Taiwan Ground Zero (Diary): नमस्कार! मैं हूं विशाल पाण्डेय, आज मैं आपको ताइवान यात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण अनुभव साझा करने जा रहा हूं. जब चीन और ताइवान के बीच विवाद चल रहा है, तो इस बीच आपको ताइवान के बारे में वो सब कुछ जानना चाहिए, जो सवाल आपके मन में हों. इसलिए मैं आपको ताइवान ग्राउंड जीरो से आंखों देखी स्थिति से रूबरू कराने जा रहा हूं. इस वक्त ताइपे इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बैंकॉक की मेरी फ़्लाइट उड़ान भर चुकी है और मैं On Board यह आंखों देखी रिपोर्ट आपके लिए लिख रहा हूं.


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चीन और ताइवान के बीच विवाद तब और बढ़ गया जब अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी अचानक से ताइपे पहुंच गईं. ताइपे, ताइवान की राजधानी है. नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद चीन ने ताइवान स्ट्रेट में बहुत ज्यादा आक्रामक मिलिट्री ड्रिल शुरू कर दी. ताइवान के ऊपर से मिसाइलें छोड़कर चीन युद्धाभ्यास करने लगा. भारतीय मीडिया के लिए यह बड़ी खबर थी क्योंकि एक तरफ रूस-यूक्रेन का युद्ध अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि चीन और ताइवान युद्ध के मुहाने पर आकर खड़े हो गए हैं.


Zee News के संपादक रजनीश सर ने कहा कि ताइवान जाने की तुरंत तैयारी करनी चाहिए और वीजा लेना चाहिए. इसके बाद एक रिपोर्टर होने के नाते हमने भी ताइवान जाने की कोशिशें शुरू कर दीं. ताइवान का भारत के साथ सीधे डिप्लोमैटिक रिश्ता नहीं है, क्योंकि अभी तक संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी है. ताइवान के साथ भारत के सिर्फ व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते ही हैं. इसी वजह से नई दिल्ली में ताइवान का एक आर्थिक और सांस्कृतिक केन्द्र है, जो कि ताइवान का वीज़ा भी जारी करने का काम करता है. मैंने अपना और अपने कैमरामैन एस जयदीप का पासपोर्ट और संबंधित कागज वीजा के लिए जमा कर दिए. कई दिनों बाद ताइवान ने हमें यह वीज़ा जारी किया और हमने अपने ताइवान यात्रा की तैयारियां शुरू कर दी.


18 अगस्त को नई दिल्ली से ताइपे के लिए हम रवाना हुए. आपको बात दें कि ताइवान में कोविड के नियम बेहद सख्त हैं और इन नियमों का पालन हर किसी को करना पड़ता है. नई दिल्ली से फ्लाइट लेने से पहले ही हमें Quarantine के लिए होटल बुक करना था, क्योंकि ताइवान में विदेशी नागरिकों को 4 दिन का Quarantine अनिवार्य है. यह Quarantine शुरुआती 4 दिनों के लिए होता है लेकिन अगले 4 दिन भी आपको सेल्फ Quarantine में रहना होता है. हालांकि शुरुआती 4 दिन बाद आप होटल से बाहर निकल सकते हैं, लेकिन रात 10 बजे तक दोबारा होटल वापस आना होता है. यही नहीं 4 दिन बाद आप जब होटल से निकलेंगे तो आपको अपना कोविड टेस्ट भी कराके दिखाना होगा.


खैर, ताइपे इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचने से पहले हमने शहर में एक होटल बुक कर लिया. ताइपे एयरपोर्ट पर फ्लाइट से निकलते ही हमारा Temperature चेक किया गया और फिर हमें Local Sim Card खरीदने की लाइन में लगने को कह दिया गया. यहां पर आपको बता दें कि Local Sim Card खरीदना हर विदेशी नागरिक के लिए अनिवार्य है. हमने जैसे ही Sim Card खरीदा, ताइवान के एयरपोर्ट अधिकारियों ने सिम कार्ड को हमारे फोन में Install किया और फिर एक ऑनलाइन Form भरा. यह कोविड और Quarantine से संबंधित Form था. इस फॉर्म में हमारे Quarantine होटल का नाम, पता, लोकल मोबाइल नंबर और पासपोर्ट नंबर की डिटेल भरनी होती है. ताइवान का स्वास्थ्य विभाग Local Sim Card का इस्तेमाल हमारी लोकेशन को ट्रेस करने के लिए करता है कि कहीं हम उनके Covid या Quarantine नियमों का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद हम एयरपोर्ट पर Covid Centre पर पहुंचे, जहां हमें 2-2 Antigen Rapid Test की किट दी गई और RT-PCR टेस्ट करने की 1-1 किट.



इस प्रक्रिया के बाद हमने अपना इमीग्रेशन पूरा किया और एयरपोर्ट के बाहर निकले. ताइपे एयरपोर्ट के बाहर निकलते वक्त एक लाइन बनी हुई थी, जिसमें लगकर हमें अपना RT-PCR का सैंपल देना पड़ा. इस जगह पर हमें एक फॉर्म भी भरना पड़ा, जिसमें अपनी पूरी जानकारी लिखनी पड़ी. इस सैंपल के बाद हमारे कंधों पर Quarantine का स्टिकर चिपका दिया गया. हम जब एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी स्टैंड पर पहुंचे तो विदेशी नागरिकों के लिए अलग टैक्सी स्टैंड बना हुआ था, जो कि Quarantine होने वाले लोगों के लिए ही था. एयरपोर्ट के अधिकारियों ने हमें पीली टैक्सी में बिठाया और ये टैक्सी सीधे Quarantine होटल पर ही जाकर रूकी. ताइपे के Royal Season होटल में मैं और मेरे कैमरामैन एस जयदीप 22 अगस्त की सुबह तक यानि कुल 4 रात और 3 दिन Quarantine में रहे. इस दौरान हम अपने कमरे से बाहर नहीं निकल सकते थे. रोज सुबह और शाम हम दोनों को अपना Body Temperature होटल को भेजना होता था. होटल इसके लिए Line App का सहारा लेता था. 4 दिनों तक मैं अपने कमरे की खिड़की के पास खड़े होकर LIVE रिपोर्टिंग करता रहा और यहीं से ताइवान की जानकारियां आप सभी तक साझा करता रहा.


22 अगस्त की सुबह हमारे लिए बहुत उत्सुकता भरी थी क्योंकि इस दिन हम Quarantine से बाहर निकले और ताइवान-चीन विवाद पर हमें पहली ग्राउंड रिपोर्ट करने का मौका मिला. ताइवान में एक सबसे बड़ी चुनौती भाषा की है, यहां पर अधिकतर लोग चायनीज बोलते हैं और अंग्रेज़ी में बात करना उनके लिए बेहद मुश्किल होता है. संयोग से होटल ने हमारे लिए जो टैक्सी बुक की थी, उस चालक को English आती थी. इनका नाम Mr. Lionel Lee था, जो कि ताइवान की सरकार से मान्यता प्राप्त टूर गाइड भी थे.


22 अगस्त की सुबह जब हम होटल से बाहर निकले तो देखा कि ताइवान के लोगों पर चीन की धमकियों का कोई असर नहीं है. ताइवान में जनजीवन पूरी तरह से सामान्य दिख रहा था. ताइवान के लोग अपने काम में व्यस्त थे और ऐसा लग रहा था कि उन्हें चीन की ड्रिल या धमकियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. मुझे लगा कि शायद यह ताइवान के लोगों का आत्मविश्वास हो, क्योंकि वो पिछले 70 सालों से चीन की धमकियों को सुनते आ रहे हैं. इसी बीच मैंने अपने ड्राइवर Lee से पूछा कि आप चीन-ताइवान विवाद पर क्या सोचते हैं ? Lee ने कहा कि चीन को तो हम कई सालों से देखते रहे हैं और अब तो मेरे बाल सफेद भी हो चुके हैं. चीन सिर्फ डराना चाहता है और चीन के सामने जो डर जाता तो उसे चीन दबाना चाहता है, लेकिन अब ताइवान ना तो चीन से डर रहा है और ना ही चीन से दब रहा है. इसलिए चीन ज्यादा परेशान है और ताइवान के लोग मस्त होकर अपना काम कर रहे हैं. चालक Lee से बात करते करते हम ताइवान के राष्ट्रपति भवन के बाहर पहुंचे.


राष्ट्रपति भवन के बाहर सुरक्षा काफी कड़ी थी. इसी राष्ट्रपति भवन में ही ताइवान की राष्ट्रपति साईं इंग वेन और नैंसी पेलोसी की मुलाकात हुई थी. साईं इंग वेन विदेशी डेलीगेशन से इसी राष्ट्रपति भवन में मुलाकात करती हैं. इस जगह पर हमारी मुलाकात भारतीय छात्र सौरभ डांगर से हुई, जो कि यहां पर पढ़ाई कर रहे हैं. यहां से रिपोर्ट करने के बाद हम 'चियांग काई शेक मेमोरियल' पहुंचे. चियांग काई शेक KMP के सर्वमान्य नेता थे, जो कि CPP से हार के बाद ताइवान आ गए थे और तब से ही ताइवान पर इनका नियंत्रण रहा. जब भी कोई विदेशी डेलीगेशन ताइपे पहुंचता है तो वो इस चियांग काई शेक मेमोरियल जरूर आता है. यहां पर हमारी मुलाकात एक आम ताइवानी महिला से हुई, जो अपने पति और बच्चे के साथ मेमोरियल घूमने आई थी. मैं महिला का नाम तो सही से नहीं याद कर पा रहा हूं लेकिन उनकी बातचीत का एक एक हिस्सा मेरे दिलो दिमाग में अभी भी बैठा हुआ है. ताइवानी महिला ने कहा कि, "हम आम नागरिक हैं, हमें सिर्फ शांति चाहिए. चीन को युद्ध जैसे हालात नहीं पैदा करना चाहिए. हम अपना जीवन अच्छे से जीना चाहते हैं. युद्ध से किसी को क्या मिलता है ? रूस-यूक्रेन युद्ध में भी आम नागरिक ही सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. हम अपने बच्चों का भविष्य बनाना चाहते हैं और ताइवान को आगे बढ़ाना चाहते हैं. हम लोकतंत्र के पक्षधर हैं." ताइवानी महिला ने हमें बताया कि, "हमें भारत से बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि भारत का लोकतंत्र हमारे लिए एक मिसाल है. हम सिर्फ और सिर्फ शांति चाहते हैं." इनकी बातों को सुनकर मैं आगे बढ़ा और मैंने देखा कि ताइवान के नागरिक वास्तव में अपने आप में इतना व्यस्त हैं कि उन्हें चीन-ताइवान टेंशन की कोई परवाह नहीं है.


भारतीय छात्र सौरभ के साथ हम मयूर इंडियन किचन पहुंचे, जो कि ताइपे में एक भारतीय किचन की चेन है. यहां पर हमारी मुलाकात कई भारतीयों से हुई. मयूर श्रीवास्तव जो कि MIK के मालिक हैं. उन्होंने बताया कि भारतीयों को यहां कोई परेशानी नहीं है. लेकिन चीन जिस तरह से ड्रिल कर रहा है उसे देखकर डर जरूर लगता है. वहीं ताइवान में ही पीएचडी कर रहे मोहम्मद मिस्बाह ने कहा कि रूस-यूक्रेन के बीच भी ऐसी ही तनातनी थी और अचानक से युद्ध की शुरूआत हो गई. मिस्बाह ने आशंका व्यक्त की कि कहीं ताइवान और चीन के बीच भी युद्ध ना शुरू हो जाए. मिस्बाह ने कहा कि ताइवान चारों तरफ से समंदर से घिरा है अगर चीन और ताइवान के बीच युद्ध होता है तो यहाँ से भारतीयों को रेस्कयू करना आसान नहीं होगा. इसलिए भारत सरकार को पहले से ही कोई प्लान बी बनाकर रखना चाहिए, क्योंकि ताइवान में हज़ारों की संख्या में भारतीय रहते हैं. इस बातचीत के बाद हम रेस्टोरेंट से बाहर निकले और हमने देखा कि हर घर तिरंगा का एक पोस्टर इस रेस्टोरेन्ट के बाहर भी लगा है.


मयूर इंडियन किचन से हम सीधे ताइवान के विदेश मंत्रालय पहुंचे जहां पर ताइवान के कुछ अधिकारियों से मुलाकात हुई. विदेश मंत्रालय से हम सीधे ताइवान के Taoyuan पहुंचे, जो कि ताइपे से लगभग 25-30 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां हम एक Electric Vehicle निर्माता कंपनी पहुंचे. यहां पर जाने के बाद हमें पता चला कि ताइवान इलैक्ट्रिक व्हीकल उत्पादन में भी बहुत आगे है. ताइवान ड्राइवर लैस EV Bus बना चुका है और ताइपे में कुछ रूट पर ये बस चल भी रही है. ताइवान के लिए यह इंडस्ट्री भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ताइवान की अर्थव्यवस्था में इसका भी बहुत योगदान है. यहां पर हमारी मुलाकात Richard Huyang से हुई जो कि EV कंपनी के मालिक हैं. रिचर्ड का कहना था कि वो अपनी कंपनियों को भारत में भी स्थापित करना चाहते हैं और भारत के साथ कारोबारी रिश्ते को और ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं. रिचर्ड से जब मैंने पूछा कि भारत और चीन में आप किसे ज्यादा प्राथमिकता देंगे? तो रिचर्ड ने कहा कि भारत हमारी पहली प्राथमिकता है, चीन नहीं. भारत भरोसेमंद देशों में से एक हैं लेकिन हम चीन पर भरोसा नहीं कर सकते. धीरे धीरे मुझे इस बात का आभास होने लगा कि ताइवान के लोगों में चीन के खिलाफ बेहद गुस्सा भरा हुआ है, बस वो इसे खुलेआम प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं.


Taoyuan से अब मैं Hsinchu शहर के लिए रवाना हो गया. शिंचू शहर का नाम सुनकर दुनिया के कई ताकतवर मुल्कों को ताइवान की ताकत का अहसास हो जाता है. शिंचू सेमीकंडक्टर चिप का हब है. ताइवान का यह एक साइंस पार्क है जहां पर बड़े तादाद में सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन होता है. दुनिया में अकेले 65-70 फिसदी सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन ताइवान में होता है. एडवांड चिप्स के मामले में तो ताइवान बहुत आगे है. अमेरिका, चीन और भारत जैसे देश भी चिप का आयात ताइवान से ही करते हैं. दरअसल सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल हर इलेक्ट्रॉनिक आइटम में होता है. आधुनिक कारों से लेकर मोबाइल फोन, स्मार्ट वॉच, लैपटॉप, कंप्यूटर समेत लगभग लगभग हर डिवाइस में इसका प्रयोग होता है. यह उद्योग ताइवान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है. इसीलिए ताइवान का कट्टर दुश्मन चीन भी ताइवानी चिप के आगे नतमस्तक रहता है. चीन बड़े पैमाने पर चिप का आयात ताइवान से करता है. शिंचू में जब मैं एक सेंटर पर पहुंचा तो देखा कि सेमीकंडक्टर चिप लगातार बन रही है. इसके रॉ मैटेरियल को भी करीब से देखा और समझा कि कैसे चिप बनाई जाती है. ताइवान सेमीकंडक्टर चिप का बादशाह है. चीन की नजर ताइवान के इस उद्योग पर भी है इसीलिए चीन लगातार ताइवान पर कब्जा करने का प्रयास करता है. वहीं अमेरिका के लिए ताइवानी चिप इतना महत्वपूर्ण है कि वो अपने कई हाईटेक जेट में इसका इस्तेमाल करता है. अमेरिका इस उद्योग पर अपना कंट्रोल चाहता है. ताइवान और अमेरिका की नजदीकियां जितनी ज्यादा बढ़ रही हैं, चीन उतना ही परेशान होता जा रहा है.


Hsinchu में हमें ज्यादा समय लग गया और अब रात हो चली थी. हमें रात 10 बजे तक अपने होटल हर हाल में पहुंच जाना था, इसलिए हम Hsinchu से ताइपे के लिए रवाना हुए. इस दौरान ताइवान में मेरे एक सूत्र से मेरी बात हुई, उन्होंने बताया कि आप कल Hualien County जरूर जाइए. वहां पर आपको ताइवान की सैन्य तैयारियां दिखाई देंगी. उन्होंने मुझे बताया कि प्रशांत महासागर के किनारे Hualien में ताइवान का एयरफोर्स बेस है, जहां से चीन पर लगातार नजर भी रखी जा रही है और ताइवान युद्धाभ्यास भी कर रहा है. हमने जल्दी जल्दी 23 अगस्त की सुबह हुआलिन जाने के लिए रेल टिकट बुक की.


23 अगस्त को हम ताइपे मेन स्टेशन पहुंचे. यहां से हमने Hualien County के लिए ट्रेन पकड़ी. यहां पर ताइवान की एक खासियत बता देना बहुत जरूरी है कि ताइवान में बस, ट्रेन और फ्लाइट देरी से नहीं चलती है. हमने यह महसूस किया कि इनका एक एक मिनट बहुत कीमती है. ताइपे मेन स्टेशन से हमारी ट्रेन सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर रवाना होनी थी और हमारी ट्रेन सुबह 8 बजकर 7 मिनट बजे प्लेटफॉर्म पर गई और 8:10 पर रवाना हो गई. हम सुबह 10 बजकर 47 मिनट पर Hualien स्टेशन पहुंचे. यहां से पीली टैक्सी लेकर सीधे चियाशन एयरबेस के लिए रवाना हो गए. यहां पर भाषा की एक बहुत बड़ी समस्या थी. जिसका खामियाज़ा हमें उठाना पड़ा, टैक्सी वाले ने हमें लोकेशन से 3 किलोमीटर दूर उतार दिया. प्रशांत महासागर के किनारे का यह एरिया था और खूब तेज धूप भी थी. मैं और मेरे कैमरामैन कड़ी धूप में लगभग 3 किलोमीटर पैदल चलकर चियाशन एयरबेस पहुंचे. प्रशांत महासागर का खूबसूरत किनारा था और आसमान में लगातार F-16 लड़ाकू विमान उड़ान भरते दिख रहे थे. इन खतरनाक लड़ाकू विमानों का गर्जना पूरा Hualien महसूस कर रहा था. यह ताइवान का सबसे बड़ा एयरबेस है, जो कि पहाड़ों को काटकर बनाया गया है. यहां पर अंडरग्राउंड हैंगर हैं, जहां पर लगभग 200 विमानों को पार्क किया जा सकता है. अंडरग्राउंड हैंगर पहाड़ों के नीचे बने हैं, ताकि दुश्मन आसानी से निशाना ना बना सके. जिस बेस पर हम पहुंचे थे यहां प्रशांत महासागर के एक किनारे East China Sea है तो दूसरी तरफ फिलीपींस Sea मौजूद है.



यह ताइवान का सबसे पूर्वी तट है, यानि चीन से बिल्कुल विपरीत दिशा में यह तट है. यहां से जापान का ओकिनावा द्वीप नजदीक है. हमने देखा कि यहां पर ताइवान लगातार अपना सैन्य अभ्यास कर रहा है. F-16 फाइटर जेट हर 10 मिनट पर टेक ऑफ कर रहे हैं और लैंड कर रहे हैं. यहां से ताइवान स्ट्रेट में चीन की गतिविधियों पर भी ताइवान नजर रखता है. चीन की नौसेना इस बेस को निशाना बना सकती है. ऐसा खतरा लगातार बना रहता है. इसीलिए चीन की खतरनाक सबमरींस को निशाना बनाने के लिए ताइवान ने यहां पर एंटी सबमरीन एयरक्राफ्ट P3C भी तैनात कर रखा है ताकि चीन की पनडुब्बियों पर नजर रखी जा सके. चियाशन में हमने एक तरफ जहां ताइवान की सैन्य तैयारियां देखी तो दूसरी तरफ हमने यह भी देखा कि ताइवानी नागरिक बड़ी संख्या में यहां घूमने भी आ रहे हैं. ताइवानी संगीतकार प्रशांत महासागर के किनारे गीत गुनगुना रहे हैं. ऐसा लग रहा था कि ताइवान के नागरिक बहुत निडर होकर चीन का मुकाबला करने को तैयार हैं. किसी के चेहरे पर कोई चिंता की लकीरें नहीं थीं. ताइवान के लोग जैसे ही आसमान में F-16 देखते थे, तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो जाती थी और हर हाथ में मोबाइल कैमरा ऑन हो जाता था. मानो उन्हें यह महसूस हो रहा था कि यह ताइवान की शक्ति है, जो उनकी रक्षा करने के लिए गर्जना कर रहा है.


चियाशेन एयरबेस के पास मेरी मुलाकात एक लगभग 60 वर्षीय महिला से हुई, जो अपनी छोटी छोटी बेटियों के साथ नारियल पानी बेच रही थीं. वो अंग्रेजी नहीं समझ रही थीं, तो हमने गूगल ट्रांसलेशन का सहारा लिया. मैंने उनसे पूछा कि इतने फाइटर जेट उड़ रहे हैं, क्या आपको डर नहीं लगता ? मैंने उन्हें Chinese Simplified में ट्रांसलेट कर सवाल दिखाया, तो उन्होंने अपना सिर हिलाकर इशारों में जवाब दिया नहीं ! शायद वो कहना चाह रही हों कि अब यह रोज की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है. मैंने आंटी से निवेदन किया कि क्या आप टैक्सी बुला सकती हैं ? वो दौड़ते हुए बगल की दुकान पर गईं और वहां से किसी को फोन कर पीली टैक्सी बुलाई. हमने उनको ताइवानी में 'सी शै' कहकर धन्यवाद किया. हम चियाशेन एयरबेस से दोबारा Hualien रेलवे स्टेशन पहुंचे और फिर ताइपे वापस आ गए.


24 अगस्त का दिन हमारे लिए बेहद खास था. इस दिन हमें ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू से मुलाकात करनी थी. ताइवान में यह हमारा सातवां दिन था, इसलिए हमें दोबारा रैपिड टेस्ट कर रिसेप्शन पर दिखाना पड़ा और फिर हम होटल से बाहर निकल पाए. विदेश मंत्री के साथ वक्त दोपहर 3:30 बजे का था तो हम सीधे ताइपे 101 पहुंच गए, जिसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में ताइपे वन ओ वन कहा जाता है. साल 2004 में जब इसका निर्माण हुआ तो उस वक्त यह दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी. इसकी ऊँचाई 508 मीटर है. यह ताइवान की सबसे ऊँची इमारत है लेकिन दुनिया में आज इसका स्थान 11 वां है. ताइपे वन ओ वन ताइवान का आर्थिक केन्द्र है, यहां पर मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर हैं और कई अहम कंपनियां यहां मौजूद हैं. मैंने देखा कि चीन और ताइवान के बीच बॉर्डर पर भले ही तनातनी हो, चीन डराने की कोशिश कर रहा हो लेकिन ताइवान की अर्थव्यवस्था और कंपनियों पर इसका कोई भी असर नहीं पड़ रहा है. ताइपे वन ओ वन से कारोबार बेहद सामान्य ढंग से चल रहा है. ताइपे वन ओ वन के बाहर हमने देखा कि कुछ हांगकांग के नागरिक चीन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे क्योंकि हांगकांग में भी चीन ने लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल दिया है. ताइपे वन ओ वन के बारे में हमें यह भी पता चला कि यहां एक LED स्क्रीन लगी हुई है जब भी कोई विदेशी प्रतिनिधि ताइवान पहुंचता है तो इस स्क्रीन पर उसका स्वागत किया जाता है. उसके दौरे की जानकारी इस स्क्रीन पर लिखी जाती है.


ताइपे वन ओ वन से निकलकर हम एक बार मयूर इंडियन किचन पहुंचे जहां पर लंच किया और फिर ताइवान के विदेश मंत्रालय के लिए रवाना हो गए. कई भारतीय न्यूज चैनल के पत्रकार यहां पर मौजूद थे. विदेश मंत्री जोसेफ वू के आने से पहले ताइवान के विदेश विभाग की मीडिया हेड पहुंची और उन्होंने हम लोगों को ब्रीफ किया कि जोसेफ वू सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेस करेंगे और अलग अलग इंटरव्यू नहीं दे पाएंगे. यह हम लोगों के लिए थोड़ी असहज स्थिति थी क्योंकि हम सभी इस तैयारी से गए थे कि ताइवान के विदेश मंत्री का इंटरव्यू करेंगे. काफी देर तक समझाने के बाद मीडिया हेड इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं हुईं. हम भारतीय पत्रकारों ने आपस में चर्चा की कि मंत्री जी को आने देते हैं और सीधे उन्हीं से निवेदन करते हैं. दोपहर 3:30 बजे विदेश मंत्री जोसेफ वू पहुंचते हैं और हम सभी से मुलाकात करते हैं. हम सभी ने उनसे निवेदन किया कि प्रेस कॉन्फ्रेस की जगह हमें अलग अलग इंटरव्यू दे दीजिए. जोसेफ वू तुरंत मान गए और उन्होंने कहा कि हम भारतीयों को किसी भी चीज के लिए मना नहीं कर सकते हैं. भारत एक महान देश है और भारत के नागरिक हमारे लिए अतिथि हैं. सबसे पहले मैंने उनके इंटरव्यू की शुरूआत की. जोसेफ वू चीन के खिलाफ बहुत आक्रामक मूड में दिखाई दिए. उन्होंने यह कहा कि चीन युद्ध के लिए बहाना ढूंढ रहा है. हम शांति चाहते हैं लेकिन हमारी सेना भी अलर्ट मोड पर है और हम भी किसी भी चुनौती के लिए तैयार हैं. अमेरिका से सैन्य हथियारों और तकनीक के क्षेत्र में मदद की भी मांग की. इंटरव्यू के बाद ताइवान के विदेश मंत्री सभी भारतीय पत्रकारों से एक एक कर मुलाकात की. इसके बाद ताइपे शहर और आस पास के इलाकों में घूमते हुए और कुछ लोगों से मुलाकात करते हुए हम वापस होटल लौट आए. इस दौरान मेरे ड्राइवर Lionel Lee ने बताया कि क्या आप जानते हैं कि ताइवान की अधिकतर बिल्डिंग में 4th Floor नहीं होता है. मैंने कहा कि नहीं मुझे जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा क्यों होता है ? उन्होंने कहा कि आज आप अपने होटल की लिफ़्ट में चौथी मंज़िल तलाश करिए, आपको नहीं मिलेगी. मैंने होटल की लिफ्ट में देखा तो चौथे फ्लोर का बटन ही नहीं था. मुझे Lee की बात याद आई. इसकी पूरी कहानी आपको आगे बताएंगे.


25 अगस्त को हमें एक अति महत्वपूर्ण न्यूज कवरेज के लिए रवाना होना था. ताइपे से किनमैन आईलैंड जाने के लिए हमने यात्रा की शुरुआत की. ताइपे से किनमैन आईलैंड सीधे नहीं जुड़ा है, यह समंदर के बीच यह अलग टापू है जिस पर सन् 1949 से ही ताइवान का नियंत्रण है. खास बात यह है कि किनमैन आइलैंड से चीन महज 2KM दूर है. हम अपनी आँखों से चीन के शियामेन शहर को देख सकते हैं. 25 अगस्त की दोपहर 1:30 बजे हम ताइपे के सनशांग एयरपोर्ट से किनमैन आइलैंड के लिए रवाना हुए. इस यात्रा में हमारे साथ सना हाशमी भी मौजूद थीं, जो कि ताइवान मामले की जानकार और जानीमानी स्कॉलर हैं. हम दोपहर में करीब 2:45 बजे किनमैन आइलैंड पहुंचते हैं. मैंने अपने एक स्थानीय सूत्र से बातचीत कर कार बुलाई थी, जो हमें एयरपोर्ट के बाहर मिल गई. लेकिन इस कार के चालक कोई ड्राइवर नहीं बल्कि एक स्थानीय पत्रकार थे जिनका नाम Gatsby है. वो हमें सबसे पहले किनमैन के एक पारंपरिक गांव में लेकर गए, उन्होंने बताया कि यह ताइवानी कल्चर का गांव है. जिसे आज भी हमने उसी तरह में सहेज कर रखा है जो आज से कई साल पहले तक था.


किनमैन के इस पारंपरिक गांव से हम Ma-Shan के लिए रवाना हुए. Ma-Shan के करीब पहुंचते ही हमें चीन का शियामेन शहर दिखने लगा. ऐसा लग रहा था कि हम 10-15 मिनट में यहां से शियामेन, चीन पहुंच जाएंगे. स्थानीय पत्रकार Gatsby ने बताया कि यहां चीन एक और इंटरनेशनल एयरपोर्ट बना रहा है. मैंने तुरंत गाड़ी रोकने को कहा और हम सना हाशमी के साथ नीचे उतर गए. Gatsby ने हमें चीन की हर चाल के बारे में ऑफ रिकॉर्ड सब कुछ बताया लेकिन वो कैमरे के सामने आने को तैयार नहीं हुए. मैंने देखा कि चीन शियामेन की तरफ से एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट बना रहा है और जिस स्थान पर एयरपोर्ट बना रहा है वहां से ताइवान के किनमैन की दूरी मात्र 1KM ही बचती है. चीन इस एयरपोर्ट के लिए समंदर की रेत का इस्तेमाल कर रहा है जिससे ताइवान के इको सिस्टम पर बहुत बुरा प्रभाव भी पड़ रहा है. सना हाशमी ने बताया कि इस बात की भी संभावना है कि आने वाले दिनों में चीन इस एयरपोर्ट का इस्तेमाल मिलिट्री बेस के लिए भी कर सकता है. यह ताइवान के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है. मैंने देखा कि चीन की बड़ी बड़ी मशीनों लगी हुई हैं और एयरपोर्ट का काम तेजी से चल रहा है.


इस लोकेशन से 1 किलोमीटर आगे बढ़ने पर ताइवान का Ma-Shan पोस्ट आता है जो कि ताइवान की First Line of Defence ही कहलाता है. इसे आप चीन और ताइवान का बॉर्डर भी कह सकते हैं. यहां मुझे कोई फोर्स की तैनाती नजर नहीं आ रही थी, मैं बड़ा हैरान था कि आखिर इतने संवेदनशील पोस्ट पर कोई फोर्स क्यों नहीं है ? मैंने यह सवाल Gatsby से पूछा तो उन्होंने बताया कि हमारे लिए यह रूटीन है. किनमैन एक पर्यटक क्षेत्र भी है, यहां पर हम कोई भय और दहशत का माहौल नहीं पैदा होने देना चाहते हैं. हमारी सेना और फोर्स सब तैयार हैं और वो चीन पर नजर भी रखती हैं. इस लोकेशन के बारे में आपको विस्तार से बताने से पहले किनमैन का संक्षिप्त इतिहास जानना भी बेहद ज़रूरी है. किनमैन 1949 से ताइवान के नियंत्रण में है. इस स्थान को लेकर चीन और ताइवान के बीच 1950 के दशक से ही संघर्ष चलता रहा है. लगभग 2 दशक तक यहां बमबारी होती रही है और युद्ध जैसे हालात रहे. स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि चीनी सेना इतनी बमबारी की थी कि यहां पर गोलों के शेल से आज भी चाकू बनाए जाते हैं. लेकिन चीन कभी भी यहां पर जीत नहीं दर्ज कर सका. ताइवान की सेना यहां पर हर बार मजबूत पड़ी और चीन को हर बार भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. किनमैन भले ही ताइपे से 300 किलोमीटर दूर हो लेकिन मेनलैंड चायना से महज 2KM ही दूर है.
Ma-Shan बेस में हम समंदर किनारे पहुंचे. सबसे पहले हमारी नजर समंदर किनारे Anti Landing Barricades पर पड़ी, जो कि समंदर किनारे ताइवान ने लगा रखे थे. यह हमें इसलिए दिखाई पड़ गई क्योंकि इस वक्त Low Tide था और समंदर का पानी पीछे जा चुका था. Anti Landing Barricades 1950 के दशक से ही ताइवान ने लगा रखे हैं ताकि चीनी जहाजों को इस प्वाइंट से आगे बढ़ने से रोका जा सके. रात के अंधेरे में अगर चीनी शिप किनमैन की तरफ आगे बढ़ना चाहें तो ये एंटी लैंडिंग बैरिकेड्स उन्हें रोक दे. इस लोकेशन से हमें चीन का एक शिप भी दिखाई दिया जो रेत का ट्रांसपोर्ट कर रहा था. समंदर से रेत निकालकर शियामेन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण स्थल पर लेकर जा रहा था. हम अपनी आंखों से चीन के शहरों को देख रहे थे. जहां चीन में ऊंची ऊंची इमारतें थीं तो वहीं किनमैन में पारंपरिक गांव, क्योंकि ताइवान अपनी संस्कृति से खुद को जोड़कर रखना चाहता है.



Gatsby ने हमें 100 मीटर की दूरी पर एक पहाड़ी दिखाई और कहा कि यह ताइवान की आखिरी पोस्ट है. यहीं से हम चीन की हर गतिविधि पर नज़र रखते हैं. मैंने उस पोस्ट बेहद करीब से देखा, ताइवान के सैनिक काफी मुस्तैद थे. ताइवान का झंडा उस पोस्ट पर लगा हुआ था. यहां से हम Ma-Shan Observatory पोस्ट के लिए रवाना हुए. यहां पर सबसे पहले Broadcasting Tunnel में पहुंचे. 1950 के दशक में ताइवान इस टनल का इस्तेमाल चीन के खिलाफ प्रोपेगैंडा वॉर के लिए करता था. दरअसल 1950 के दशक में चीन और ताइवान के बीच बम, गोले और हथियारों से तो लड़ाई लड़ी ही जा रही थी लेकिन उसके साथ साथ एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई भी दोनों देशों के बीच छिड़ी हुई थी. जिसे चीन-ताइवान प्रोपेगैंडा वॉर के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल चीन खूब तेज आवाज में शियामेन की तरफ से गर्जना करता था, जिससे ताइवान के सैनिक बहुत परेशान होते थे और उनकी नींद टूटती थी, काफी मनोवैज्ञानिक असर पड़ता था. चीन के इस प्रोपेगैंडा वॉर का जवाब देने के लिए ताइवान ने इस Broadcasting Station का इस्तेमाल किया जो कि एक टनल में बना हुआ है. यह स्टेशन टनल में इसलिए बना हुआ था ताकि चीनी बमबारी से इसे बचाया जा सके और प्रोपेगैंडा वॉर जारी रखा जा सके. ताइवान ने चीन के खिलाफ प्रोपेगैंडा वॉर में म्यूजिक को सबसे बड़ा हथियार बनाया और इस मनोवैज्ञानिक युद्ध की सबसे बड़ी योद्धा प्रसिद्ध ताइवानी गायिका Teresa Tang थीं. Teresa ताइवान और चीन दोनों तरफ काफी प्रसिद्ध थीं. Teresa के गानों को तेज आवाज में ताइवान बजाता था, जिससे चीनी सैनिक परेशान हो जाते थे. यह प्रोपेगैंडा वॉर भी लगभग 20 साल तक चला था. जब हम Broadcasting Tunnel में अंदर गए तो हमने देखा कि आज भी यह संरक्षित रखा गया है. यहां पर एक स्टूडियो बना है और टेरेसा की तस्वीरें लगी हुई हैं.


यहां से जब हम और आगे बढ़ते हैं तो हमें कुछ पुराने बंकर मिलते हैं जिसका इस्तेमाल ताइवान की सेना किया करती थी. हालांकि अब इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है लेकिन यह बंकर इतने मजबूत और महत्वपूर्ण हैं कि किसी भी आपात स्थिति में ताइवान इनका इस्तेमाल कर सकता है. यहां पर हमारी मुलाकात एक ताइवानी नागरिक से हुई. जो हमें हिंदी में बोलते हुए सुनकर हमारे पास आए और हमसे पूछा कि क्या आप भारत से हैं ? मैंने जवाब दिया कि हां, हम लोग भारत से हैं और Zee Media न्यूज चैनल से हैं. उन्होंने हमसे बातचीत की और कहा कि हम शांति चाहते हैं. भारत से हम लोगों को बहुत उम्मीदें हैं और भारत एक ऐसा देश है जो शांति की बात करता है. अपनी बातचीत खत्म करने के बाद वो 'राम-राम इंडिया' कहकर आगे बढ़ गए. एक ताइवानी नागरिक के मुंह से राम-राम इंडिया सुनकर हमें बहुत अच्छा लगा और यह महसूस हुआ कि ताइवान में भी भारत का एक अलग और अहम स्थान है.


Ba-Shan Broadcasting स्टेशन से हम सीधे Beisan Broadcasting Wall पहुंचे. यहां पर 1950 के दशक में ताइवान ने एक प्रोपेगैंडा दीवार बना रखी थी, जो दीवार आज भी खड़ी है. इस दीवार में 48 लाउड स्पीकर लगे हुए हैं और सभी के मुंह मेनलैंड चीन की तरफ हैं. ताइवान यहां से भी चीन के खिलाफ प्रोपेगैंडा वॉर करता था. टेरेसा के संगीत यहां से भी बजाए जाते थे. इन लाउडस्पीकर की आवाज लगभग 25-30 किलोमीटर दूर तक जाती थी, जहां ये दीवार बनी है यहां से चीन मात्र 2-4 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां मौजूद रहकर मैंने चीन की एक और गतिविधि पर नजर रखी. मैंने देखा कि चीन इस पूरे समंदर क्षेत्र के किनारे अपनी तरफ से पुल बना रहा है. सना हाशमी ने बताया कि शायद इन पुलों को सीधे नए इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जोड़ने की भी साजिश हो सकती है. खैर, किनमैन भले ही चीन के बेहद नजदीक क्यों ना हो लेकिन किनमैन के नागरिक बेफिक्री से जिंदगी जीते नजर आ रहे हैं. उनके जीवन पर चीन की किसी धमकी का असर नहीं दिख रहा है. ताइवान के हर कोने से यहां पर पर्यटक भी पहुंच रहे हैं. लेकिन ताइवान की सरकार पूरे अलर्ट मोड पर है क्योंकि चीन लगातार ड्रोन के जरिए इलाके में घुसपैठ की कोशिश कर जासूसी करना चाह रहा है, अभी ताइवान की सेना ने एक चीनी ड्रोन पर फ़ायरिंग भी की.


हमारे पास मात्र 3 घंटे का समय था क्योंकि शाम 7:20 की फ़्लाइट से हमें वापस ताइपे पहुंचना था, इसलिए हम जल्दी जल्दी किनमैन एयरपोर्ट पहुंचे और फिर रात 9 बजे तक ताइपे पहुंच गए. यहां पर मैं स्थानीय पत्रकार Gatsby की तारीफ करना चाहूंगा कि उन्होंने हमारी बहुत मदद की और हमें हर उस महत्वपूर्ण स्थान पर लेकर गए जिसकी जानकारी आप तक साझा करनी जरूरी थी.


26 अगस्त की आंखों देखी मैं आपको पार्ट-2 में विस्तार से बताऊंगा क्योंकि इस दिन हमने एक ऐसी रिपोर्ट तैयार की है जिससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी और मौत के रहस्य को उजागर करने की छोटी सी कोशिश की है. क्योंकि आखिरी बार नेताजी ताइपे में ही देखे गए थे. जिसको लेकर आज भी तरह तरह के दावे किए जाते हैं.


लेकिन क्योंकि 26 अगस्त को हमें Quarantine होटल चेक आउट करना था और अब हम सामान्य होटल में रूक सकते थे. हम ताइपे के एक होटल में चेक इन के लिए पहुंचे और वहां पर अपना सामान रखने के लिए कमरे में जाने लगे. इस होटल की लिफ्ट में भी मैं चौथे मंजिल की बटन तलाश करने लगा लेकिन यहां भी चौथी मंजिल नहीं है. इस रहस्य को जानने के लिए मेरे मन में उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती गई. अपने सामान को कमरे में रखकर मैं वापस गाड़ी में पहुंचा तो मैंने ड्राइवर Lee से पूछा कि ताइवान में चौथा मंजिल क्यों नहीं होता है? तो Lee ने बताया कि ये ताइवान में अशुभ माना जाता है, इसलिए यहां अस्पताल, सरकारी दफ्तर, होटल, अपार्टमेंट कहीं भी बहुत मुश्किल से चौथा फ्लोर मिलेगा. शाम हो चली थी और हम एक तिब्बती रेस्टोरेन्ट के बाहर पहुंचे. वो लोग हिंदी बोल सकते थे. हम लोगों ने उनसे बातचीत की और हमें देखते ही वो नमस्कार करने लगे और हमसे कहा कि भारत से आए हैं, आपका स्वागत है! उन्होंने हमें चाय पिलाई और हाल चाल पूछा. तिब्बत रेस्टोरेंट में कार्यरत महिला ने अपने मालिक का नंबर दिया और कहा कि आप उनसे बात कर लीजिए, इंटरव्यू वही दे पाएंगे. हम वहां से वापस होटल चले आए.


27 अगस्त को हमें Yunlin County पहुंचना था जो कि ताइपे से लगभग 250 किलोमीटर दूर है. यहां जाने के लिए हमने ताइवान की High Speed Rail (HSR) का सहारा लिया. ताइपे मेन स्टेशन से सुबह 8:11 बजे HSR ट्रेन पकड़ी और मात्र डेढ़ घंटे में हम Yunlin County पहुंच गए. यहां पर हमें एक Girls High School में पहुंचना था. रेलवे स्टेशन से टैक्सी लेकर इस स्कूल में पहुंचे. दरअसल यहां पर ताइवान की स्पेशल फोर्स से रिटायर्ड Enouch Wu आम नागरिकों को सेल्फ डिफेंस और Emergency Crisis Response की ट्रेनिंग देने के लिए पहुंचने वाले थे. यहां पर हमने देखा कि छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और युवा हर कोई इस वर्कशॉप और प्रैक्टिस का हिस्सा था. यहां पर यह सिखाया जा रहा था कि अगर कोई आपात स्थिति आ जाए और आप घायल हो जाएं या आपके आसपास कोई बुरी तरह जख्मी हो जाए तो कैसे तुरंत मदद करनी है? इस ट्रेनिंग के दौरान हमने देखा कि बच्चे अपने माता पिता को पट्टियां बांध रहे हैं और एक दूसरे का सपोर्ट कर रहे हैं. Enouch Wu ने बताया कि यह खुद की सुरक्षा का वर्कशॉप है. हालांकि यह तैयारियां देखकर मुझे लगा कि यहां के नागरिकों को हर आपात स्थिति के लिए तैयार किया जा रहा है ताकि किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना यहां के नागरिक कर सके. चीन और ताइवान के तनाव के बीच ऐसी ट्रेनिंग बहुत महत्वपूर्ण मानी जा सकती हैं. यहां से हम वापस ताइपे पहुंचे. ताइपे मेन स्टेशन से जब हम होटल की तरफ जाने लगे तो हमारा ध्यान यहां की सड़कों पर गया. ताइपे की सड़कों पर कहीं भी कूड़ेदान नहीं है लेकिन पूरे शहर में एक भी जगह आप कूड़ा ढूंढ नहीं सकते हैं. मैंने पता किया कि यह कैसे संभव है? तो हमें पता चला कि ताइवान के लोग बहुत ज्यादा Self Discipline हैं. वो कोई भी सामान जो फेंकना होता है उसे अपने बैग में रख लेते हैं और अपने ऑफिस या घर पहुंचे कर ही उसे कूड़े में फेंकते हैं. यहां सड़क पर कोई भी कूड़ा नहीं फेंकता है. यह कोई पुलिस की सख्ती नहीं बल्कि जनता के अनुशासन का नतीजा है.


आज दोपहर ताइपे से उड़ान भरी थी और यहां तक आंखों देखी बताते बताते मेरी फ्लाइट अभी बैंकॉक एयरपोर्ट पर लैंड कर चुकी है, इसके आगे का हिस्सा लिखने की शुरुआत थोड़ी देर बाद होगी क्योंकि एयरपोर्ट पर तमाम प्रक्रियाओं से गुजरना होगा. सुरक्षा जांच के बाद फिलहाल हम बैंकॉक एयरपोर्ट पर नई दिल्ली की फ्लाइट के इंतजार में बैठे हैं. एक बार फिर आपको ताइवान की आंखों देखी की तरफ लेकर चलते हैं.


28 अगस्त सुबह 10 बजे ड्राइवर Lee ताइपे में हमारे होटल पहुंचते हैं और यहां से हम Keelung Harbour Port के लिए रवाना होते हैं, जो कि ताइपे से लगभग 40 किलोमीटर दूर है. करीब एक घंटे में हम कीलुंग हार्बर पहुंचते हैं, इसके पास ताइवान का एक बड़ा नेवल बेस भी मौजूद है. हमें यहां पर कई वॉर शिप भी खड़े नजर आए तो यहां सर्विलांस शिप और कॉम्बेट शिप भी मौजूद हैं. दरअसल ताइवान इस पोर्ट से ताइवान स्ट्रेट में कड़ी नजर रखता है. पूरे ताइवान स्ट्रेट की निगरानी यहीं से की जाती है. यहां ट्रांसपोर्ट शिप भी मौजूद रहते हैं. कीलुंग ताइवान का एक अहम मिलिट्री बेस भी कहा जा सकता है. Keelung Harbour को दिखाने के लिए हम एक ऊंचे पहाड़ पर चढ़े जहां पर एक बौद्ध मंदिर भी बना हुआ था. वहां से हमने पूरे Keelung Harbour port को दिखाया. इस मंदिर के पास ही कई छोटे बच्चे गेम्स खेल रहे थे और वहां उनके परिवार के लोग भी मौजूद थे. हमने उनसे स्थानीय भाषा में कहा 'नी हाऊ' यानि हैलो, कैसे हैं आप! उन्होंने अंग्रेजी में बात करना शुरू किया तो मैंने पूछा चीन की टेंशन का कितना असर आप लोगों पर है. स्थानीय लोगों ने बताया कि कोई असर नहीं है. चीन तो ऐसी धमकियां पिछले कई सालों से दे रहा है और हमारी कई पीढ़ियों ने इन नकली धमकियों को देखा है. आज ताइवान तरक्की के रास्ते पर है और हमारी सिर्फ यही मांग है कि ऐसा ही लोकतंत्र ताइवान में बना रहे.


हमारे चालक Lee हमें यहां से आगे एक 150 साल पुरानी टनल के पास ले गए, जो कि जापान के समय की बनी हुई टनल बताई जाती है. टनल में काफी अंधेरा था, इसलिए हम अंदर तो नहीं गए, लेकिन Lee ने जानकारी दी कि ताइवान में अगर आपात स्थिति आती है तो ऐसे टनल का इस्तेमाल शेल्टर हाउस के तौर पर किया जा सकता है. क्योंकि यह पहाड़ के नीचे बना हुआ है, इस तरह के बंकर काफी सुरक्षित रहेंगे. हमने इस टनल को अपने कैमरे में रिकॉर्ड किया और न्यूज स्टोरी बनाकर ताइपे के लिए रवाना होंगे.



ताइपे में हम शाम 5:30 बजे एक बार तिब्बत इंडियन किचन पहुंचे. जहां पर हमारी मुलाकात मार्क से हुई जो कि एक तिब्बती नागरिक हैं और पिछले 20 सालों से ताइवान में रह कर अपना कारोबार कर रहे हैं. मार्क ने बहुत गर्मजोशी से हम भारतीयों का स्वागत किया और कहा कि आप लोगों ने हम तिब्बत के लोगों को 1959 में शरण दी थी, हम हर एक भारतीय के शुक्रगुजार हैं. मार्क बहुत शानदार हिंदी में बातचीत कर रहे थे. मार्क ने मुझे अपनी कहानी भी बताई, उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज 1959 में चीन के अत्याचार से परेशान होकर भारत में शरण ली थी. 1959 में चीन ने तिब्बत में जो अत्याचार किया था, उसे पूरी दुनिया जानती है. हमारी दादी तिब्बत से उत्तराखंड पहुंची थीं और मेरा जन्म भी भारत के उत्तराखंड में ही हुआ था. दादी ने तिब्बत में चीन के अत्याचार की जो कहानी बताई थी, वो आज भी हमें याद है. सोचकर बहुत दुःख और दर्द होता है. हम लोग दलाई लामा जी के फॉलोवर्स हैं, उनका जो भी आदेश होता है वो हमारे लिए अंतिम माना जाता है. मेरा एक सपना है कि काश एक दिन तिब्बत में अपने गांव वापस जा सकूं. यह सब बताते हुए मार्क बहुत ज्यादा डरे हुए लग रहे थे कि कहीं चीन इन सब बातों को टीवी पर ना सुन ले. क्योंकि उन्हें कई बार काम के सिलसिले में चीन जाना पड़ता है, इसीलिए इस लेख में हम उनका पूरा नाम नहीं लिख रहे हैं. मार्क ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी खुलकर तारीफ की और कहा कि हमने ऐसा मजबूत प्रधानमंत्री पहली बार देखा है. हम तिब्बत के लोगों को मोदी जी से भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं. दर्द, अत्याचार और सपनों के बीच बात बात करते करते हम एक बार फिर से ताइपे पर लौटे. उन्होंने हमें शानदार प्याज पकौड़ी खिलाई और ताइपे के बारे में स्थानीय जानकारी देने लेगे. जब बात ताइपे की होने लगी तो मैंने उनसे चौथे मंजिल का रहस्य जानने की कोशिश की. मैंने मार्क से पूछा कि आखिरकार ताइवान की इमारतों में चौथी मंजिल क्यों नहीं होती है है ? मार्क ने बताया कि 4 को चीन और ताइवान जैसे देशों में बहुत ज्यादा अशुभ माना जाता है. 4 का उच्चारण चायनीज में मौत जैसा होता है, इसीलिए 4 नंबर की मंजिल को यहां स्किप कर दिया जाता है. यह एक अशुभ संख्या मानी जाती है. इसलिए लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. मार्क से बातचीत करते करते काफी समय बीत चुका था और अब हम एक बार फिर अपने होटल पहुंच जाते हैं.


29 अगस्त का दिन काफी अहम था. इस दिन हमें ताइवान की 1st Special Police Force के मुख्यालय पहुंचना था. हम सबसे पहले ताइवान के विदेश मंत्रालय पहुंचे और वहां से पत्रकारों की एक टीम पुलिस फोर्स के हेडक्वार्टर पहुंची. यह ताइवान की सबसे एलीट और आधुनिक पुलिस फोर्स मानी जाती है. यहां पर सबसे पहले हम स्पेशल फोर्स के शूटिंग रेंज में पहुंचे जहां पर फोर्स के बेस्ट कमांडो आधुनिक हथियारों से लैस थे. ये सभी एक ड्रिल कर रहे थे और निशाना लगा रहे थे. स्पेशल फोर्स के इन कमांडो के पास US Made MP 5 SMG, PPQ Hand Gun, हैंड ग्रेनेड और अन्य हथियार मौजूद थे. कई राउंड फायरिंग के बाद इनकी ड्रिल खत्म हुई. हम फिर शूटिंग रेंज से K9 यूनिट में पहुंचे जहां पर Sniffer Dogs के साथ स्पेशल फोर्स की टीम मौजूद थी. यह K9 टीम किसी भी विस्फोटक पदार्थ को ढूंढने में माहिर थी. हमने फोर्स की इस तैयारी को भी बेहद करीब से देखा. हम थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो Special Police Force की SOG यानि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की टीम हमें दिखाई देती है. यह पूरी टीम नाइट विजन कैमरे से लेकर हर एक अत्याधुनिक हथियारों से लैस थी. रात के अंधेरे में भी किसी भी ऑपरेशन को सफल करने में इस टीम की दक्षता है. हमने इनके ड्रिल को भी देखा. इन सभी जवानों के पास US Made ऑटोमैटिक गन मौजूद थीं. अब हम फोर्स के ग्राउंड में पहुंचते हैं जहां US Made Robot का एक ड्रिल देखा, जो किसी भी विस्फोटक पदार्थ को उठाकर दूर रखने में सक्षम है. यही नहीं स्पेशल फोर्स के विशेष वाहनों की ट्रेनिंग भी देखी, जिसके माध्यम से SOG टीम 2-3 मंजिला इमारत पर आसानी से चढ़ सकती है.


अब आप सोच रहे होंगे कि चीन और ताइवान के विवाद के बीच इस फोर्स का क्या काम है ? दरअसल इसे आप यूं भी समझ सकते हैं कि ये भारत के NSG जैसी टीम है, जो मुश्किल से मुश्किल हालात में जीत सुनिश्चित करती है. ताइवान ऐसे समय में ये तस्वीरें दुनिया को दिखा रहा है जब चीन से टेंशन बढ़ती जा रही है. ताइवान यह दिखाना चाहता है कि हम अपनी मिट्टी की रक्षा के लिए तैयार हैं. ताइवान यह बताना चाहता है कि जहां बॉर्डर पर मिलिट्री, वायुसेना और नेवी ने मोर्चा संभाला है तो शहरी इलाकों में Special Force भी तैयार है, जिसे जरूरत पड़ने पर कहीं भी एयर ड्रॉप किया जा सकता है. ये ऐसे ताइवानी लड़ाके हैं जो कि अकेले ही 10 चीनी सैनिकों पर भारी पड़ सकते हैं.


यहां से निकलकर हमने ताइपे को समझने के लिए कुछ जगहों पर भ्रमण किया और कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात की. ताइवान के लोग अपने काम के प्रति बेहद वफादार दिखाई दिए और समय के बहुत ज्यादा पाबंद भी नजर आए. एक एक मिनट को काउंट कर यह काम करते हैं. ताइपे जैसा पूरा शहर रात भर जगमगाता रहता है और रौशनी से सराबोर होता है. हालांकि ताइवान को पर्यटकों के लिए अभी नहीं खोला गया है जिससे यहां के टूरिज्म उद्योग पर बुरा असर पड़ा है. ताइपे में हम उस होटल के पास पहुंचे जहां पर नैंसी पेलौसी रूकीं थीं, MR Lee ने बताया कि यहां भारत का भी झंडा लगा है. ताइवान में जितने भी विदेशी डेलीगेशन आते हैं, वो सब इसी होटल में रूकते हैं. अब हम दोबारा अपने होटल पहुंच गए.


30 अगस्त की सुबह कुछ भारतीयों से फोन पर बातचीत हुई, उन्होंने बताया कि ताइपे में गणेश जी की पूजा भी होती है. ताइपे में गणेश जी का मंदिर है जो कि ताइवानी नागरिकों द्वारा संचालित होता है. मैंने भारतीय छात्र सौरभ को साथ में लिया और गूगल मैप के सहारे गणेश मंदिर पहुंच गया. यहां पर एक और भारतीय रोहन और उनकी ताइवानी पत्नी भी पूजा करने पहुंचे हुए थे. ताइपे में गणेश जी का मंदिर देखकर ऐसा लगा कि हम भारत में हों क्योंकि गणेश चतुर्थी का त्योहार कल आने वाला है. इस मंदिर में गणेश जी की मूर्ति विराजमान है. गणेश जी को भोग लगाया गया है और धूप-अगरबत्ती जलाई गई है. इस मंदिर की देखरेख कर रहीं ताइवानी महिला को मैंने नमस्कार किया और मंदिर के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की. भाषा की समस्या बहुत बड़ी थी, वो मुझे नहीं समझ पा रही थीं और मैं उन्हें नहीं समझ पा रहा था. एक बार फिर मैंने गूगल ट्रांसलेशन का सहारा लिया और Chinese Simplified में अनुवाद कर उनसे प्रश्न पूछा. तब जाकर उन्होंने गूगल पर इस मंदिर के बारे में जानकारी निकाली और हमसे साझा की. उन्होंने बताया कि यह मंदिर बेहद प्राचीन है. ताइवान में गणेश जी को शुभ कार्य, बुद्धि, विकास, धन और वैभव का देव माना जाता है, इसलिए हम लोग इनकी पूजा करते हैं. उन्होंने बताया कि गणेश जी भगवान शिव और माँ पार्वती जी के पुत्र हैं. मंदिर में पीछे बैकग्राउंड में 'ओम् गं गणपतये नमः' का मंत्र म्यूजिक के रूप में चल रहा था. यह तस्वीर बताती है कि ताइवान और भारत के बीच सांस्कृतिक रिश्ता बेहद पुराना है.


31 अगस्त को हमें वापस भारत आना है, इसलिए हम सुबह होटल से ताइपे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए. Mr Lee ने हमें एयरपोर्ट पर ड्रॉप किया. Lee ने बताया कि उनका भी एक सपना है कि वो एक बार भारत ज़रूर आएं. वो भारत घूमना चाहते है. Lee बहुत शानदार व्यक्ति हैं, शानदार इंग्लिश में बात करते हैं और उन्हें ताइवान का इतिहास और भूगोल सब चीज की जानकारी है. MR Lee से एयरपोर्ट पर विदा लेकर हम भारत वापसी करने के लिए रवाना हो गए.


हम देर रात दिल्ली पहुंचेंगे लेकिन ताइवान की यह यात्रा नए अनुभवों से भरी रही. ताइवान को समझने का मौका मिला और यह भी जानने को मिला कि चीन की विस्तारवादी नीति का कोई अंत नहीं है. ताइवान इस बार चीन से आंख में आंख मिलाकर बात कर रहा है और साईं इंग वेन बहुत मजबूती से चीन का मुकाबला करते दिखाई दे रही हैं. फ़िलहाल थाईलैंड के बैंकॉक एयरपोर्ट से इतना ही. वादे के मुताबिक़ 26 अगस्त की आँखों देखी का वर्णन दिल्ली पहुँचने के बाद जरूर करेंगे जो कि आप सभी के लिए जानना और समझना ज़रूरी है.


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