Tak Bai Massacre: दक्षिणी थाईलैंड की एक अदालत ने सोमवार को 2004 में 85 मुस्लिम प्रदर्शनकारियों की मौत का मामला खारिज कर दिया है. पूर्व राज्य सुरक्षा कर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ चल रहे इस मामले में अब तक किसी भी संदिग्ध को गिरफ्तार नहीं किया गया था. ताक बाई नरसंहार के नाम से मशहूर इस हत्याकांड के पीड़ितों के परिवारों ने सात सैनिकों और सरकारी अधिकारियों पर हत्या, हत्या के प्रयास और गैरकानूनी हिरासत का आरोप लगाया था. अदालत ने कहा कि मामला आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि किसी भी संदिग्ध को गिरफ्तार नहीं किया गया और परिणामस्वरूप, 20 साल की सीमा अवधि शुक्रवार को समाप्त हो गई.


अदालत ने क्या दी दलील?


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अदालत ने कहा कि उसका आदेश संदिग्धों के खिलाफ आरोपों को खारिज नहीं करता है, क्योंकि उन्होंने "कभी कानूनी कार्यवाही में प्रवेश नहीं किया था, लेकिन सीमा अवधि समाप्त होने तक भाग गए थे." नामित लोगों में से एक घटना के समय 4th आर्मी रीजन के कमांडर पिसल वट्टानावोंगकिरी हैं. अगस्त में अभियोग के समय, वह सत्तारूढ़ फेउ थाई पार्टी के सांसद थे. पार्टी ने कहा कि उन्होंने विदेश में इलाज कराने के लिए मेडिकल लीव दाखिल की थी और इस महीने की शुरुआत में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. माना जाता है कि अभियोग के बाद अन्य संदिग्ध भी देश छोड़कर चले गए थे.


क्या है मामला:


पीड़ितों की मौत के तरीके के कारण यह मामला सुर्खियों में आया था. 25 अक्टूबर, 2004 को, हजारों प्रदर्शनकारी नरथिवात राज्य के ताक बाई जिले के पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हुए और छह मुस्लिम पुरुषों की रिहाई की मांग की, जिन्हें कई दिन पहले हिरासत में लिया गया था. हिरासत में लिए गए लोग, एक आधिकारिक गांव रक्षा बल के सदस्य थे, उन पर पुलिस ने मुस्लिम विद्रोहियों को हथियार सौंपने का आरोप लगाया. पुलिस स्टेशन के बाहर इकट्ठा हुए लोग प्रदर्शन कर रहे थे जो बाद में हिंसक हो गया था. इस दौरन 7 प्रदर्शनकारियों की गोली लगने से मौत हो गई थी. 


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कैसे हुई थी मौत?


हालांकि बाद सिर्फ यहीं नहीं रुकी. उनमें से लगभग 1,300 को हिरासत में लिया गया था. बाद में उनके हाथ-पैर बांधकर ट्रकों में ठूस दिया गया था. ट्रक में ले जाने के दौरन 78 लोगों की दम घुटने या फिर कुचल जाने की वजह से मौत हो गई थी. जबकि कई अन्य विकलांग और गंभीर रूप से घायल हो गए थे. ये मौतें थाईलैंड के सबसे दक्षिणी प्रांत नरथिवात, पट्टानी और याला में मुस्लिम अलगाववादी विद्रोह के भड़कने के तुरंत बाद हुईं, जो बौद्ध-प्रभुत्व वाले देश में मुस्लिम बहुलता वाले राज्य हैं. मुस्लिम निवासियों ने लंबे समय से शिकायत की है कि थाईलैंड में उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता है और अलगाववादी आंदोलन भी दशकों से समय-समय पर एक्टिव रहे हैं. कहा जाता है कि कठोर दमन ने वहां के लोगों में असंतोष बढ़ाया है और आज भी लड़ाई जारी है, लेकिन निचले स्तर पर. 


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क्या बोला मुस्लिम पक्ष:


अदालत के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए, पीड़ितों के परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले रत्सादा मनूरत्सदा ने कहा कि परिणाम अपेक्षित था, लेकिन कानूनी टीम अन्य विकल्पों पर काम करना जारी रखेगी, जिसमें यह जांच भी शामिल है कि क्या पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर कार्यवाही में देरी की थी जब तक कि मामला लगभग समाप्त नहीं हो गया. उन्होंने कहा, 'लोगों की याद में सीमाओं के क़ानून की कभी समाप्ति तिथि नहीं होगी.' मानवाधिकार परिषद के संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने पिछले सप्ताह एक बयान जारी किया जिसमें सीमाओं के क़ानून की समाप्ति के बाद भी जांच और न्याय की खोज जारी रखने की बात कही गई है, क्योंकि 'जांच करने और अपराधियों को इंसाफ के कटघरे में लाने में नाकामी अपने आप में थाईलैंड के मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन है.


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