Taliban के पास कहां से आई इतनी ताकत और पैसा? ये देश देते हैं हथियार-ट्रेनिंग, आर्थिक मदद
तालिबान (Taliban) ने कुछ ही दिनों में एक देश अफगानिस्तान (Afghanistan) को अपने कब्जे में ले लिया और पूरी दुनिया देखती रह गई. अतीत में तालिबानी कहर के गवाह बन चुके लोग इन हालातों से दहले हुए हैं. अब सवाल यह है कि आखिर इतनी ताकत तालिबान के पास कैसे और कहां से आई. जाहिर है यह ताकत केवल हथियारों (Weapons) की नहीं है बल्कि उनको खरीदने-बनाने के लिए मिले पैसे की है. आइए जानते हैं कि तालिबान को इतना पैसा (Fund) कहां से मिलता है, जिसने अफगानिस्तान की सरकार (Afghanistan Government) के वजूद को ही खत्म कर दिया.
कोई नहीं जानता तालिबान के पास कितना पैसा
तालिबान (Taliban) के पास अभी कितना पैसा है या वो किस हद तक पैसा खर्च कर सकता है, इस बारे में तो कोई नहीं जानता है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान की सालाना कमाई (Taliban Income) 1.6 बिलियन डॉलर यानी कि सवा खरब रुपये से ज्यादा है. 10 साल पहले तालिबान की कमाई 300 मिलियन डॉलर थी, जो अब 5 गुने से ज्यादा बढ़ चुकी है.
ऐसे आता है पैसा
वॉइस ऑफ अमेरिका की एक खबर के मुताबिक यूएन की जून 2021 की यह रिपोर्ट कहती है कि तालिबान अरबों रुपये की यह रकम आपराधिक गतिविधियों के जरिए कमाता है. इसमें अफीम का उत्पादन, ड्रग्स की तस्करी, जबरन वसूली और फिरौती जैसे काम शामिल हैं. पिछले ही साल तालिबान ने ड्रग तस्करी से 460 मिलियन डॉलर यानी कि (34 अरब रुपये) कमाए थे. इसके अलावा अरबों रुपये की ऐसी ही कमाई उसने अवैध खनन से की थी.
रूस, पाक-ईरान करते हैं मदद
रूस और अमेरिका के कोल्ड वार के शिकार हुए अफगानिस्तान को तालिबानियों के हाथों बर्बाद करने में मोटे तौर पर 3 देशों का नाम सामने आता है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है रूस ने तालिबान को न केवल पैसे और हथियार दिए, बल्कि हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी. इसे लेकर अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के कमांडर रहे जनरल जॉन निकोलसन ने मास्को पर खुलकर आरोप भी लगाया था. ऐसे में साफ है कि तालिबान कैसे बड़े पैमाने पर लड़ाकों को भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षित करने में कामयाब हो पाया. वहीं कुछ अन्य विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान को पाकिस्तान और ईरान से भी आर्थिक मदद मिलती है.
समर्थक और फाउंडेशंस भी देते हैं पैसा
तालिबानी नेताओं को डोनेशन भी जमकर मिलता है. इसमें उसके अमीर समर्थक लोग और कई फाउंडेशन शामिल हैं, जो इस कट्टरवादी इस्लामी समूह को हर साल बड़ी राशि दान के तौर पर देते हैं. यूएन इन्हें नॉन-गवर्मेंटल चैरिटेबल फाउंडेशन नेटवर्क का नाम देता है.
बाहरी मदद से चलती थी अफगानी सरकार
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में अफगान सरकार ने 11 अरब डॉलर (8 खरब रुपये) खर्च किए थे, जिसमें से 80 फीसदी पैसा विदेशी मदद से आया था. यानी कि सरकार के पास अपना पैसा केवल 2 खरब रुपये के आसपास था. जबकि तालिबान ने साल भर में ही सवा खरब रुपये से ज्यादा जुटा लिए थे.
भारी पड़ सकता है अगला कदम
अफगानिस्तान में सुलह कराने के लिए पहुंचे अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जल्मे खलीलजाद ने हाल ही में कहा था, 'तालिबान को अंतरराष्ट्रीय सहायता पाने या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता पाने की परवाह नहीं है. उसका पहला लक्ष्य तो अफगानिस्तान पर शासन करना है. यदि कुछ समय की और देरी हुई तो यह समूह अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंकों की तिजोरियों तक पहुंच जाएगा. ऐसे में बाहर से मदद ना भी मिले तो तालिबान के पास अपना खर्च चलाने के लिए पर्याप्त रकम होगी.'