India-Bhutan: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान की अपनी दो दिवसीय राजकीय के दौरान शुक्रवार को भूटान के नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से मुलाकात की. प्रधानमंत्री मोदी ‘पड़ोस प्रथम’ की नीति के तहत भूटान के साथ भारत के अनूठे संबंधों को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर भूटान गए थे.


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विश्वास और सद्भावना
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक संसदीय चुनावों की घोषणा के बाद किसी भी प्रधानमंत्री के लिए विदेश यात्रा करना एक दुर्लभ बात है. लेकिन पीएम मोदी का यह दौरा एक अपवाद है. पड़ोसी के नाते भूटान भारत के फोकस में है और दोनों देशों के बीच दोस्ती, आपसी विश्वास और सद्भावना का मजबूत बंधन है.


भूटान शायद इस क्षेत्र के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारतीय हितों के प्रति अधिक सचेत रहा है. वह चीन के दिए कई ऑफरों के बाद भी बीआरआई में शामिल नहीं होने वाला एकमात्र भारतीय पड़ोसी है.   


अपनी विकास जरूरतों के लिए भूटान की भारत पर निर्भरता में भूगोल एक महत्वपूर्ण कारक रहा है और थिम्पू अपने सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भारत की मदद को खास मानता है.


भूटान में नई सरकार
भूटान में अब एक नई सरकार है. पीएम मोदी की यह यात्रा भारत के लिए भूटान की जरूरतों से प्रेरित मजबूत साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का एक अवसर है.


ऐसे समय में जब चीन संबंधों पर हावी होना चाहता है, तो इस तरह उच्च-स्तरीय यात्राएं और अहम हो जाती हैं. इनसे इस आशंका को दूर करने में भी मदद मिलती है कि भूटान भारत से दूर जा सकता है.


चीन-भूटान रिश्ते
चीन ने लंबे समय से भूटान को देश में एक राजनयिक मिशन के लिए आमंत्रित किया है. हालांकि थिम्पू भारतीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए इसे टालता रहा है. उसने चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है.


थिम्पू ने सात साल के अंतराल के बाद 2023 में बीजिंग के साथ 25वें दौर की सीमा वार्ता आयोजित की और यह दावा करके कई लोगों को चौंका दिया कि भूटान सीमा मुद्दे को हल करने के करीब है.


इस बात को ध्यान में रखते हुए कि ये कोशिश भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ न जाए, भूटान ने भारत को चीन के साथ अपनी सीमा वार्ता के बारे में उचित रूप से जानकारी दी है.


पिछले साल भूटान किंग की भारत यात्रा
पिछले साल भूटान के राजा ने भारत की यात्रा की थी. इसे कुछ लोगों ने भूटान की तरफ से चिंतित भारत को आश्वस्त करने के तरीके के रूप में देखा था. बता दें यह भूटान किंग की यह यात्रा उनकी पिछली यात्रा के 6 महीने बाद और चीन-भूटान सीमा वार्ता के बारे में खबरों के बीच हुई थी.


हालांकि, अब बातचीत अंतिम चरण में है, भूटान अपने क्षेत्र से गुजरने वाली किसी भी भारतीय मिलिट्री-संबंधी पहल को लेकर संशय में है, जैसे कि अरुणाचल के तवांग से भूटान तक एक सड़क बनाने का प्रस्ताव जो गुवाहाटी तक जाएगी.


भूटान चीन के साथ अपनी सीमा निर्धारित होने तक इंतजार करना चाहता है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर बीजिंग उत्तर में विवादित क्षेत्रों पर अपनी स्थिति सख्त कर देगा.


वहीं भारत यह नहीं चाहेगा कि वह एक संप्रभु देश द्वारा अपने पड़ोसी के साथ विवाद को सुलझाने की कोशिश को ब्लॉक करते हुए दिखे. हालांकि नई दिल्ली निश्चित रूप से इस बात को लेकर सावधान रहेगी कि आगे क्या हो सकता है? चीन पहले ही कह चुका है कि वह राजनयिक संबंधों की स्थापना के साथ-साथ सीमांकन को बढ़ाना चाहते हैं और आर्थिक सहयोग को विस्तार देना चाहता है.


भूटान की डोकलाम दुविधा
भारतीय चिंताओं में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भूटान-चीन सीमा पर कोई भी समझौता भारत-भूटान-चीन ट्राइजंक्शन पर डोकलाम क्षेत्र की स्थिति को कैसे प्रभावित करेगा. यह क्षेत्र भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब स्थित है जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को मुख्यभूमि से जोड़ता है. 


यह एक विवादित क्षेत्र है जिसके बारे में भारत का मानना ​​है कि यह भूटान का है, लेकिन चीन उस पर दावा करता है.


2017 में एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ जब भारत ने विवादित पठार से चीन द्वारा एक सड़क के निर्माण पर आपत्ति जताई. तब से भारत ने बार-बार चीन को 2012 की उस समझ की याद दिलाई है कि ट्राइजंक्शन बिंदुओं को निर्धारित करने के किसी भी प्रयास में सभी संबंधित देशों को शामिल किया जाना चाहिए.


गौरतलब है कि चीन के साथ सीमा निर्धारण में तेजी लाने के लिए भूटान ने डोकलाम मुद्दे सहित बीजिंग के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने पर भारत के साथ भी व्यापक बातचीत की है. यहां तक कि नई सरकार ने भी भारत को आश्वासन दिया है कि वह सीमा रेखा के अपने दावे से पीछे नहीं हटेगी, जैसा कि भारतीय अधिकारी चाहते थे, पश्चिम में डोकलाम से लेकर पूर्व में सेरजंगला तक.


विकास का लक्ष्य


1960 के दशक की शुरुआत से भूटान को भारत की मदद उसके संबंधों का मुख्य आधार रही है. 


भारत ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 5,000 करोड़ रुपये (भूटान के बाहरी अनुदान घटक का 73%) देने का वादा किया, जिससे उसे 600 से अधिक प्रोजेक्ट्स को लागू करने में मदद मिली. भारत ने इस वर्ष लागू हुई 13वीं योजना के लिए मदद को और बढ़ाने का वादा किया है.


हाइड्रोपावर सहयोग इस सहयोग की खासियत बनी हुई है, भारत ने अब तक भूटान में चार प्रमुख हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया है दो और निर्माणाधीन हैं.


भारत भूटान का टॉप ट्रेडिंग पार्टनर और निवेश का मुख्य स्रोत बना हुआ है, जिसका एफडीआई में योगदान 50% है. अंतरिक्ष, फिनटेक और ई-लर्निंग जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी ध्यान दिया गया है.


(फोटो साभार: @MEAIndia)