Muhammad Yunus Bangladesh: पिछले सप्ताह, पाकिस्तान का एक मालवाहक जहाज बांग्लादेश के चटगांव पोर्ट पहुंचा. यह दोनों देशों के बीच पहला समुद्री संपर्क था. कराची से आए जहाज ने बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट पर माल उतारा. पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधा समुद्री संपर्क एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद खराब हुए रिश्तों को फिर से बहाल करने की कोशिश भारत को रास नहीं आने वाली. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. बांग्लादेश की भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से निकटता के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल भी है. 


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पाकिस्तानी जहाज में क्या-क्या लदकर आया?


182 मीटर लंबा कंटेनर शिप Yuan Xiang Fa Zhan कराची से चटगांव के लिए निकला था. इसने 11 नवंबर को सारा माल उतारा. न्यूज एजेंसी AFP ने चटगांव बंदरगाह अधिकारियों के हवाले से बताया कि जहाज पर पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से आया माल लदा था. इसमें बांग्लादेश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल के साथ-साथ खाद्य पदार्थ भी शामिल थे.


पाकिस्तानी माल पहले फीडर नावों के जरिए बांग्लादेश तक पहुंचता था. मतलब माल श्रीलंका, मलेशिया या सिंगापुर होते हुए बांग्लादेश तक आता था. हालांकि, सितंबर में यूनुस सरकार ने पाकिस्तान माल के आयात पर बंदिशों में ढील दे दी. पहले माल आने पर उसका सामने से निरीक्षण किया जाता था.


चटगांव पोर्ट पर पाकिस्तानी जहाज

पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंध


सीधे समुद्री लिंक स्थापित कर यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहती है, लेकिन क्यों? क्या यूनुस और उनका प्रशासन पाकिस्तान से मिले जख्मों को भूल चुका है? क्या बांग्लादेश की जनता पाकिस्तान के साथ रिश्तों में मधुरता स्वीकार कर लेगी? वही पाकिस्तान जिसकी फौज कोई पांच दशक पहले बांग्लादेश (तब ईस्ट पाकिस्तान) में कत्लेआम मचा रही थी. 30 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे, हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया. उस भयावह मंजर को बांग्लादेश की अवाम भला कैसे भूल पाई होगी!


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1971 की जंग में भारत ने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी. तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाने वाला बांग्लादेश पश्चिमी पाकिस्तान के साथ नौ महीने के युद्ध के बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र बना. बांग्लादेश का जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेहरू-गांधी परिवार से निजी संबंध थे. युद्ध के बाद बने बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा. रहमान की अवामी लीग का केंद्रीय राजनीतिक एजेंडा ही क्रूर युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए न्याय की मांग करना था.


1996-2001 और फिर 2009-2024 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना, उन्हीं रहमान की बेटी हैं. वह भारत की हिमायती रही हैं और पाकिस्तान को लेकर सतर्क. हसीना के सत्ता में रहते हुए बांग्लादेश और भारत के संबंध काफी मजबूत बने. ये नई दिल्ली से दोस्ताना रिश्‍ते ही थे जिसने इसी साल अगस्त में शेख हसीना की जान बचाई. बांग्लादेश में हसीना सरकार के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हिंसक आंदोलन शुरू हो गया था.


हसीना अपना देश छोड़कर भारत चली आईं. लेकिन इन हालिया प्रदर्शनों से यह भी संकेत मिला कि शायद बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी अवामी लीग के विचारों से सहमत नहीं. हसीना की भारत से नजदीकियां भी बहुतों को अखर रही थीं. बांग्लादेश में बढ़ती 'भारत विरोधी' भावना तब खुलकर सामने आई जब अगस्त में भीड़ ने ढाका के इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़ की और आग लगा दी.


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हसीना के जाने के बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार गठित की गई. जमात-ए-इस्लामी, जिसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध किया था, की ढाका में हसीना के बाद की सरकार में मजबूत उपस्थिति है. यूनुस सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करने चाहे. इसी साल सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और यूनुस ने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की थी.


क्या पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा बांग्लादेश?


यूनुस सरकार ने 77 साल की हसीना के नाम का अरेस्ट वारंट निकाल दिया है. हसीना ने अगस्त से ही भारत में शरण ले रखी है. इस बीच, बांग्लादेश ने जो कदम उठाए हैं, उससे लगता है कि वह पाकिस्तान बनने की राह पर चल पड़ा है. अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने बांग्लादेश के संविधान से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने का आह्वान किया है. इस प्रस्ताव से यह आशंका पैदा हो गई है कि मुख्य रूप से मुस्लिम राष्ट्र एक इस्लामिक देश बनने की ओर बढ़ रहा है. एक आशंका यह भी जाहिर की जाती रही है कि बांग्लादेश के बदलते रुख के पीछे कहीं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की चालें तो नहीं!


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भारत के लिए चिंता का सबब


भारत पहले से ही पाकिस्तान से चलने वाली आतंकी ट्रेनिंग कैंपों और नारकोटिक्स ट्रेड से परेशान है. इस्लामाबाद और ढाका की बढ़ती नजदीकियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता की वजह बन सकती हैं. ISI इन नजदीकियों का फायदा उठाकर क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश कर सकती है. पहले भी बांग्लादेश के जरिए भारत में खलबली मचाने की कोशिश होती रही है.


हसीना सरकार के साथ बेहतर संबंधों के चलते भारत अभी तक चटगांव बंदरगाह पर ISI की गतिविधियों पर नजर रखता आया था. जहां 2004 में चीनी गोला-बारूद के करीब 1,500 बक्से जब्त किए गए थे. इस खेप की कीमत कथित तौर पर 4.5-7 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी. कथित तौर पर ISI इस खेप को भारत में प्रतिबंधित संगठन ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम) तक पहुंचाने वाली थी. हालांकि, यूनुस कहते हैं कि सरकार बदलने के बावजूद ढाका और नई दिल्ली के रिश्ते 'बेहद करीबी' बने रहेंगे.


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