China News in Hindi: अपने मैन्युफैक्चरिंग हब की बदौलत कभी दुनिया की सप्लाई चेन कहलाने वाला चीन इन दिनों बढ़ती बेरोजगारी और गिरती इकोनॉमी की समस्या से जूझ रहा है. सप्लाई के मुकाबले डिमांड घटने से चीन में उत्पादन घट रहा है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां जा रही हैं. इससे मजदूरों में हताशा बढ़ रही है और वहां बार-बार हड़ताल हो रही है. वहीं पड़ोसी भारत की अर्थव्यवस्था बूम-बूम हो रही है. चीन छोड़कर जा रही कंपनियां अब भारत को नया ठिकाना बना रही हैं, जिससे ड्रैगन के कलेजे पर और सांप लौट रहे हैं. अब उसकी दरियादिली कहें या गिरती इकोनॉमी का असर, US को साधने के लिए चीन फिर से 'पांडा डिप्लोमेसी' वाला कार्ड चल रहा है. 


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अमेरिका को पांडा भेंट करेगा चीन


चीन की वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन असोसिएशन अब वॉशिंगटन के राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्रशासन के साथ ज्यादा चीनी पांडाओं को अमेरिका भेजने पर काम कर रही है. चीन का कहना है कि पांडाओं के वैश्विक संरक्षण की मुहिम के तहत इस अभियान को अंजाम दिया जा रहा है. कूटनीतिज्ञ विशेषज्ञों के मुताबिक इस पांडा डिप्लोमेसी के जरिए चीन अपने प्रतिद्वंदी अमेरिका को यह संदेश दे रहा है कि वह अब उसके साथ दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाना चाहता है. 


चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने गुरुवार को कहा कि चीनी संस्थानों ने पांडा के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक नया दौर शुरू किया है. इसके तहत स्पेन में मैड्रिड चिड़ियाघर और संयुक्त राज्य अमेरिका में सैन डिएगो चिड़ियाघर के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन राष्ट्रीय चिड़ियाघर और ऑस्ट्रिया में (वियना चिड़ियाघर) को भी पांडा गिफ्ट करने की पॉलिसी पर काम चल रहा है. 


समझौता खत्म होने पर यूएस ने लौटा दिए थे पांडा


बता दें कि वाशिंगटन के राष्ट्रीय चिड़ियाघर ने चीन के साथ एग्रीमेंट खत्म होने पर 50 साल बाद उसके 3 पांडा वापस लौटा दिए थे. इसके बाद जॉर्जिया का  अटलांटा चिड़ियाघर पांडा रखने वाला अमेरिका का एकमात्र चिड़ियाघर बन गया है. चार पांडा रखने के लिए चीन के साथ किया गया उसका समझौता भी इस साल समाप्त हो रहा है, जिसका मतलब है कि 1972 के बाद पहली बार अमेरिका में कोई पांडा नहीं होगा. वर्ष 1972 में चीनी सरकार ने राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक शीत युद्ध यात्रा के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका को उपहार के रूप में दो विशाल पांडा भेंट किए थे, जिनके प्रजनन से पांडाओं की संख्या बढ़ती चली गई. 


पहले भी करता रहा है पांडा डिप्लोमेसी का इस्तेमाल


माना जा रहा है कि चीन की इस पहल से दो महाशक्तियों के बीच राजनयिक संबंधों में सुधार आ सकता है. यह पहली बार नहीं है, जब चीन इस पांडा डिप्लोमेसी का इस्तेमाल कर रहा हो. इससे पहले भी चीन विभिन्न  देशों के चिड़ियाघरों को अपने प्रिय भालू पांडाओं को गिफ्ट कर चुका है. ऐसा वह उन्हीं देशों के साथ करता है, जिनके साथ वह अपने संबंध आगे बढ़ाना चाहता है. 


केवल चीन में पाई जाती है दुर्लभ प्रजाति


खास बात ये है कि पांडा भालुओं की एक दुर्लभ प्रजाति है, जो केवल चीन में पाई जाती है. दूसरे भालुओं की तुलना में ये पांडा आमतौर पर शांत होते हैं, जिसकी वजह से इनकी केयर करना आसान होता है. खूबसूरत दिखने वाले इन पांडाओं की दुनियाभर के पर्यटकों में बड़ी मांग है. इसीलिए चीन जिस देश को भी पांडा गिफ्ट करता है, उसके साथ ही यह शर्त भी रख देता है कि वह इन्हें कभी भी वापस मांग सकता है. कई बार वह उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए दूसरे देशों को देता है और फिर बाद में वापस मंगा लेता है. उसकी ओर से पांडा वापस मंगाया जाना चीन की नाराजगी का संकेत माना जाता है.