OPEC Plus Cuts Oil Production: कच्चे तेल को लेकर ओपेक और सहयोगियों (ओपेक प्लस) ने जो ऐलान किया है उससे दुनिया के कई देशों में हाहाकार मच सकता है. दरअसल,  ओपेक प्लस ने कहा कि वह तेल उत्पादन में प्रति दिन 20 लाख बैरल की कमी करेगा, जो कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से सबसे बड़ी कटौती है. सीएनएन ने बताया, प्रमुख तेल उत्पादकों के समूह, जिसमें सऊदी अरब और रूस शामिल हैं, ने मार्च 2020 के बाद से व्यक्तिगत रूप से अपनी पहली बैठक के बाद उत्पादन में कटौती की घोषणा की. यह कमी वैश्विक तेल मांग के लगभग 2 प्रतिशत के बराबर है.


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रिपोर्ट के अनुसार, ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत 1 प्रतिशत से अधिक बढ़कर लगभग 93 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जिससे इस सप्ताह तेल मंत्रियों की सभा से पहले लाभ हुआ. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी तेल 1.5 फीसदी बढ़कर 87.75 डॉलर हो गया. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वह ओपेक प्लस से तेल उत्पादन में बड़ी कटौती को लेकर चिंतित हैं.


उन्होंने कहा, मुझे यह देखने की जरूरत है कि विवरण क्या है. मैं चिंतित हूं, यह अनावश्यक है.  उत्पादन में कटौती नवंबर में शुरू होगी और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और उसके सहयोगी दिसंबर में फिर से मिलेंगे. एक बयान में समूह ने कहा कि उत्पादन में कटौती का निर्णय वैश्विक आर्थिक और तेल बाजार के दृष्टिकोण से जुड़ी अनिश्चितता के आलोक में किया गया है.


ऐलान के बाद तेल की कीमतों में उछाल


ओपेक प्लस के इस ऐलान के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल आया है. ऐसे में माना ज रहा है कि भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में संशोधन अभी और टलेगा. देश में पिछले छह माह से वाहन ईंधन कीमतों में बदलाव नहीं हुआ है.


कच्चे तेल की कीमतें हाल में यूक्रेन और रूस के युद्ध से पहले के स्तर पर आ गई थीं. हाल के सप्ताहों में तेल की कीमतों में गिरावट ने भारत को अपने आयात बिल में कटौती करने के साथ-साथ पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर सर्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को होने वाले नुकसान को सीमित करने में मदद की थी.


उद्योग के सूत्रों ने कहा कि ओपेक प्लस के निर्णय से पहले डीजल पर घाटा लगभग 30 रुपये प्रति लीटर के शिखर से घटकर लगभग पांच रुपये प्रति लीटर रह गया था, जबकि तेल कंपनियों ने पेट्रोल पर थोड़ा लाभ कमाना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से डीजल की बिक्री पर नुकसान और पेट्रोल पर मार्जिन में कमी आएगी. बता दें कि भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात करता है और अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें सीधे घरेलू मूल्य निर्धारण को निर्धारित करती हैं. 


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