्षों को शांति के लिए प्रयास करने की सलाह दी है. संयुक्त राष्ट्र ने गाजा पट्टी में चल रहे मानवीय संकट को "विनाशकारी" बताया है. अगस्त महीने में 10 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को खाद्य सहायता नहीं मिल पाई. और उन लोगों की संख्या में 35% की गिरावट आई है, जो प्रतिदिन पका हुआ भोजन प्राप्त कर रहे थे.


इजराइल हमास युद्ध


यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब 7 अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर एक बड़ा हमला किया. इस हमले में लगभग 1,200 लोग मारे गए. जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे और लगभग 250 लोगों को हमास ने बंधक बना लिया. इसके जवाब में इजराइल ने गाजा पर एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया. जिसमें गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 40,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की जान चली गई. हालांकि, इस संख्या में नागरिक और लड़ाकों के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं किया गया है.